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________________ शरण में आया है, अतः राजकुल को यह उचित नहीं है कि शरणागत कुमार को लौटा दें अतः हम सब राजा कूणिक से युद्ध करने के लिए तैयार हैं। ३१ इसी प्रकार जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र ३२ में ५. उल्लेख है कि भरत राजा द्वारा नामोल्लखित बाण जब मागध तीर्थाधिपति के भवन में गिरा तब सर्वप्रथम वह कुपित हुआ लेकिन भरत द्वारा छोड़े गये बाण को जानकर वह हार, मुकुट, कुण्डल, कड़े तथा वस्त्रादि लेकर भरत के पास पहुँचा और भरत ने उसे शरणागत जानकर आभयदान दिया। युद्ध ८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र में वर्णन है कि राजा पद्मनाभ अपनी राजधानी अमरकंका को श्रीकृष्ण वासुदेव द्वारा भग्न किया हुआ जानकर भयभीत होकर द्रौपदी देवी की शरण में गया। तब द्रौपदी ने उससे कहा देवानुप्रिय ! क्या तुम नहीं जानते कि पुरूषोत्तम कृष्ण का अप्रिय करते हुए तुम मुझे यहाँ लाये हो? किन्तु जो हुआ हुआ सो हुआ अब तुम भेंट आदि लेकर मुझे आगे करके उनकी शरण मे चलो, उत्तमपुरूष प्राणिवत्सल होते हैं अर्थात् जो उनके सामने नम्र होते हैं उन पर दया और प्रसन्नता प्रकट करते हैं, ऐसा करने से ही तुम्हारे नगरी की रक्षा होगी, अन्यथा नहीं पद्मनाभ की दयनीय दशा को देखकर कृष्ण वासुदेव ने उसे मुक्त कर दिया। १३ ९. युद्धार्थियों के अपने कुछ नियम और सिद्धान्त भी होते थे जिनका पालन बड़ी सजगता से किया जाता था। जैनग्रन्थ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के अनुसार राजा वरूण ने नियम ले रखा था कि रथमूसल संग्राम में बुद्ध करते हुए जो मुझ पर पहले प्रहार करेगा, मैं केवल उसे ही मारूँगा, अन्य व्यक्तियों को नहीं । ३४ सन्दर्भ १. और युद्धनीति जैनग्रन्थ नीतिवाक्यामृत में भी युद्ध के कतिपय नियमों का उल्लेख है। सोमदेव के अनुसार संग्राम भूमि में पैरों पर खड़े हुए भयभीत और शस्त्रहीन शत्रु की हत्या करने में ब्रह्महत्या का पाप लगता है। युद्ध में जो शत्रु बन्दी बना लिए गये हों उन्हें वस्त्रादि देकर मुक्त कर देना चाहिए। २. पउमचरिय में सीता की कथा मिलती है। रावण ने सीता का अपहरण किया जिसे प्राप्त करने के लिए राम ने रावण के साथ युद्ध किया। ज्ञाताधर्मकथा में द्रौपदी की कथा है। द्रौपदी के कारण पाण्डवपद्मनाभ और कृष्ण-पद्मनाभ में युद्ध हुआ। ३-४. रूक्मिणी और पद्मावती कृष्ण वासुदेव की आठ अग्रमहीषियों में गिनी गयी हैं, रूक्मिणी कुण्डिनी नगर के राजा भीष्मक की पुत्री तथा रूक्मि की बहन थी और पद्मावती हिरण्यनाभ Jain Education International ७. १०. १६३ की कन्या थी । कृष्ण द्वारा इनके अपहरण किये जाने का उल्लेख त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित में मिलता है। तारा सुग्रीव की पत्नी थी। तारा सम्बन्धी युद्ध का वर्णन त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित में लिखता है (८, ९, १०, ११) टीकाकार अभयदेव के अनुसार कांचना, अहिन्निका, किन्नरी, सुरूपा और विद्युन्मती की कथाएं अज्ञात हैं कुछ लोग राजा श्रेणिक की अग्रमहिषी चेल्लणा को ही कांचना कहते हैं (उद्धृत, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ०९२ ) | सुभद्रा कृष्ण वासुदेव की बहन थी। अर्जुन द्वारा सुभद्रा के अपहरण की कथा हरिवंशपुराण तथा त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित में मिलती है। रोहिणी बलराम की माता और वसुदेव की पत्नी थी। रोहिणी युद्ध कथा त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित तथा वसुदेवहिण्डी में मिलती है। काशी, कोसल, अंग, कुणाल, कुरू और पांचाल के राजाओं ने मिथिला की राजकुमारी मल्ली के रूप, गुण की प्रशंसा सुनकर मिथिला पर आक्रमण कर दिया। मिथिला के राजा कुम्भ का इनके साथ युद्ध हुआ। ज्ञाताधर्मकथा में इस कथा का उल्लेख है। मृगावती कौशाम्बी के राजा शतानीक की महारानी थी। कोई चित्रकार उसका चित्र बनाकर उज्जयिनी के राजा प्रद्योत के पास ले गया। प्रद्योत रानी पर मोहित हो गया, उसने शतानीक के पास दूत भेजा कि या तो वह मृगावती को भेज दे अथवा बुद्ध के लिए तैयार हो जाय इसका वर्णन आवश्यकचूर्णि में हुआ है। } ११. द्रष्टव्य निशीथचूर्णी संपा० उपाध्याय मरमुनिजी प्रका०भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी । १०.२८० । १२. वृहत्कल्पभाष्य संपा० पुण्य विजयजी प्रका० आत्मानंद जैन सभा, भावनगर वि०सं० १९९८. ६६३२८ (राजा के धावक जरूरी पत्र लेकर पवन वेग के समान दौड़कर जाते थे ।) १३. निरयावलिकासूत्र, संपा० मधुकरमुनि प्रका० श्री आगम प्रकाशन समिति, व्यावर १९८५, ४३ १० १५७-१५८ १४. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति संपा० मधुकर मुनि, प्रका० श्री आगम प्रकासन समिति, ब्यावर, ३/४१-७१: १५. पद्मचरित संपा०; पं० दरबारीलाल, प्रका० माणिकचन्द्र ग्रंथ मालसमिति गिरगांव, मुम्बई, वि०सं० १९८५ ४/६७ ७४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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