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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ का सार धर्म है, धर्म का सार आत्मज्ञान है, और आत्मज्ञान का सार 'संयम' है । संयम के समग्र स्थान और समग्र संयमी आत्माएं नवकार के पांच पदों में समाहित हैं । अतः यह नवकार समग्र चौदह पूर्व के ज्ञान का सार है, इसमें संदेह न करो। दूसरी अपेक्षा विचारे लोक का सार धर्म है, धर्म का सार परम धर्म अहिंसा है और इस अहिंसा के पूर्ण पालक सभी महापुरुष और महान आत्माएं इस परमेष्ठी महामंत्र में गर्भित होने से भी इसे चौदह पूर्व का सार कहा गया है । सभी आत्मार्थियों के लिए यह त्रिकाल स्मरणीय एवं उपासनीय अति उत्तम महामंत्र है । इससे उत्तम संसार में कुछ नहीं है । इसके लिए कहा गया है - “मंत्र संसार सार, त्रिजगदनुपम, सर्व पापारि मंत्र | संसारोच्छेद मंत्र, विषम विषहर, कर्म निर्मूल मंत्र || मंत्र सिद्धि प्रदानं, शिवसुख जननं केवल ज्ञान मंत्र | मंत्र श्री जैन मन्न, जप-जप जापित जन्यनिर्वाण मंत्र" अर्थात् यह महामंत्र संसार का सार है, तीनों लोक में अनुपम हैं महान चमत्कारी है, समस्त पापों का अरि है, संसार बंध का उच्छेदक है, भयंकर से भयंकर विष का नाशक है कर्मों का निर्मूल कर्ता है, सभी सिद्धियों का प्रदायक है इसलिए बार बार इस मंत्र का जाप करना चाहिए, जिससे निर्वाण सुख की प्राप्ति होवे । यह परमेष्ठी महामंत्र सर्व कर्म काटण हार,मिथ्यात्व तिमिर विदाहणहार, बोध बीज का दातार अजर, अमर पदवी का देवणहार मनेच्छा का पूर्णहार, चिंता का चूर्णहार, भवोदधि तारण दुख विदारण कल्याणिक,मंगलिक, वंदनीय पूजनीय है । यह मंत्र शक्ति डायणी सायणी, व भूत विहंडणी मोह विखंडणी, मोक्ष निमंडेणी, कर्म रिपु दण्डणी और अष्ट सिद्धिनव निधि का दातार है। इस महामंत्र णमोक्कार के स्मरण मनन-चिंतन से मति निर्मल और निष्पाप होती है और पापात्मा भी पवित्र होती है। समस्त विघ्न एवं दुखों को क्षणमात्र में नष्ट करने की इसमें अद्भुत शक्ति है । अतः आत्म साधकों को सारे मंत्र, तंत्र, देवी देवता, पीर पेगम्बर,बाबा सन्यासी आदि को छोड़ इस मंत्र राज को ही त्रियोग सहित चित से पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ सच्चा शरणभूत समझ सदैव जपना व स्मरण करना चाहिए । भव भव में इसी को शरण हो ऐसी उत्तम भावना भावे । _ अंत में महामंत्र णमोक्कार पर एक भावपूर्ण मुक्तक व नित्य बोलने योग्य स्तुति यहां प्रस्तुत करते हुए लेख पूर्ण करता हूं। मुक्तक एकता का जो प्रतीक, शब्द शब्द है सटीक | णमोकार महामंत्र, अनादि अनंत है || उपकारी है अनंत, ज्ञानी श्री अरिहन्त | पूर्ण शुद्ध बुद्ध मुक्त, सिद्ध भगवन्त है || संघनायक आचार्य, ज्ञानदाता उपाध्याय | महाव्रती निस्पृही, निग्रंथ संत है || बनजाओ निर्विकार, जापो ध्यान नवकार | पंच परमेष्ठी को, वंदन अनंत है ।। हेमेन्द ज्योति* हेमेन्य ज्योति 63हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति । Jitionindia
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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