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________________ भगवान महावीर एवं उनके सिद्धांतों की प्रासंगिकता 387 नियंत्रण स्थापित करने के लिए जैन मत का अहिंसावाद अत्यन्त प्रासंगिक है और इसे बृहद स्तर पर लागू करने की महती आवश्यकता है। . ___ महावीर ने सामाजिक न्याय पर विशेष जोर दिया था। इसी आधार पर उन्होनें उपेक्षित एंव शोषित वर्ग के उत्थान की बात कही। उन्होनें जातिप्रथा एवं विशेषाधिकार का भी विरोध कर सामाजिक विभाजन को समाप्त करने का यत्न किया। वर्तमान में भी भारतीय सरकार ने सामाजिक समानता एवं सामाजिक न्याय के क्षेत्र में अनेक निर्णायक कदम उठाए हैं। इसी दृष्टि से महावीर के विचारों की आज भी प्रासंगिकता बनी हुई है। जैन मत के सामाजिक पहलुओं एवं उनके महत्व और उपयोगिता का अध्ययन करते समय यह दिखाई दिया कि महावीर स्वामी कहीं न कही वैदिक ब्राह्मण परंपरा से प्रभावित थे। उन्होनें आर्यों द्वारा स्थापित वर्ण-व्यवस्था का विरोध नहीं किया। वर्ण-व्यवस्था के माध्यम से समाज को संघर्ष से बचाने के ब्राह्मणों के वैज्ञानिक तरीके को उन्होनें स्वीकार कर लिया। महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् जैन धर्म में काफी परिवर्तन दिखाई देते हैं। अब इस धर्म में उच्च एवं निम्न जाति में भेद किया जाने लगा। कालान्तर में इसमें केवल उच्च जातियों को ही प्रवेश मिला। धीरेधीरे मूर्ति पूजा-अर्चना आदि वैदिक प्रवृत्तियां जैन धर्म का अंग बन गयीं। यह भी ध्यान रखना है कि भले ही जैन धर्म की लोकप्रियता वैदिक धर्म के विरोध के कारण बढ़ी। लेकिन लम्बे कालखण्ड में यह स्पष्ट हो गया कि जनता को वैदिक धर्म के विरोध का पाठ पढ़ाकर जैन धर्म जीवित नहीं रह सकता था, यही कारण है कि उन्हें वैदिक धर्म के अनेक सिद्धांतों के साथ अनुकूलन करना पड़ा। संदर्भ ग्रन्य १. रामधारी सिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय। २. आबिद हुसैन, भारत की राष्ट्रीय संस्कृति। ३. झा एवं श्रीमाली, प्राचीन भारत का इतिहास। ४. मुनि कान्तिसागर, खण्डहरों का वैभव। १. राधाकृष्णन, भारतीय दर्शन, भाग १ व २। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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