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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ के अपर्याप्त उल्लेख को हम इन महत्वपूर्ण और स्पष्ट प्रमाणों के सामने अधिक महत्व नहीं दे सकते । दूसरे में द्वारका के पास समुद्र न होने का हमें एक और आगमिक प्रमाण मिलता है । जब श्रीकृष्ण को यह पता चलता है कि लवण समुद्र के पार धातकी खण्ड में अमरकंका के नरेश पद्मनाथ द्वारा द्रौपदी का अपहरण कर लिया गया है तब वह पांचों पाण्डवों से कहते हैं कि तुम लोग अपनी सेना सहित पूर्व वेताली पर मेरी प्रतीक्षा करो, मैं अपनी सेना सहित तुमसे वहीं मिलूंगा । पूर्व निश्चयानुसार श्रीकृष्ण पाण्डवों से वहीं पर पूर्व वेताली में मिलते हैं और वहां से लवण समुद्र पार कर अमरकंका पहुंचते हैं । यदि द्वारका समुद्र किनारे होती, तो उन्हें द्वारका छोड़ पूर्व वेताली से समुद्रपार करने की कोई जरूरत नहीं होती ।" उसके उत्तर में कहा जा सकता है कि जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य में अनेक स्थलों पर द्वारका के सन्निकट समुद्र होने का उल्लेख हुआ है । ऐसी स्थिति में उपर्युक्त कथन युक्ति युक्त प्रतीत नहीं होता । रहा प्रश्न अमरकंका गमन का, सम्भव है इसके पीछे कुछ अन्य कारण रहा हो । इस कारण से ही द्वारका को समुद्र के किनारे नहीं मानना तर्क संगत नहीं है । द्वारिका के विनाश की भविष्यवाणी:- जरासंध के वध के पश्चात् श्रीकृष्ण ने तीन खण्ड की साधना कर चारों ओर अपनी विजय पताका फहरा दी और द्वारिका आकर सुखपूर्वक तीन खण्ड का राज करने लगे। भगवान अरिष्टनेमि विचरण करते हुए द्वारिका पधारे । श्रीकृष्ण उनकी सेवा में पहुंचे । वंदन करने के पश्चात् श्रीकृष्ण ने पूछा - "भगवन बारह योजन लम्बी और नव योजन चौड़ी साक्षात् देवलोक के समान उस द्वारिका नगरी का विनाश किस कारण से होगा? अरिहंत भगवान अरिष्टनेमी ने उत्तर दिया - हे कृष्ण ! निश्चय ही बारह योजन लम्बी और नव योजन चौड़ी स्वर्गपुरी के समान इस द्वारिका नगरी का विनाश मदिरा, अग्नि और द्वैपायन ऋषि के कोप के कारण होगा। द्वारिका के भविष्य कथन को सुनकर श्री कृष्ण चिंतित हो गये । उन्होंने सोचा कि वे स्वयं तो दीक्षा नहीं ले सकते। भगवान् अरिष्टनेमी ने उनके मनोगत भावों को जानकर कहा कि तुम्हारा विचार सत्य है । वासुदेव दीक्षा लेने में समर्थ नहीं होते । इस पर श्रीकृष्ण ने पुनः जिज्ञासा प्रकट की कि वे उस शरीर का त्याग कर कहां जायेंगे? भगवान् ने बताया जिस समय द्वारिका का विनाश होगा उस समय तुम दक्षिण दिशा के किनारे बसी पाण्डु मथुरा जाने के लिए निकलोगे किंतु मार्ग में जराकुमार के बाण से तुम्हारी मृत्यु होगी और तुम काल कर तृतीय पृथ्वी में उत्पन्न होओगे और उत्सर्पिणी काल में अमय नामक तीर्थकर बनोगे। उधर द्वैपायन ऋषि ने भी भगवान की भविष्यवाणी सुनी । द्वारिका और यादवों की रक्षा के लिये वे वन में चले गये। श्रीकृष्ण ने द्वारिका में आकर मदिरापान निषिद्ध कर दिया और विद्यमान मदिरा कदम्बवन के मध्य कादम्बरी गुफा के समीपवर्ती शिलाकुण्डों में फिंकवा दी । श्री कृष्ण ने भले ही मद्य निषेध कर मदिरा को अन्यत्र डलवा दिया हो किंतु जो होनहार होती है, वह टलती नहीं है । जहां पर मदिरा डाली गई थी, वहां विविध प्रकार के सुगन्धित पुष्पों के पेड़ पौधे थे। उन पुष्पों की सौरभ से वह मदिरा पूर्व से भी अधिक स्वादिष्ट हो गई । संयोग ही कहा जायेगा कि वैशाख मास में शाम्बकुमार का एक अनुचर भ्रमण करता हुआ उस ओर पहुंच गया । उसे प्यास लगी तो उन कुण्डों में से एक की मदिरा पानी समझ कर पी गया । वह मदिरा उसे स्वादिष्ट लगी तो उसने कुछ मदिरा एक पात्र में भरी और उसे लेकर शाम्बकुमार के पास पहुंचा । शाम्बकुमार उस स्वादिष्ट मदिरा को पीकर अतिप्रसन्न हुआ । उसने मदिरा के प्राप्ति स्थान के बारे में पूछा। द्वैपायन ऋषि को मारना :- शाम्बकुमार को उसके अनुचर ने मदिरा प्राप्ति का स्थान बता दिया । शाम्बकुमार यादव कुमारों को लेकर कादम्बरी गुफा के निकट आया । उन्होंने वहां मदिरापान किया और इधर उध र घूमने लगे। उसी अनुक्रम में उन्होंने द्वैपायन ऋषि को ध्यान मुद्रामें देखा । द्वैपायन ऋषि को देखते ही उन्हें स्मरण हो आया कि यही ऋषि द्वारिका का विनाश करने वाला है । इसे मार दिया जाय तो द्वारिका विनाश से बच हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 92 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Seasanalalse
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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