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________________ देवगढ़ की जैन कला में आचार्य एवं उपाध्याय तथा उनका योगदान ५६ जैन कला इतिहास में देवगढ़ का मथुरा के बाद सर्वाधिक महत्व है। देवगढ़ ने जैन प्रतिमा विज्ञान को कुछ नये आयाम दिये, जिन्हें कालान्तर में उत्तर भारतीय कला केन्द्रों पर और निखार मिला। देवगढ़ विंध्याचल की पश्चिमी श्रेणी पर गिरिदुर्ग के मध्य उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में बेतवा नदी के किनारे स्थित है। यहाँ कला का अजस्र प्रवाह प्रागैतिहासिक काल से निरन्तर १६वीं - १७वीं शती ई. तक चलता रहा, जिसमें वैदिक पौराणिक और जैन दोनों ही परम्पराओं के कलावशेष हैं। देवगढ़ वैष्णव एवं जैन कलावशेषों की दृष्टि से एक विलक्षण पुरास्थल रहा है, जहाँ ६वीं-७वीं और कुछ सीमा तक वीं शती ई. तक के वैष्णव मंदिरों और मूर्तियों का निर्माण हुआ। साथ ही कुछ मूर्तियां शिव, शक्ति (महिषमर्दिनी, सप्तमातृका), सूर्य और गणेश की भी प्राप्त हैं। छठीं शती ई. का दशावतार और सातवीं शती ई. का वराह मंदिर गुप्त और गुप्तोत्तर काल के स्थापत्य एवं मूर्तिकला के विशिष्ट उदाहरण हैं। डॉ. शान्ति स्वरूप सिन्हा आठवीं शती ई. में देवगढ़ में जैन कलाकृतियों का निर्माण प्रारंभ हुआ और नवीं शती ई. तक देवगढ़ पूरी तरह जैन कला-केन्द्र के रूप में परिणत हो गया, जिसके फलस्वरूप १२वीं - १३वीं शती ई. तक उत्तर भारत के जैन कला तीर्थों में से एक देवगढ़ में कलाकृतियाँ नवीन सर्जनाओं और विचारधाराओं के साथ प्रस्तुत हुईं। देवगढ़ यद्यपि किसी जिन या तीर्थकर की कल्याणक भूमि नहीं थी और न ही किसी अन्य शलाकापुरूष से संबंधित थी । तथापि यह जैन अतिशय क्षेत्र था।' दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध देवगढ़ में छोटे और सुंदर जैन मंदिरों का निर्माण हुआ । देवगढ़ में शासकों द्वारा सीधे संरक्षण के प्रमाण नगण्य हैं।' सम्भवतः इसी कारण यहाँ विशाल मंदिरों का निर्माण नहीं हुआ। वस्तुतः जैन आचार्य एवं साधु संघों एवं सामान्य जनों के समर्थन और आर्थिक सहयोग से ही देवगढ़ में जैन कला का विकास हुआ। Jain Education International देवगढ़ की जैन मूर्तियाँ इस बात का भी संकेत देती हैं कि आचार्यों ने किस प्रकार शास्त्र निर्दिष्ट मर्यादा में रहते हुए भी मूर्ति निर्माण में किस प्रकार परिवर्तन और नवीन प्रयोगों को स्वीकार एवं अभिव्यक्त किया। जैन प्रतिमालक्षण विषयक कई विशेषताएँ सबसे पहले देवगढ़ की मूर्तियों में अभिव्यक्त हुई। चौबीस जैन यक्षियों के निरूपण का प्रारम्भिकतम् प्रयास देवगढ़ में मंदिर संख्या १२ (शान्तिनाथ मंदिर, ८६२ ई.) की भित्तियों पर किया गया । बाहुबली और भरत मुनि की मूर्तियों में जिन मूर्तियों के लक्षण उत्तर भारत में सर्वप्रथम देवगढ़ की मूर्तियों में ही दिखाये गये, जिनका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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