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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन था आत्मिक प्रसन्नता के साथ लिख रही हूं कि आज का यह दिन स्वर्णिम प्रकाश फैलाता हुआ उदित हुआ हैं कि आज मुझे आप के साधनामय जीवन के बारे में दो शब्द लिखने का अवसर मिला। आपके बारे में क्या लिखना, क्या वर्तन करना, कलम और कागज दोनों ही कम पड़ जाते हैं । जिनका जीवन सूर्य की तरह प्रकाशित है । चन्द्र की तरह सौम्य है शेर की तरह निर्भीक हैं गजराज की तरह मस्त हैं फूलों की तरह सुगंधित हैं सागर की तरह गंभीर हैं, वही जीवन वंदनीय, वर्णनीय और अर्चनीय हैं । ऐसे शांत स्वावलम्बी परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के पावनीय चरणों में कोटि कोटि वंदन। (प. पू. विदुषी साध्वी रत्नाश्री पुष्पाश्रीजी म.सा. की सुशिष्या ।) 4 जैन जगत के चमकते सूर्य साध्वी अक्षयगुणाश्री वीर प्रसूता राजस्थान की गौरवमयी धरापर अनेक महान विभूतियों ने जन्म लेकर उसे गौरवान्वित बनाया । उस महान साधु परंपरा की गौरवमयी श्रेणी में वर्तमानाचार्य राष्ट्रसंत शिरोमणि आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का अद्वितीय स्थान है । उनका जीवन सूर्य की तरह प्रकाशित, चन्द्र की तरह सौम्य है । फलों की तरह रसदार सरिता की तरह प्रवहमान, सागर की तरह गंभीर हिमालय की तरह उन्नत, गजराज की तरह मस्त तथा शेर की तरह निर्भीक है । करुणा के असीम सागर, शान्ति के निर्भय प्रचारक सत्य के तेजपुंज, छल-कपट से अनभिज्ञ क्रोध से सहस्रों मील दूर, अहिंसा के अमर पुजारी पुष्पमयी कीर्ति से विभूषित अत्यन्त पवित्र धीर-वीर गंभीर हैं, वंदनीय वर्णनीय एवं अर्धनीय हैं। चित्रकार एक सुन्दर चित्र आलौकित कर सकता है, शिल्पकार एक भव्य उन्नत स्काय स्क्रेपर भवन का निर्माण कर सकता है, धर्मोपदेशक धर्मरथ के सारथी को तैयार कर सकता है, साहित्यकार आदर्श की रचना कर सकता है परंतु ऐसे महान विभूति के विषय में लिखना, शब्दबद्ध करना, यह सूर्य को दीपक दिखाने के समान है । जो स्वयं प्रकाशित है | जहां लेखकों की लेखनियां और कवियों की कमनीय कल्पनाएं भी नवमस्तक हो जाती है । गुरुवर दीनदयाला कृपानिधि तुम करूणा की खान, परम शिवधाम सदा तुम ऐसा दो वरदान तिरण और तारण जहाज पूज्य गुरुराज ही परम शिवधाम की राह दिखानेवाले है । जिनके द्वारा किसी प्राणी का अमंगल नहीं होता, जिनकी सदैव सम प्रवृति रहती है, वे सज्जन होते हैं । जब उनमें सागर के समान गंभीर्य धरती के तुल्य सहिष्णुता, आकाश के सदृश उदारता आदि गुण प्रकट हो जाते हैं, तो वे महापुरुष कहलाते हैं । ऐसे महापुरुष अटूट आत्म विश्वास के धनी होते हैं और अपने अतुल आत्मबल के कारण महाबली कहलाते हैं । ऐसे महाबली महापुरुष ही अपने साथ जगत के अन्यान्य जीवों को तारने में उनका उद्धार करने में सक्षम होते हैं । प्रातः स्मरणीय जगत वंदनीय पूज्य आचार्य प्रवर श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. भी ऐसे ही महापुरुषों में से एक हैं । यह भारतभूमि रत्नगर्भा, रत्नप्रसूता अनेकानेक महानविभूतियों, महात्माओं महापुरुषों की उद्भव स्थली हैं । रत्नगर्भा से प्राप्त होने वाले बहुमूल्य खनिजों के समान ही यहां की महामाताओं की रत्नकुक्षि से भी अनेक नररत्नों ने जन्म लिया है और अपने साधनामय जीवन से इस धराधाम को पावन किया है । इन मानव तिलकों के आधार से ही स्थिर है यहां का सुख साम्राज्य । इन्हीं परम पवित्र महापुरुषों की महक एवं उनके द्वारा संस्पर्शित पावन पवन से ही फलता फूलता रहा है । धर्म का आधार धर्मात्मा है । धर्म एवं धर्मात्माओं का अन्योन्याश्रित संबंध है । कहा भी है "न धर्मोधार्मिकैर्षिना" हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्य ज्योति 27 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Fo Private
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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