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________________ खन्दार (जिला- अशोकनगर, मध्य प्रदेश) स्थित प्राचीन जैन शैलकृत गुहा मंदिर एवं मूर्तियां ५१ खन्दार अशोकनगर जिले (पूर्व गुना जिला) में चंदेरी नगर की बाह्य परिधि में चंदेरी मुख्यालय से लगभग १ किमी की दूरी पर स्थित है। वर्तमान में यह क्षेत्र एक जैन तीर्थ के रूप में स्थापित है और 'खन्दारगिरि जैन तीर्थ क्षेत्र' के नाम से जाना जाता है। यहां एक विशाल पर्वत के एक ओर चट्टान को काटकर जैन धर्म से संबंधित कई गुहा मंदिरों एवं मूर्तियों का निर्माण किया गया है। पर्वत पर स्थित होने के कारण इसे 'खन्दारगिरि के नाम से पुकारा गया है। यहां १३वीं शती ई. से लेकर १८वीं शती ई. तक के जैन गुहा मंदिर एवं मूर्तियां निर्मित हैं। इसके अलावा पर्वत की तलहटी में स्थित एक चबूतरे पर लगभग १०वीं से १२वीं शती ई. तक की स्वतन्त्र जिन प्रतिमाएं एवं एक अभिलिखित मानस्तम्भ सुरक्षित है। इन कला सामग्रियों में से केवल एक गुहा मंदिर लगभग १३वीं शती ई. का है। प्रस्तुत शोध पत्र में इस प्राचीन गुहा मंदिर एवं मंदिर परिसर में रखी स्वतन्त्र मूर्तियों का अध्ययन किया गया है। गुहा मंदिर पर्वत के बिल्कुल दांयी ओर सतह से लगभग ५० फुट की ऊंचाई पर एक अनगढ़ गुहा का निर्माण हुआ है जिस तक सीढ़ियों के मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। इस गुहा की माप लगभग १४' x २०' x ७२" है। पूर्व में इसका सम्मुखवर्ती प्रवेश भाग पूर्ण रूप से खुला था किन्तु वर्तमान में उसे एक दीवार के द्वारा प्रवेश द्वार सहित निर्मित कर दिया गया है और प्रवेश द्वार के दोनों ओर एक-एक खिड़कियों का निर्माण हुआ है। यह गुहा पूर्वाभिमुखी है (चित्र ५१.१) | Jain Education International डॉ. नवनीत कुमार जैन एवं टीकम तेनवार इस गुहा की आंतरिक अनगढ़ भित्तियों पर तीर्थंकर और यक्षी अंबिका (तीर्थंकर नेमिनाथ की शासनदेवी) की कई प्रतिमाओं को अनगढ़ रूप में उकेरा गया है। ये सभी मूर्तियां खंडित एवं सिरविहीन हैं। कुल मूर्तियों की संख्या १४ है । इनमें ११ तीर्थंकरों की और शेष ३ यक्षी अंबिका की हैं। एक तीर्थकर प्रतिमा गुहा के बाहर दांयी ओर की चट्टान पर कायोत्सर्ग मुद्रा उत्कीर्ण है। इस प्रकार कुल मूर्तियों की संख्या १५ है । तीर्थंकरों में शांतिनाथ (सोलहवें जिन), नेमिनाथ (बाइसवें जिन), सुपार्श्वनाथ (सातवें जिन) और पार्श्वनाथ (तेइसवें जिन ) की ही पहचान हो सकी है। इनमें से आठ जिन मूर्तियों के नीचे अभिलेख उत्कीर्ण हैं और इनमें सभी की तिथि विक्रम संवत् १२८३ (१२२६ ई.) है।' इन अभिलेखों की लिपि नागरी एवं भाषा संस्कृत है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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