SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरसिंहपुर (पाली) से प्राप्त तीर्थंकर ऋषभनाथ प्रतिमा - एक विश्लेषण 389 विवेच्य प्रतिमा भी जैन एवं शैव प्रतिमाओं के संयुक्त लक्षणों से युक्त है। यह प्रतिमा उमरिया जिलान्तर्गत (मध्य प्रदेश) वीरसिंहपुर (पाली) नामक स्थान से प्राप्त है। वर्तमान में यह प्रतिमा सिद्ध बाबा के नाम से पूजी जाती है। वास्तव में यह प्रतिमा किसी जैन तीर्थंकर की है। इसमें तीर्थकर को एक ऊंचे आसन पर ध्यानमुद्रा में पद्मासनस्थ प्रदर्शित किया गया है। तीर्थकर के सिर पर बुद्ध प्रतिमा की तरह उष्णीश बनाया गया है। सिर के पीछे वृत्ताकार प्रभामण्डल प्रदर्शित है जिसकी रचना कमल की पंखुड़ियों की आकृति से की गई है। सम्पूर्ण प्रतिमा में अष्ट प्रतिहाय का अंकन किया गया है जिनमें चामरधर, केवल वृक्ष, त्रिछत्र, दुंदुभिक, पुष्पवर्षा तथा शासन देवता प्रमुख हैं । प्रतिमा के ऊपरी भाग में दोनों ओर एक-एक गज भी प्रदर्शित हैं। तीर्थकर के आसन में नीचे एक ओर यक्षी अम्बिका अपने पुत्र को गोद में लिए बैठी दिखाई गई हैं तथा एक तरफ यक्ष आकृति प्रदर्शित है जो सम्भवतः गोमुख यक्ष की है। आसन में सामने बीचों-बीच एक देवी की ललितासन मुद्रा में बैठी मूर्ति अंकित है । यह मूर्ति चतुर्भुजी है। देवी के एक हाथ में कमण्डलु स्पष्ट प्रदर्शित है जबकि अन्य हाथों में धारण की हुई वस्तुएँ स्पष्ट नहीं हैं। देवी प्रतिमा के दोनों ओर एक-एक गज की बैठी हुई मूर्ति प्रदर्शित है जिनकी पीठ पर दो-दो लघु मानवाकृतियां बनाई गई है । त्रिछत्र के ऊपर आमलक अभिकल्प अंकित है (चित्र ६१.१) । विवेच्य प्रतिमा में आसन के नीचे सिंह आकृति के स्थान पर गज का अंकन किया गया है। इस तीर्थंकर प्रतिमा में लांछन का अंकन नहीं किया गया है। चूंकि तीर्थंकर अजितनाथ का लांछन गज है, अतः इस आधार पर इसे अजितनाथ रूप में पहचाना जा सकता है । परन्तु इस अभिज्ञान में कुछ परम्परागत कला तत्वों की दृष्टि से कठिनाईयां हैं। मध्यकालीन जैन तीर्थकर प्रतिमाओं के आसन में सिंह के स्थान पर गजों के अंकन की भी परम्परा रही है तथा इनके साथ तीर्थकर के लांछन भी प्रदर्शित किए गये हैं। अतः उक्त प्रतिमा में भी इसी परम्परा का निर्वाह देखने को मिलता है। विवेच्य प्रतिमा में तीर्थंकर के कंधों पर लटकती केश राशि का अत्यंत प्रभावपूर्ण अंकन देखने को मिलता है। अतः इस प्रतिमा को ऋषभनाथ के रूप में पहचानना उचित होगा । यक्षी अम्बिका वस्तुतः तीर्थकर नेमिनाथ की यक्षी जिनका अंकन पादपीठ की एक तरफ किया गया है। यक्षी अम्बिका मध्यकालीन जनमानस में अत्यंत लोकप्रिय थी । अतः तीर्थकर नेमिनाथ के साथ ही उनके अंकन की कोई कठोर परम्परा देखने को नहीं मिलती । यक्षी अम्बिका को नेमिनाथ के अलावा अन्य तीथकरों के साथ भी रूपायित किया गया है। पादपीठ सामने मध्यभाग में बैठी ललितासना देवी की मूर्ति सम्भवतः यक्षी चक्रेश्वरी की मूर्ति है। इसके बांये ऊपरी हाथ में धारित चक्र स्पष्ट है। अतः इसे चक्रेश्वरी के रूप में पहचानना उचित होगा जो ऋषभनाथ की भी शासन देवी है। इससे भी ऋषभनाथ की पहचान पुष्ट होती है । तीर्थकर प्रतिमा की विशेषता यह है कि इसके वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन नहीं किया गया है। इसके केश शिव मूर्तियों में प्रदर्शित जटामुकुट की तरह बनाये गये हैं। इस कारण विवेच्य तीर्थकर प्रतिमा में शिव की प्रतिछाया प्रतीत होती है । इस दृष्टि से यह प्रतिमा तीर्थकर ऋषभनाथ और शिव के संयुक्त रूप का प्रतिनिधित्व करती है । मूर्ति की निर्माण कला तथा शैली के आधार पर इसकी तिथि नवीं शती ई. का उत्तरार्द्ध निर्धारित की जा सकती है । यह कलचुरि कालीन मूर्ति शिल्प का एक अनुपम उदाहरण है। इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में विवेचित प्रतिमा जैन एवं शैव धर्म के समन्वय का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy