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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ णमोकार महामंत्र और उसकी उपादेयता -डॉक्टर संजीव प्रचंडिया 'सोमेन्द्र' | प्रत्येक मंत्रों की अपनी पृथक महिमा हुआ करती है । ये सभी मंत्र प्रायः किसी न किसी अस्तित्व पर आधारित होते हैं । इन मंत्रों के माध्यम से प्राणी लौकिक मनोभावनाएं पूर्ण करता है । इसीलिए वे अत्यधिक लोकप्रिय हो जाते हैं। णमोकार महामंत्र इन मंत्रों की तुलना में अपना विशिष्ट महत्त्व रखना है। यह व्यक्ति या उसकी सत्ता पर नहीं अपितु गुणों पर आधारित महामंत्र है । प्रत्येक धर्म/सम्प्रदाय के पास महामंत्र / मंत्र हुआ करते हैं । णमोकार महामंत्र उनसे हटकर एक विशिष्ट प्रकार का महामंत्र है। यह लोक और पर लोक में सुख शांति और समृद्धि का आधार रखता है। ये मंत्र क्या है? तथा इनका प्रयोजन क्या है? पहिले यह समझ लेना बहुत जरूरी है । ध्वनि की तरंगे खुले आकाश में बिन्दु से घूमती हुई गोल गोल आकार में फैलती जाती है। इन तरंगों के माध्यम से ही हमारे शरीर की प्रतिक्रिया प्रभावित हो जाती है । जैसे युद्ध के लिए वीर रस के माध्यम से सेना में एक ऐसा वातावरण फैलाया जाता है जिससे कि सैनिकों में एक अजीब सा उत्साह भर जाता है । वे उस उत्साह के माध्यम से प्रतिद्वन्दी / शत्रु से लड़ने के लिए तत्पर हो जाते हैं । तो यह सब उसी ध्वनि तरंगों का कमाल ही है । पर सूक्ष्म रूप में, यह क्रम सतत गतिशील रहता है। आज ध्वनि विज्ञान ने भी यह सिद्ध कर लिया है। कि इस जगत में प्रस्फुटित कोई भी ध्वनि कभी भी नष्ट नहीं होती । अपितु वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जिस रूप में विस्तृत होती है, उसी रूप में प्रत्यावर्तित हो, वातावरण को प्रभावित करने लगती है । अनेक वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर लिया है कि यदि जल पिलाने वाले के भाव में खिन्नता है तो उसके जल पीने से मन में खिन्नता कहीं न कही स्थापित हो जाती है । ऐसे ही यदि सद्भाव या मंगल कामना से भरा हुआ कोई आदमी जल की एक मटकी / गगरी को कुछ देर हाथ में लिए रहे तो उस गगरी / मटकी का जल गुणात्मक रूप से परिवर्तित हो जाता है । (रसायनिक नहीं) जब यही जल, मंगल गीत गाकर वृक्षों पर सिचिंत किया जाता है तो निश्चित ही वे वृक्ष फल-फूल आदि से लद भर जाते हैं। कितना सपाट सम्बन्ध है यह कि मंगल / अमंगल भावनाओं के कारण जल में / वायु में रूपान्तर संभव है। यही है सही अर्थों में मंत्रों की आधार शिला मंत्रों के बीजाक्षर जब आकाश में तैरते हैं तो आकाश में गुणात्मक अन्तर होने लगता है । इसलिए मंत्रों से यह सिद्ध-व्यक्तित्व जब कभी मुखातिव होता है तो सामने वाले का मन और हृदय स्वतः परिवर्तित कर देता है। इसलिए भगवान महावीर के सामने कोई भी विरोधी टिक नहीं पाता था। क्योंकि उसमें विद्यमान सारे विरोध स्वतः ही शमित हो जाते थे । तो महामंत्र के शुद्ध उच्चारण से शनैः शनैः वातावरण में धार्मिक वृत्ति जन्म लेने लगती है। जैन संस्कृति और धर्म में णमोकार महामंत्र का अपना महत्व है। जैसा कि मैं पहिले भी कह चुका हूं कि यह मंत्र गुणों की उपासना करता है किसी व्यक्ति विशेष की नहीं । अतः इस विशिष्ट महामंत्र णमोकार की हम यहां क्रमशः चर्चा करेंगे पहिला, 'अरिहंतो को नमस्कार हो । अर्थात् जिसके सारे शत्रु समाप्त हो गए हैं। जिसके भीतर अब कुछ भी नहीं जिससे कि उसे लड़ना पड़े । लड़ाई समाप्त हो गयी । भीतर अब न तो बैर रहा न क्रोध रहा, न काम या लोभ रहा और न ही अहंकार कोई शेष न रहा। 'अरिहंत मूलतः नकारात्मक शब्द है । अर्थात् निषेध की सीमा नहीं आंकी जा सकती सकारात्मक की सीमा ठहरायी जा सकती है। इसलिए पहिले अरिहंत को रखा गया है। क्योंकि उनकी कोई सीमा न रही। कोई आकार न रहा। दूसरा, णमो सिद्धाणं' अर्थात् सिद्धों को नमस्कार हो । सिद्ध अरिहंत से छोटा नहीं होता। दोनों में कोई फर्क नहीं है। अरिहंत वह जिसने कुछ खो दिया । छोड़ दिया। Education laternational हेमेन्द्र ज्योति ज्योति 70 हेमेजर ज्योति मेजर ज्योति janelibra
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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