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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ। गणपतराज बोहरा धर्मपाल जैन छात्रवास की स्थापना रतलाम में की जहां ग्रामीण धर्मपाल छात्र व छात्राओं को निशुल्क आवास, भोजन एवं पुस्तकों की व्यवस्था की गई है ताकि यह अछूत दलित कहलाने वाले छात्र एवं छात्राएं शैक्षणिक दृष्टि से उन्नति करें । वर्तमान में श्री कोमलसिंहजी कूमट इस छात्रवास की देखरेख करते हैं । इसी तरह एक 'जैन जवाहर शिक्षण संस्था, कानोड - ये भी स्थापित की गई। दलितों के इस उत्थान कार्य के फलस्वरूप ही इन पैंतीस वर्षों में 'धर्मपाल' के कई व्यक्ति पंचायतों के सरपंच है, कई परिषदों के सदस्य एवं प्रधान पदों पर आसीन हुए हैं । कई धर्मपाल, युवक विभिन्न विभागों के प्रभारी व प्रशासनिक अधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित है । समता भवनों का निर्माण धर्मपालों के उत्थान के लिए श्री अखिल भारतीय साधु मार्गीय जैन संघ ने समता के प्रचार एवं प्रसार के लिए गुराडिया शिवपुर, डेलनपुर, हरसोदन, तिलावद, गोविंद लाभगर, धमनार और मक्सी में समता भवन का निर्माण करवाया ताकि जैन धर्म और जैन संस्कृति का विकास हो । लोगों को समय समय पर जैन धर्म एवं दर्शन की शिक्षा दी जाती है। स्वास्थ्य सेवा बलाई जाति के लोगों को 'धर्मपाल' बनाकर जैन समाज ने दलितों को केवल सम्मान ही नहीं दिया किन्तु उन लोगों के स्वास्थ्य की चिन्ता भी थी । बताया जाता है कि इस कार्य हेतु 'जवाहर चल चिकित्सालय पद्म श्री नन्दलाल बोर्डिया के निर्देशन में आरम्भ किया गया था । यह कार्य स्वर्गीय आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज के प्रवचनों के फलस्वरूप ही आरम्भ हुआ था और पद्मश्री डॉ. बोर्डिया ने अपनी टीम के साथ गांव गांव घूमकर रूग्ण व्यक्तियों का निशुल्क परीक्षण कर चिकित्सा प्रदान करते थे । वास्तव में डॉ. बोर्डिया की यह सामाजिक सेवा केवल प्रशंसनीय ही नहीं, अनुकरणीय है । क्या वर्तमान में जैन समाज के चिकित्सक एक संगठन बनाकर क्या दलितों के बीच में जाकर यह कार्य नहीं कर सकते। जहां चाह है वहां उपाय भी है । आचार्य श्री जवाहरलालजी एवं आचार्य नानालालजी भी उपरोक्त सेवाओं के कारण ही गांवों में सवा लाख के करीब बलाई जाति को श्रीमहावीर का अनुयायी बनाया है और समाज में उन्हें एक गौरव पूर्ण स्थान दिलाया है। क्या हिन्दू धर्म के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य समाज के इससे कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं है । सुमेरमुनिजी का दलित उत्थान सुमेरमुनिजी ने खटीक जाति में जागृति का कार्य किया । कहा जाता है कि स्वर्गीय सुमेरमुनि ने खटीक समाज को जागृत करके जैसे नानालालजी ने 'धर्मपाल' नाम दिया वैसे ही सुमेरमुनिजी ने खटीक जाति को 'वीरबाल' नाम देकर खटीक जाति का उद्धार किया और जैन समाज में समाहित कर आदर योग्य स्थान दिलाया । खटीकों ने भी सप्त व्यसनों को छोड़ा और महावीरजी द्वारा बताए पथ को स्वीकार किया किन्तु सुमेरमुनिजी के देहावसान के तत्पश्चात् सुमेरमुनिजी द्वारा प्रज्वलित मशाल में स्नेह डालने वाले नहीं के बराबर रहे और 'वीरबाल' समाज, 'धर्मपाल समाज' की तरह एक आन्दोलन नहीं बन सका परन्तु यह सत्य है कि विक्रम संवत 1970 में भीलवाड़ा, सवाई, माधोपुर, नसीराबाद और पिपलिया में खटीकों ने अपना पैतृक धन्धा त्यागकर अहिंसा की शरण ली और जैन धर्म को स्वीकार किया । हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 83. हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Private Female
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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