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________________ जैन आगम साहित्य में गणिकायें ४८ जैनागमों के काल में गणिका वृत्ति को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था । गणिकाओं की उत्पत्ति के सम्बन्ध में आवश्यक चूर्णि में एक कथानक वर्णित है। इसमें उल्लेख आया है कि एक बार भरत चक्रवर्ती को उनके अधीनस्थ राजाओं ने उपहारस्वरूप अपनी सुन्दरतम कन्यायें भेंट कीं, परन्तु रानी के असंतुष्ट होने पर राजा भरत ने उनकी संतुष्टि हेतु उन कन्याओं को गण - राजाओं को सौंप दिया। कालान्तर में यही कन्यायें गणिका कहलाई ।' जैनागमों के युग तक राजतन्त्रीय व्यवस्था के अंतर्गत गणिकायें अपना मूल स्वरूप विस्मृत कर राजकीय वैभव का ही एक प्रमुख अंग बन गयीं । डॉ. महेन्द्र नाथ सिंह एवं विपिन कुमार शर्मा जैनागमों में गणिकाओं की स्थिति जैन ग्रन्थों में वर्णित नगर पण्यतरूणियों (गणिकाओं) के बहुत से सुंदर सन्निवेशों में शोभायमान रहते थे । राजप्रश्नीय सूत्र में जुवई (पण्यतरूणी) शब्द की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि यद्यपि आज इस शब्द का प्रयोग वेश्या के लिये होने लगा है और उसे समाज बहिष्कृत मानकर तिरस्कार, घृणा और हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है, लेकिन यह शब्द तत्कालीन समाज की एक संस्था का बोध कराता है जो अपने कला, गुण और रूप सौन्दर्य के कारण राजा द्वारा सम्मानित की जाती थी । गुंजीयन प्रशंसा करते थे तथा कलार्थी कला सीखने के लिये उससे प्रार्थना करते थे और उसका आदर करते थे। मथुरा के जैन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गणिकायें और नृत्यांगनाए न केवल जैन धर्म को स्वीकार करती थीं अपितु जिन प्रतिमा और पूजापटों (आयागपों) को दान भी करती थीं (शिलालेख संग्रह, भाग २, अभिलेख संख्या ८) । गणिकाओं की महत्ता Jain Education International गणिकायें नगर की शोभा मानी जाती थीं तथा राजा इन्हें राजधानी का रत्न समझता था। मुख्य नगरों अथवा राजधानियों में प्रधान गणिका के अधीनस्थ हजारों की संख्या में गणिकायें अपना जीवन-यापन प्रतिष्ठापूर्वक करती थीं। यद्यपि जैन युग में वेश्याओं के समुदाय का नेतृत्व करने वाली सबसे सुन्दर एवं गुणवती कन्या को ही गणिका कहा जाने लगा था। इसके साथ ही उस समय तक गणिका एवं वेश्यापद एक-दूसरे के समानार्थी बन गये थे । अर्थात् वे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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