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________________ जैन आगम में पर्यावरण और आचार 365 नैसर्गिक आहार को जीवन का आधार बताया है। इससे न केवल जैन मण्डल सुरक्षित रहेगा वरन् समस्त प्राणीजगत विनाश से बच सकेगा। आहार शुद्धता के साथ-साथ शाकाहार विवेकपूर्ण जीवन की पद्धति है। ___ जैन आगमों की विचारधारा में कर्मादानों का विशेष महत्व है जिसमें जीवकोपार्जन के साधनों पर प्रकाश डाला गया है। जो साधन पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं या नष्ट करते हैं उन्हें कर्मादानों के अंतर्गत रखकर निंदनीय, पापजन्य, हिंसक एवं अपराध सूचक माना गया है। इस प्रकार जैन आगमों का यही उद्देश्य है कि सुरक्षित जीवन के लिए एक-दूसरे के प्रति समभाव को रखें। संदर्भग्रन्थ १. संस्कृत हिन्दी कोष, पृ. ५८०। २. वही, पृ. १६२। ३. आवृणोत्यावियतेनेनेति वा आवरणम्, सर्वार्थसिद्धि : ८/४| ४. पाइअ-सह-महण्णवो, पृ. ५५०। ५. प्रज्ञापनासूत्र, १/१/१४-१५ | ६. आचारांग सूत्र, १/५/४३-४५/ ७. सागरधर्मामृत, ७/३५/ ८. संस्कृत हिन्दी कोष, पृ. १४१। ६. अग्रवाल हिन्दी शब्दकोष, पृ. १३३ | १०. पाइअसद्दमहण्णवो, पृ. ११५ | ११. नन्दीसूत्र : ४५॥ १२. वही : ७५ १३. तत्वार्थ भाष्य : १/२०| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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