SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ 4 निस्पृह व्यक्तित्त्व प्रवर्तिनी साध्वी मुक्तिश्रीम. आलोचना व्यक्ति को बुरी लगती है और प्रशंसा अच्छी । प्रायः प्रत्येक व्यक्ति ऐसा ही पसंद करते हैं । कुछ विरलें ही व्यक्ति ऐसे होते हैं जो न तो अपनी प्रशंसा पर प्रसन्न होकर मुस्कराते है और न ही निन्दा या आलोचना करने पर नाराज अप्रसन्न अथवा क्रोधित होते हैं । श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. एक ऐसे ही विरले व्यक्ति है। वे प्रशंसा आदि से सदैव दूर ही रहते हैं । उन्हें न निन्दा से मतलब होता है और न अपनी प्रशंसा से, वे प्रत्येक परिस्थिति में निस्पृह बने रहती हैं । उन्हें किसी से कोई मोह भी नहीं है । दर्शनार्थी आते हैं तो निस्पृह भाव से धर्मलाभ / आशीर्वाद प्रदान कर देते हैं । उनके मन में अपने शिष्यों तक के लिये कोई ममत्व नहीं है । वे सदैव सबको निस्पृह भाव से धर्माराधना करने की प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं । संयम साधना के पचास-साठ वर्ष व्यतीत हो जाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती हैं । अपनी संयम साधना के इतने वर्ष आचार्यश्री ने व्यतीत किये हैं । उस उपलक्ष्य में उनके सम्मान में एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन होने जा रहा है। यह प्रयास स्तुत्य है । मैं इस प्रयाय की सफलता की मंगलकामना करती हूं । श्रद्धेय आचार्यश्री सुदीर्घकाल तक स्वस्थ रहते हुए हमें आशीर्वाद/मार्गदर्शन प्रदान करते रहे यही शासनदेव से प्रार्थना है। पूज्य आचार्यश्री चरणों में सविनय वंदन। (शब्द ससीम : गुण असीम - उपप्रवर्तिनी साध्वी स्वर्ण, अम्बाला शहार करुणावतार, हे दिव्य मूर्ति, हे अमर साधक हे तपोमूर्ति, हे सत्य अहिंसा के संस्थापक, हे मानवता की अमर मूर्ति हे जगनायक लोकोद्वारक, हे गुरुवर मेरे हृदयाधीश वन्दन मेरे स्वीकार करो, जग को दे दो शुभाशीष || महापुरुषों का व्यक्तित्व बहुत ही अद्भुत और निराला होता है । समाज की संकीर्ण सीमाओं में आबद्ध होकर भी वे अपना सर्वतोमुखी विकास कर जन-जन के मन में अनन्त आस्था समुत्पन्न करते हैं, उनकी दिव्यता, भव्यता और महानता को निहार कर जन - जन के अन्तर्मानस में अभिनव आलोक जगमगाने लगता है, वे समाज की विकृति को नष्ट कर संस्कृति की ओर बढ़ने के लिए आगाह करते हैं । वे आचार और विचार में अभिनव क्रांति का शंख फूंकते हैं, वे अध्यवसाय के धनी होते हैं, जिससे कंटकाकीर्ण दूर पथ भी सुमन की तरह सहज, सुगम हो जाता है, पथ के शूल भी फूल बन जाते हैं विपत्ति भी संपत्ति बन जाती है, उन्हीं महापुरुषों की पावन पंक्ति में आते हैं -आचार्य श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.। आचार्य श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म. आज के युगपुरुष हैं, क्योंकि युग पुरुष अपने युग का स्रष्टा और द्रष्टा होता है । उसके भीतर सम्पूर्ण युग चेतना का आलोक प्रज्वलित रहता है । उसकी वाणी युग के कल्याण एवं निर्माण के लिए होती है, उसके कर्म युग के उत्थान और अम्युदय के स्तम्भ बनते हैं । युग पुरुष का समस्त जीवन, लोक-परलोक के हित और कल्याण के लिए समर्पित होता है । गुरुदेव का जीवन भी युग पुरुष के सदृश है । ऐसे युगपुरुष के चरणों में जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयन्ती के अवसर पर मेरी, मन्तव्यमयी मंगल मनीषा स्वीकृत हो । (साध्वी श्री राजकुमारीजी म. साध्वी श्री संतोषजी म., साध्वी श्री किरणजी म., साध्वी श्री कमलेशजी म के भी ऐसे ही भाव हैं) हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 15हेमेन्द ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति www.armalbirava
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy