SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 394 Sumati-Jñāna प्राचीन अंग जनपद जो छठी शती ई. पू. तक महाजनपद का स्वरूप ले चुका था, अनेक धर्मों एवं संस्कृतियों का साक्षी रहा है। अंग महाजनपद के अंतर्गत सामान्यतया भागलपुर, मुंगेर, जमुई आदि जिलों के भू-भाग को सम्मिलित किया जा सकता है। यद्यपि प्राचीन जनपदों या राज्यों की सीमाओं को वर्तमान स्थानों या क्षेत्रों की सीमाओं में बांधना ऐतिहासिक दृष्टि से पूर्णतया विधिसम्मत नहीं प्रतीत होता । इस सम्पूर्ण क्षेत्र में भी जैन धर्म प्राचीन काल से विद्यमान था। चम्पा अंग महाजनपद की राजधानी थी। महाभारत के अनुसार दुर्योधन ने कर्ण को अंग के राजा के रूप में मान्यता प्रदान की थी। भागलपुर शहर के पश्चिमी भाग में कर्णगढ़ अभी भी स्मृति में है। कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने यहाँ तीन वर्षावास व्यतीत किये थे। जैन धर्म के बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म और निर्वाण दोनों ही चम्पा नगरी में हुआ था । श्चानन ने इस स्थल पर दो जैन मंदिर देखे थे जो यद्यपि पुर्ननिर्माण के कारण नवनिर्मित हो गये हैं। यहां से प्राप्त आदिनाथ और महावीर की प्राचीन मूर्तियों का भी उल्लेख उन्होनें किया है। इनके अतिरिक्त संगमरमर से निर्मित अनेक परवर्ती कालीन जिन प्रतिमाएं इस मंदिर में वर्तमान में रखी हैं। एक पर विक्रम संवत् १५२५ (१४६८ ई.) अंकित था। उन्होनें चौबीस तीर्थंकरों के पादुका चिन्ह भी इस स्थल पर देखे थे । चम्पा से प्राप्त प्राचीन एवं मध्यकालीन मूर्तियों से स्पष्ट होता है कि इस स्थल पर जैन धर्म की परम्परा लम्बी अवधि तक विद्यमान रही थी। भागलपुर से लगभग ३० मील दक्षिण में मंडार या मंदर पहाड़ी है जिसे अनुश्रुति के अनुसार समुद्र मंथन की घटना से जोड़ा जाता है। यहाँ से शैव, वैष्णव और जैन मंदिरों के अवशेष तथा शैलोत्कीर्ण मूर्तियां प्रतिवेदित हैं। यहाँ से उत्तर गुप्तवंशी आदित्यसेन का अभिलेख भी मिला है जिसमें उसकी पत्नी कोणदेवी का भी उल्लेख मिलता है। इस स्थान पर बेगलर ने एक जैन मंदिर के अवशेष की चर्चा की है। जमुई जिले का क्षेत्र जैन धर्म की विद्यमानता और प्रतिष्ठा की दृष्टि से विशेषतः विवेच्य है। यह क्षेत्र हाल में महावीर के जन्मस्थान और प्रारंभिक जीवन की गतिविधियों का साक्षी मानने संबंधी उपस्थापनाओं के कारण बहुचर्चित रहा है। जैन परम्परा अनुसार महावीर तीस वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर उत्तर-पश्चिम की ओर पर्वतीय उपत्यका के समानांतर नयखण्ड वन पहुंचे और वहां अपने वस्त्रों का परित्याग कर दिया। यहां पर बहुशैल्य चैत्य जंगल भी था। यहाँ से वे कम्मार, फिर कोलाग्ग और वहां से मोराक पहुंचे और कुछ समय बाद अट्ठियग्राम गये। तीसरे वर्ष में वे सुवर्णरवल होते हुए चम्पा गये। आठवें वर्ष में लोहागल्ल फिर राजगृह पहुंचे। बारह वर्ष की तपस्या के बाद जृम्भियग्राम में कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। इन स्थलों की समता ध्वनि साम्य के आधार पर कम्मार की पहचान जमुई से लगभग ढाई मील दूर कम्मार ग्राम से, कोलाग्ग की पहचान कम्मार ग्राम से नौ मील दूर स्थित कोन्नाग से की गई है। इसी प्रकार मोराक का संबंध मोरा ग्राम से, सुवर्णरवल की पहचान कोन्नाग से चौदह मील दक्षिण-पश्चिम में सोनखर से, अठ्ठियग्राम की समानता हटिया से और लोहागल्ल को लोहार ग्राम से समीकृत किया गया है। लद्दउर को लिच्छवियों से संबंधित कहा गया है।" जैन साक्ष्यों से स्पष्ट है कि कुण्डग्राम जहां महावीर का जन्म हुआ था, वह दो भागों में विभाजित था । दायीं और ब्राह्मण कुण्डग्राम और बायीं ओर क्षत्रिय कुण्डग्राम था । लद्दउर जिसे लिच्छवियों से संबंधित किया गया है, वह पहाड़ियों के मध्य स्थित था। यहां से लगभग पाँच मील उत्तर-पूर्व में लोध-पानी से प्राचीन जैन अवशेष प्राप्त हुए हैं। लद्दउर से एक मील की दूरी पर कुण्डधरा है जो ब्राह्मण और क्षत्रिय कुण्डग्राम को एक-दूसरे से अलग करता है। यहां पर कुण्डेश्वरी देवी का मंदिर भी है जो जैनों में अतिशय मान्य है। लद्दउर में भी कोई प्राचीन जैन मंदिर था जिसमें विक्रम संवत् १५०५ (१४४८ ई.) तिथियुक्त एक जैन प्रतिमा रखी हुई थी । " दिगम्बर संप्रदाय के कुछ जैन नालन्दा के समीप बड़ागांव कुण्डलीपुर को महावीर का जन्म स्थान स्वीकार करते हैं। कुछ जमुई जिले में कुण्डलीग्राम का महावीर का जन्म स्थान बताते हैं ।" कुछ श्वेतांबर लद्दउर को महावीर का जन्मस्थल मानते हैं। महावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy