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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ बागरा नगर : इतिहास के आलोक में 5 -पुखराज भण्डारी बागरा नगर जालोर - सिरोही राजमार्ग पर जालोर से 20 कि.मी. दक्षिण में लगभग 2500 घरों का विशाल कस्बा हैं । इस गांव में 12वीं तक पढ़ाई के लिए 6 स्कूलों, अस्पताल, रेल्वे स्टेशन, जल सप्लाई संयंत्र, टेलिफोन एक्सचेंज, बैंक पशु-चिकित्सालय, पोस्ट आफिस, बस स्टेण्ड, पुलिस थाना, तालाब एवम् बस स्टेण्ड पर विशाल बाजार आदि अवस्थित हैं। बागरा एक ऐतिहासिक नगर है । राजस्थान के इस इतिहास प्रसिद्ध बागरा नगर के सेठ बोहित्थ की परम्परा में अनुक्रम से सेठ अश्वेश्वर यक्षनाग, वीरदेव के वंशज श्री उदयन (उदा) मेहता हुए । वे गुजरात की राजधानी कर्णावती नगरी में जाकर बस गये और अपनी अद्वितीय बुद्धिमता के बल पर उन्नति कर गुर्जर नरेश श्री सिद्धराज और श्री कुमारपाल के महामंत्री के गौरवशाली पद पर आरूढ़ हुए । श्री उदयन मेहता सं. 1208 में स्वर्गवासी हुए और उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनके द्वितीय पुत्र महामंत्री बाहड ने वि.सं. 1213 में श्री शत्रुजय तीर्थ का उद्धार करवाया । (जैन परम्परा नो इतिहास भा-2. पृष्ठ 644 लेखक – मुनि श्री दर्शनविजयजी - त्रिपुटी) बागरेचा गोत्र - इसकी उत्पत्ति सोनगरा चौहानों से हैं | आज का बागरा गांव ही पहले का बगडा गांव होगा। इसी गांव के नाम से यहां के निवासियों के जैनधर्म स्वीकार करने पर इसका नाम बागरेचा पड़ा । (ओसवाल वंश - अनुसंधान के आलोक में – पृष्ठ 116 लेखक - श्री सोहनराज भंसाली) वि. सं. 1730 में बागरा में एक लघु जिनालय था जिसकी जगह आज संगमरमर के पाषाण से निर्मित विशाल 24 जिनालय उन्नत भाल किये सुशोभित है । प्राचीन मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान मूल गंभारे के बाहर के सभामण्डप में विराजमान है जिन पर "प्राचीन मूलनायक" नाम लिखा हैं । गर्भगृह में तीनों जिनबिम्ब श्री पार्श्वनाथ भगवान के हैं । सभामण्डप में पंचतीर्थी और परिक्रमा में 23 जिनेश्वरों के बिम्ब अनुक्रम से विराजमान हैं। बायें और अलग से गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का गुरुमंदिर है । संपूर्ण संरचना नयनाभिराम, दर्शनीय एवम वैज्ञानिक ढंग से की गई हैं। मंदिरजी में प्रवेशद्वार से घुसते ही बायीं ओर चंदन केसर घिसने की जगह दीवाल पर एक शिलालेख निम्न लिखित लिखा हुआ है : "त्रयोविंशतितम श्री पार्श्वनाथ जिनालय का भव्य शिललिख" 'जगतपूज्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः' प्रथम यहां पर सं 1730 का विनिर्मित श्री पार्श्वनाथ प्रभु का छोटे शिखरवाला मंदिर था । उसके जीर्णशीर्ण हो जाने से गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के सदुपदेश से उसका जीर्णोद्धार आरसोपल से बागरा नगर के श्री संघ ने करवाया और उसमें विराजमान करने के लिए श्री पार्श्वनाथ प्रभु की भव्य तीन प्रतिमायें की अंजनशलाका सं 1958 माघ सुदी 13 के दिन शुभ लग्नांश में सियाणा में गुरुदेव के करकमलों से ही करवाई । सं 1972 माघ सुदी 13 के दिन अष्टदिनावधिक महा महोत्सव के साथ श्रीमद् धनचन्द्र सूरीश्वरजी के पास प्रतिष्ठा कराके श्री पार्श्वनाथ प्रभु की तीन प्रतिमाएं उक्त जिनालय में विराजमान की गई । मूल पार्श्वनाथ जिनालय के चतुर्दिक विनिर्मित देव कूलिकाओं में वि. सं. 1998 मगसर सुदी 10 के दिन महामहोत्सव पूर्वक आचार्यदेव श्रीविजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के कर कमलों से भव्य नव्य प्रतिमाओं की शास्त्रोक्त विधि से प्राण प्रतिष्ठा करवा के जिन प्रतिमायें गुरुबिम्ब आदि के स्थापना श्री संघ बागरा ने करवाई। श्री राजेन्द्र सूरि सं. 341 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 129 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Friatel
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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