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________________ मेरे अनन्य भूप जी अरिदमन जैन* हम दोनों का जन्म, एक ही परिवार के वृक्ष की दो शाखाओं में बाजार ढोलनदास के समीप गली भावड़या (भाव बड़ेजैनियों को उन दिनों पंजाब में इसी नाम से सम्बोधित किया जाता था), अमृतसर के एक ही मकान में हुआ था । भूपेन्द्र नाथ स्वर्गीय लाला हरजसराय जी के द्वितीय पुत्र मेरे से एक साल से कुछ अधिक छोटे हैं। एक ही स्कूल में हमारी शिक्षा हुई। एक ही परिवार, एक ही मकान, एक ही शिक्षा स्थान पर इकट्ठे ही खेलना, दिन भर इतनी निकटता थी। दसवीं श्रेणी की परीक्षा पास करके मैं अपने स्वर्गीय पूज्य पिता जसवंतराय जी के साथ दुकान पर हो लिया था। भूपेन्द्रनाथ एक साल बाद दसवीं पास करके लाहौर फार्मन क्रिश्चियन कालेज में प्रवेश पा गये थे। वहीं से उन्होंने माध्यमिक परीक्षा पास करके सन् १९३६ में एक साल के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सन् १९३६ में इन्जीनियरिंग की शिक्षा पाने के लिए प्रवेश लिया, पर स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण एक साल बाद मुगलपुरा लाहौर में आ गए। वहीं से अन्त में उच्च श्रेणी में मैकेनिकल इन्जीनियरिंग की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए । १९३७ में जब पार्श्वनाथ विद्याश्रम की ताराणसी में स्थापना हुई, तो वे वाराणसी में ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ही थे । इसके बाद हमारा सम्पर्क टूट सा गया। आपकी शादी सन् १९४१ फरवरी के अन्त में कसूर में सेठ मोहनलालजी की ज्येष्ठ लड़की स्वर्गीय श्रीमती शकुन्तला रानी से हुई थी। भूपेन्द्रनाथ जी को प्रारम्भ से ही संगीत, कला आदि में रुचि थी। स्कूल में ड्राईंग में या कोई अन्य कलात्मक वस्तुओं की बनावट आदि समझने में विशेष रुचि थी। इसी कारण उनका उद्देश्य व मन इन्जीनियरिंग पढ़ने की ओर विशेष था। स्कूल में बैण्ड या गायन समूह में भाग लेना, हारमोनियम आदि को सीखने की रुचि भी रही। बाद में राग आदि का भी अभ्यास किया और गुरु-शिष्य की परम्परा के अनुसार एक वर्ष तक सीखा भी। गुरु महाराष्ट्रियन थे । स्नेहशील, घृणा, क्रोध व द्वेष से दूर, जैसा ही उनका आचरण रहा। वे सहयोग देने व लेने में विश्वास रखते हैं। अपने पिता की तरह समाज सेवा की उनमें आन्तरिक इच्छा है और ऐसा प्रयास भी रहता है। समाज में "पार्श्वनाथ विद्यापीठ" के संचालक के नाते उनका विशेष आदर है। हमें उनपर पारिवारिक गर्व है। आदर व स्नेह से बड़े-छोटे सभी उनको भूपजी कहकर ही सम्बोधित करते रहे हैं । * पूर्व अध्यक्ष, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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