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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ अखण्ड णमोकार गीत - दिलीप धींग णमोकार परम सत्य का स्वरूप है । सम्पूर्ण सम बनें विषम से विषम, अधमा अधम प्राणी भी बनें हैं श्रेष्ठतम, खण्ड - खण्ड काल का अखण्ड रूप है ।। ध्रुव ।। निरापद प्रभाव अनूठा अचूक है | जपा ध्याया जा रहा अनादि काल से, खण्ड - खण्ड ।। 7 ।। जपा ध्याया जायेगा अनन्त काल तक, क्षमा - शान्ति - शील का होता प्रसार है, प्रति समय का ये समयजयी रूप है । मिटता मिथ्यात्व का महा अंधकार है, खण्ड - खण्ड .... ।। 1 ।। सम्यक्त्व का ज्योतिपुंज सूर्य - रूप है । खण्ड - खण्ड || 8 ।। नित प्रति जो णमोकार जपता ध्याता है, नित प्रति वो नये - नये अर्थ पाता है, आदमी को इच्छाओं ने रखा है जकड़, मन के चोर को कौन पाता है पकड़? अनन्त रहस्यों से भरा सन्दूक है । मन का पंचेन्द्रियों का वो बनता भूप है । खण्ड - खण्ड || 2 ।। खण्ड - खण्ड ........... || 9 || मानादि कषायों की विदाई करें, णमोकार कहता खुद पे भरोसा करो, धर्म – मूल की ‘णमो' से सिंचाई करें, नहीं निमित्तों को व्यर्थ कोसा करो, शुष्क धरा पर भी हरा - भरा रूख है । उपादान प्रबल स्वयं का स्वरूप है । खण्ड - खण्ड ... || 10 ।। खण्ड - खण्ड ....... || 3 ।। अटल - आस्था परम विश्वास चाहिये, जिसकी णमोकार से सच्ची प्रीत है, एक तीव्रतम अबुझ प्यास चाहिये, उसकी हार में भी छिपी हुई जीत है, करो तृप्त आत्मा को लगी भूख है । हर रोज नया – सूर्य नई – धूप है । खण्ड - खण्ड ... || 11 ।। खण्ड - खण्ड ... || 4 || आत्म - शान्ति विश्व - शान्ति की है कामना, पंच - परमेष्ठी से यही अभ्यर्थना, कई जिन्दगियों में फूल खिल गये, सत्य - प्रेम - अहिंसा की खिली धूप है । भयंकर से भयंकर भी विघ्न टल गये, खण्ड - खण्ड... || 12 || जिन्दगी की यात्रा का संबल अनूप है । पीना पड़ा जब भी जहर पिया पच गया, खण्ड - खण्ड .... || 5 || महाप्रलय से "दिलीप धींग" बच गया, प्रेरणा का पुंज परम मित्र - रूप है । भयावह वीरानी में सुरम्य गाँव है, खण्ड - खण्ड . || 13 ।। चिलचिलाती धूप में सुहानी छाँव है, णमोकार परम सत्य का स्वरूप है । सर्द सुबह की गुनगुनी धूप है । खण्ड - खण्ड काल का अखण्ड रूप है । खण्ड - खण्ड .. || 6 ।। बम्बोरा, जि - उदयपुर (राज.)- 313 706. हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति 119 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Kangar
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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