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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ आस्था के आयाम "दशो दिशाओं में गूंज रहे हैं, गीत तुम्हारे सुबह और शाम । मंगल पावन अवसर पर स्वीकार करो शत शत प्रणाम || भारत देश संतों का देश है । भारत देश महन्तों का देश है। भारत देश अरिहंतों का देश है । भारत देश भगवंतों का देश है । इस पुण्यदेश में अनेकानेक पीर पैगाम्बर ऋषि महर्षि वीर भगवान हुए हैं जिन्होंने न केवल अपना ही कल्याण किया, किन्तु जन-जन के कल्याण हेतु कठिन पुरुषार्थ भी किया और अन्त में सफलता का वरण किया । उन्हीं महामनीषियों की लड़ी कड़ी में मेरी आस्था के आयाम परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का नाम स्वर्णिम आभा के साथ-साथ जुड़ा हुआ है । साध्वी मनीषरसाश्री आचार्य अर्थात् जिसका आचरण पवित्र हो, जो आचारवान हो वही आचार्य । आचार्य दो प्रकार के होते हैं लौकिक और लोकोत्तर पहला आचार्य । शिल्पाचार्य, गुरुकुलाचार्य, आयुर्वेदाचार्य आदि लौकिक आचार्य तथा धर्माचार्य लोकोत्तर आचार्य है । जैन धर्म में आचार्य का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है । प्रसिद्ध नवकार महामंत्र के पांचों पदों में आचार्य ठीक मध्य में देहली दीप की तरह सुशोभित है जो मध्य में होता है, वह बीच में ही होता है उसका विशिष्ट महत्त्व भी होता है। नाभि शरीर के मध्य में है। सुमेरु पर्वत मध्य में है, मालव प्रदेश भारत के मध्य में है, तो इनका अपना अपना महत्त्व भी है । जैनशास्त्र के नंदीसूत्र में आचार्य को सारथी की उपमा दी है। जैसे सारथी अपने रथ का संचालन करता है और उसे गन्तव्य स्थान पर ले जाता है ठीक उसी प्रकार साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध घोड़ों से जुते हुए संघ रूपी रथ को आचार्य रूपी सारथी संघ की बागडोर सम्हालता हुआ गन्तव्य आत्मसिद्धि के स्थान पर ले पहुंचता है । "जिणाणं तारयाण पद को सार्थक बना देता है । जो श्रेष्ठ उत्तम आचारवंत साधु होता है वह संघ की श्रद्धा का पात्र होता है। उसकी देख-रेख एवं मार्गदर्शन में सारा संघ आध्यात्मिक उन्नति प्रगति करता हुआ आगे बढ़ता है । आचार्य और संघ का सम्बन्ध फूल और डाली का संबंध है। आचार्य फल है तो संघ डाली है । "श्रमण संघ" का एक अभूतपूर्व सद्भाग्य है कि आज उसे ऐसे ओजस्वी तेजस्वी आचार्य का सान्निध्य मिला है कि जिनके जीवन में कण-कण में संयम की प्रतिष्ठा है। आपश्री ज्ञानयोगी, ध्यान योगी और सिद्धजपयोगी है आपके अन्तर मानस में स्वर्ग को धरती पर उतारने की प्रबलतम इच्छा है । इस हेतु आप जीवन के उषाकाल से ही प्रयत्नशील बने हुए हैं । ducatice आपश्री की स्वास्थ्य सुषमा सम्यग् प्रकार से जगमगाती रहे आपकी छाया सदा मुक्ति पर बनी रहे और आप स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन को प्राप्त हों । मेरी आस्था के भाव पुष्प आपश्री के चरण कमलों में समर्पित करती हूं। इन आस्था पुष्पों में भले ही मनमोहक सुगन्ध न हो, आकर्षिक रूप रंग न हो, परन्तु ये श्रद्धा पुष्प अपने भाव रूपी नीर से सिंचित है, आचार्यश्री के प्रति गहरी आस्था और निष्ठा से भीगे हुए हैं । अतः जो कुछ मेरे पास है, जैसे भी हैं, जितने भी हैं सेवा में समर्पित हैं, स्वीकार करें । पूज्यवर ! मुझे आशीष के साथ यह मंगलमय वरदान दीजिये कि मैं भी आपके चरणों का अनुसरण, अनुकरण करके संघ सेवा करती हुई अपने चरमलक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर सकूं । 'आस्था के आयाम ! चिरयुग तक करते रहें, धरा पर, जिनवाणी का विमलोद्योत । और बहा दो इस धरती पर, आध्यात्मिकता का नव स्रोत || हेमेन्द्र ज्योति ज्योति 25 हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति www.jainelibrary.org
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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