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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १३१ जिनमें कुलमण्डन, साधुरत्न, माणिक्यशेखर, परमानन्दसूरि, रत्नचन्द्र, सोमसुन्दरसूरि हर्षवर्धन, गणि मानविजय, रत्नपाल आदि के व्याख्या-ग्रन्थ उपलब्ध हैं। प्रस्तुत वृत्ति शब्दार्थ-प्रधान होते हुए भी अत्यन्त स्पष्ट एवं मूल कृति के रहस्य की उद्घाटिका है। इस कृति में मुख्यतः जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष - इन नव तत्त्वों का सारगर्भित स्वरूप बताया गया है। वृत्तिकार ने लिखा है कि उन्होंने यह अहमदाबाद की हाजापटेल पोल में वि. सं. १६८८ के कार्तिक मास में निबद्ध की थी। उन्हीं के शब्दों में - संवत्वसुगजरसशशिमिते च दुर्भिक्ष कार्तिक-मासे। अहमदाबादे नगरे पटेल हाजाभिध प्रोल्यां ॥ प्रस्तुत वृत्ति की पाण्डुलिपि अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर से उपलब्ध हुई है। २.१० दशवैकालिक-वृत्ति ___ 'दशवैकालिक-सूत्र' एक जैन आगम-ग्रन्थ है।आगमिक ग्रन्थों में दशवैकालिक' सर्वाधिक प्रचलित और सर्वाधिक व्यवहत ग्रन्थ है। निशीथचूर्णि, उत्तराध्ययन बृहद् वृत्ति आदि ग्रन्थों के कर्ता/व्याख्याकारों ने अनेक स्थानों पर अपने-अपने मत की पुष्टि के लिए इस ग्रन्थ को उद्धृत किया है। तत्त्वार्थ राजवार्त्तिक, धवला, जयधवला आदि ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख और विवरण उपलब्ध होता है। ____ कवि समयसुन्दर ने 'दशवैकालिक-वृत्ति' के अन्त में उपसंहार के रूप में इस ग्रन्थ का परिचय देते हुए लिखा है कि इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के कर्ता आचार्य शय्यंभव हैं। वे श्रुतकेवली थे। उन्होंने अपने मनक नाम के पुत्र-शिष्य के लिए इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था, जो 'चम्पा' नगर में वीर संवत् ७२ के लगभग हुआ था। कवि ने ग्रन्थ-निर्माण के प्रयोजन की कथा भी लिखी है। यह ग्रन्थ विकाल में रचा गया, इसलिए इसका नाम दशवैकालिक रखा गया। श्रुतकेवली शय्यंभव ने विभिन्न पूर्वो से इसका निर्युहण किया - ऐसी मान्यता है। कवि ने भी इसी बात को ग्रन्थ के अन्त में पुष्ट किया है। पूर्वाचार्यों ने इस सूत्र पर नियुक्ति, भाष्य, टीका, दीपिका, वृत्ति, चूर्णि अवचूरि आदि अनेक व्याख्या-ग्रन्थ लिखे हैं। हरि दामोदर वेलनकर ने 'दशवैकालिक सूत्र' पर लिखे गये व्याख्या-ग्रन्थों में से प्राप्त २२ ग्रन्थों की सूची दी है। महोपाध्याय समयसुन्दर का प्रस्तुत आलोच्य ग्रन्थ भी व्याख्या-ग्रन्थ है, जिसमें उन्होंने रचना का प्रयोजन, नामकरण, अध्ययनों के नाम, उनके विषय, ग्रन्थ की प्रामाणिकता, उपादेयता, मुख्य रूप से सूत्र के शब्दार्थ इत्यादि का बहुत ही मनोरम वर्णन-विवेचन किया है। १. द्रष्टव्य - जैनसाहित्य का बृहत् इतिहास, भाग ४, पृष्ठ १८२ २. द्रष्टव्य - दशवैकालिक-नियुक्ति, गाथा १६-१७ ३. द्रष्टव्य - जिनरत्नकोश, पृष्ठ १६९-७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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