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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ न विहार से लाभ - साध्वी मोक्षयशाश्री मेरे गुरु भगवन्तों ने मुझे विहार करने का कहा है और तुम्हारे डॉ. तुम्हें कहते हैं कि तुम मोटे हो, तुम्हें अपनी Body Maintain रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर walking में जाओ और Exercise करो । विहार में जब भी चलना चाहें तब चल सकते हैं विहार कर सकते हैं । और जहां इच्छा हुई वहां रूक सकते हैं । सब जगह हमारे अपने ही घर है | Train की तरह कोई Fix Time नहीं कि 2.15 की Train है या 4.30 की Train हैं जल्दी चलो नहीं तो गाड़ी चूक जायेंगे । ऐसी बात हमारे में नहीं होती हैं । तुम लोग गांव, शहर घूमने जाते हो और कितना पैसा खर्च हो जाता है । ध्यान ही नहीं रहता है । और उसमें भी सब कुछ देखने को नहीं मिलता है । हमको तो विहार में जंगल में मंगल, नदी, नाला, पहाड़, टेकरी, बगीचा आदि बहुत कुछ free of Charge देखने को मिलता है । जामुन, आम, चीकू, सीताफल, पपैया आदि फलों से लदे हुए पेड़ भी दिखते हैं चाहे तो खा भी सकते हैं, मगर हमको तो आप जैसे श्रावक लोगों से वापरने के लिए बहुत कुछ मिल जाता हैं, इसलिए इन सबकी इच्छा ही नहीं होती हैं । किसी भी दिन Train आदि की भीड़ में फंसने का नहीं, कभी एक्सीडेन्ट का डर नहीं कभी गाड़ी चूकने का भय नहीं । गांव-शहर का अलग-अलग खान-पान, रहन-सहन, भाषा आदि देखने व समझने (सीखने) को मिलता है । सुबह उठकर मजे से सूट - बूट पहेरी (पहनकर) Walking करने जाने की तरह, हम अपनी 'उपधी' अपने शरीर पर बांधकर ठण्डी ठण्डी हवाओं के साथ विहार करते रहते हैं | किसी भी प्रकार के त्रस या स्थावर सूक्ष्म या बादर, एकेन्द्रिय से लगाकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों की किसी भी प्रकार से हिंसा नहीं । गांव-शहर में उपदेश देकर सबको संसार की असारता बताकर तारने का प्रयास करते हैं । "स्वयं तरिये, दूसरो को तारिये' । जिनशासन का प्रचार प्रसार करते हुए ऐसे आनन्दित विहार करते हुए देखकर दूसरी जाति के लोग भी हमको सम्मान देते हैं, बुलाते हैं अपने घर में या आस-पास में रहने की व्यवस्था करवाते हैं । हमारे पास आकर हमारे आचार विचार पूछते हैं । और जब हम उनको बताते हैं हमारी क्रिया-काम आदि के बारे में, तो वे भी जैन बनने के लिए तैयार होते हैं । और ऐसे अद्भुत जिनेश्वर के मार्ग को पाकर कदम-कदम पर शासन की अनुमोदना करने लगते हैं । आज जो जैन साधु - साध्वी समुदाय का विहार होता है । यह भी एक तरह से जिनशासन की प्रभावना ही हैं । कितने ही लोग सम्यक्त्व को प्राप्त करते हैं, बोधि बीज का रोपण करते हैं और इसी तरह से परम्परा चलती रहती है । ___विहार का आनन्द लेने के लिए लोग छ: री पालित संघ निकालते हैं । जिसमें आराम से विहार होता है और आनन्द भी आता है | और विहार में कितना आनन्द हैं ये बात मैं बता नहीं सकती हूं, इसलिए आपको भी इसका अनुभव करना हो तो अवश्य ही जब भी कोई म. सा. का साथ मिले, विहार का आनन्द जरुर लेना । विहार करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी बीमारी नहीं आती है । एक गांव की हवा-पानी अच्छी नहीं लगती हैं तो जल्दी ही दूसरे गांव की तरफ विहार कर सकते हैं । परन्तु बेचारे गृहस्थी की हालत क्या होती है? वह तो बार बार घर बदल नहीं सकता हैं । इसलिए अवश्यमेव संयम ग्रहण करके हमेशा के लिए आजीवन विहार का आनन्द लूटते रहों । यदि अभिलाषा । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति (114 हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति Valeeshma-Usage
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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