SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 398 Sumati-Jñāna वि. सं. १३१६ के यज्वपाल शासक आसल्लदेव के भीमपुर प्रस्तर लेख में उसके एक अधिकारी जैत्रसिंह द्वारा एक जैन मंदिर के निर्माण करवाने का उल्लेख मिलता है। इस प्रस्तर लेख के अक्षरों से इस क्षेत्र के जैन अभिलेखों में १३वीं शताब्दी ई. के अंत के जैन अभिलेखों की 'नागरी लिपि को देखा जा सकता है जो आधुनिक 'नागरी लिपि' के अक्षरों जैसे स्वरूप को लगभग प्राप्त कर चुकी थी, परन्तु 'इ', 'श' और 'ण' की आकृतियां विकास के संक्रमण चरण में थीं। लेख में 'र' की आकृति वर्तमान नागरी के 'र' जैसी है। 'ए' का 'प' की आकृति से मिलता-जुलता बनाया गया है तथा कहीं-कहीं पर 'प' और 'य' में भेद करना कठिन है। 'घ' अक्षर को ऊपर की ओर बांयीं तरफ जुड़ी सींग की तरह रेखा के साथ बनाया गया है। अंक संबंधित चिह्न ११वीं से १३वीं शताब्दी ई. के मध्य के उत्तरी मध्यप्रदेश के जैन अभिलेखों में अंक संबंधित चिह्नों की दशमलव प्रणाली का प्रयोग मिलता है। इन लेखों में किसी संख्या के इकाई, दहाई, सैकड़ा व हजार के स्थानों पर प्रयुक्त होने वाले प्रत्येक अंक के लिए अलग-अलग आकृतियों या चिह्नों का प्रयोग किया गया है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इस अवधि के मध्य प्राप्त वि. सं. १३१६ के भीमपुर जैन मंदिर प्रस्तर लेख की तिथि का अंकन संख्या संबंधित शब्दों के माध्यम से किया गया है, जैसे- संख्या '१' के लिए 'इंदु', '३' के लिए 'अग्नि' तथा '६' लिए 'निधि' शब्द का प्रयोग मिलता है। विवेच्यकाल में अंकों के विकासक्रम को अंक तालिका अ 9 और अ २ में दिखाया गया है। संदर्भ ग्रन्थ १. ओझा, गौरीशंकर हीराचंद, भारतीय प्राचीन लिपिमाला, नई दिल्ली, १६६३, पृ. ६६ । २. सिंह, ए.के., डेवलपमेण्ट ऑफ नागरी स्क्रिप्ट, दिल्ली, १६६१, पृ. ७७ । ३. एपिग्राफिया इंडिका, जिल्द II, पृ. २३२-४० : कार्पस इन्स्क्रपशन्स् इण्डिकेरम् जिल्द VII, भाग III, १६८६, नई दिल्ली, पृ. ५२८-३५ । ४. सिंह, ए. के., ए कच्छपघात इंस्क्रिप्सन फ्राम ग्वालियर, भारती जिल्द XXX, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, १६६३–६४, पृ. ११३–१६ । ५. कार्पस इंस्क्रिपशन्स् इण्डिकेरम्, जिल्द VII, भाग III, १६८६, नई दिल्ली, पृ. ५६१–६८ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy