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________________ मानव-संस्कृति का विकास लोक के उस ओर जाने की प्रेरणा दी थी। इससे भय, अविञ्चास, नहीं आने दी। जो लोग महावीर की सहज नग्नता को समझ नहीं दु:ख, परिताप, हिंसा आदि पर्याप्त कम हो गए थे। पाए, उनके लिए वे पहेली बन गए। उन लागों ने उन्हें देवदूष्य से महावीर स्वामी की दिव्यध्वनि में लोगों ने पहली बात यह ढंक दिया। जो देवदूष्य महावीरस्वामी को काँटों में घसीटने वाला सनी थी वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य युक्त है अर्थात् जीव जन्म, था, वह स्वयं काँटों में उलझ कर रह गया। महावीर की दिशा और मुत्यु और अमरत्व (सातत्य) युक्त है। दूसरा सूत्र यह सुना गया कि साधना का हार्द हम उनकी जीवनी और उनकी शिक्षाओं में देख मोक्ष, मुक्ति अथवा स्वतंत्रता की तीन सीढ़ियाँ-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान सकते हैं। कार्लाइल को भी शायद महावीर की हवा लग गई थी। और सम्यक्-चरित्र हैं। यदि कहें कि ज्ञान-विज्ञान का सारा चक्र इन यौगलिक संस्कृति तक उसकी दृष्टि नहीं जा सकी, परन्तु निर्दोष दो त्रिपटियों की धुरी पर घूमता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। शैशव के प्रलोभन ने उसे अवश्य प्रभावित किया। उसने कहा- “मझे हम ऊपर कह आए हैं कि आदिम मानव प्रकृति के अति पालना (झले) वाली शैशव स्थिति में लौट जाने दो (लेट मी स्लाइड निकट था, संग्रह-परिग्रह आदि की ओर उसका ध्यान ही नहीं था। बैक माई ब्रैडल)।' वह अकाम, अकिंचन, अनावृत और सरल था। उसे न लोकसंग्रह की आज संसार में जो आपाधापी, शस्त्रों की होड़, अधिकारों चिन्ता थी। न परलोक (स्वर्ग, नरक) की परवाह। पाँच महाव्रतों की छीनाझपटी, सभी क्षेत्रों में उथल-पुथल मची हुई है, अंधाधुध (सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, अहिंसा और ब्रह्मचर्य) के माध्यम से विधेयक बन रहे हैं, अधिकारों का सीमांकन और जाने क्या-क्या हो महावीर स्वामी मनुष्य को उसी नैसर्गिक अवस्था में पहुँचाना चाहते रहा है, उन सबके बदले यदि संसार महावीर के दिशा-बोध को थे। एक लंगोटी का परिग्रह भी अनर्थों का जनक हो सकता है, अपना ले तो सारी रस्साकशी का अंत हो कर स्वस्थ, स्वावलम्बी इसलिए भगवान महावीर ने तृष्णा या शल्य की वह परिस्थिति ही और सर्वोदयी समाज का उदय हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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