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________________ १३८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ५. 'मयरहिअ' नामक पंचम स्मरण की वृत्ति करते हुए समयसुन्दर लिखते हैं कि प्रस्तुत स्तोत्र के कर्ता जिनदत्तसूरि हैं। स्तोत्रकर्ता ने विचरण करते हुए जब जनता को रोगादि से पीड़ित देखा, तो वे करुणा से प्रपन्न हो उठे। उसके रोग के विनाशार्थ एवं परोपकारार्थ उन्होंने प्रस्तुत स्तोत्र गुम्फित किया, जो महाप्रभावक सिद्ध हुआ। वृत्तिकार ने जिनदत्तसूरि के अतिशयों का भी प्रसंगवश वर्णन किया है। स्तोत्र में २१ गाथाएँ हैं। इस स्तोत्र में, जिनके नाम स्मरण से रोगादि दूर होते हैं, उनकी भावभीनी स्तुति की गई है। सुधर्मस्वामी, उद्योतनसूरि, वर्द्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि आदि को इस स्तोत्र में स्तुत्य आदर्श पुरुष माना गया है और उन्हीं की स्तुति की गई है। ६. सिग्घमवहरउ विग्घ' नामक षष्ठ स्मरण की वृत्तिकार ने संक्षिप्त व्याख्या की है। यह स्तोत्र १४ पद्यों में निबद्ध है। इसमें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ, गणधर, शक्रादिदेव, गोमुख आदि प्रमुख यक्ष, जिनशासनदेव, ब्रह्मशांति यक्ष, क्षेत्रादिदेव, चक्रेश्वरी देवी, तीर्थपति महावीर, जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि आदि की क्रमशः स्तुति की गई है। ७. 'उवसग्गहर' संज्ञक सप्तम स्मरण का वृत्तिकार ने सविस्तार विवेचन किया है। इसके रचनाकार हैं - आचार्य भद्रबाहु । स्तोत्रोत्पत्ति के सम्बन्ध में समयसुन्दर ने निम्नांकित कथा सूचित की है - __ एक बार आर्यसम्भूतविजयसूरि के पास वराहमिहिर और भद्रबाहु नामक दो सहोदर दीक्षित हुए। दोनों ही गीतार्थ बने। अनशन' ग्रहण करते समय आर्यसम्भूतविजयसूरि ने अपने गच्छ का भार एवं उत्तरदायित्व भद्रबाहु को सौंपा। इस प्रसंग से वराहमिहिर के मन में द्वेषभाव उत्पन्न हो गया कि गुरु ने गच्छभार मुझे क्यों नहीं दिया? अज्ञानतप करते हुए मरकर वह व्यन्तर देव हुआ। द्वेषवश उसने जैनसंघ में महामारी इत्यादि उपद्रव करने शुरू कर दिये। अतएव भद्रबाहु स्वामी ने प्रस्तुत स्तोत्र की रचना कर इस उपद्रव को शान्त किया। समयसुन्दर स्तोत्र का माहात्म्य बताते हैं - 'इदं स्तोत्रं च महाप्रभावम्। इदंस्तोत्रं योऽष्टोत्तर शतवारान् जपति तस्य विघ्ना दूरं नश्यन्ति, सर्वसिद्धयश्च संपद्यते।' ___ इस स्तोत्र में तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के आदर्श गुणों की स्तुति ललित पद्धति से व्यंजित है। यद्यपि यह स्तोत्र मुख्यरूपेण अर्हत् की उपासना के लिए ही रचा गया, लेकिन वृत्तिकार ने स्तोत्र की पाँच गाथाओं के आद्याक्षरों को पंचपरमेष्ठी (अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु) के रूप में भी सिद्ध किया है। इस प्रकार इस स्तोत्र में बीजमन्त्र भी समाविष्ट है। आज भी यह स्तोत्र अत्यधिक प्रसिद्ध है। २.१५ कल्याणमन्दिर-वृत्ति 'कल्याणमन्दिर' स्तोत्र के कर्ता हैं - कुमुदचन्द्राचार्य, जो सिद्धसेनदिवाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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