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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ कविताएँ छन्द में णमोकार मंत्र पर लिखी है। णमोकार मंत्र से चमत्कारी अनुभवों को बताते हुए वे स्वयं लिखते हैं कि एक बार 27 मार्च 1997 को कैथन (कोटा) राजस्थान के मेले में आयोजित कवि सम्मेलन में बोलने को माइक पर खडा हुआ कि मंच पर गिर पड़ा । तत्काल डाक्टर आए और मुझे लाश की तरह कार में डाल अस्पताल पहुंचाया गया । मस्तिष्क का एक्सरे हुआ और बताया गया कि मस्तिष्क को लकवा मार गया था । किंकर्तव्य विवेक शून्य होकर भी सूक्ष्म चेतना में मैंने णमोकार मंत्र का अजपा जाप चलाया । शून्य चेतना शनैः शनैः वापिस आने लगी । भूला बिसरा जब याद आने लगा | सभी को आश्चर्य हुआ कि डाक्टरों के अनुसार जिस इलाज के लिए साल 6 माह लगते वह काम 6 दिन में हो गया । यह सब णमोकार मंत्र जाप का चमत्कार था । मुझे अनेक बार स्पष्ट अनुभव हुआ कि हमारी घड़ी में जब भी घडी की सूई पैंतीस के अंक पर होती है । पूरी आत्म निष्ठा में पांच बार णमोकार मंत्र का जाप करके जो भी हम सोच लेते हैं वही कार्य पूरा हो जाता है । ऐसा हुआ है, होता है और हो रहा है परंतु क्यों ? यह अभी मेरी लौकिक समझ से परे है । मेरी अटूट श्रद्धा इस महामंत्र पर है और मेरा उद्बोध है "निर्भय बनानेवाले मंत्र है, असंख्य किन्तु मंत्रों में महान मंत्र, मंत्रराज णमोकार है " 2. शाह गुलाबचन्द खीमचन्द का कैन्सर रोग मिट गया - आप जामनगर निवासी है । लगभग 51 वर्ष पहले की घटना है । जो उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत है - "कैंसर की जानलेवा बीमारी शुरू होने से पहले 6 माह तक मुझे बुरी तरह दुखता रहा । काफी इलाज कराया पर लाभ नहीं हुआ । एक दिन मेरे कफ में खून दिखाई पड़ा । डाक्टरों ने जाँच पड़ताल कर कैंसर हो जाने की बात कही । पेंसिलिन के इंजेक्शनों का कोर्स चालू हुआ। पर रोग बढ़ता गया । मेरा गला अंदर व बाहर से इतना सूज गया कि पानी की घूट भी नीचे गले से न उतरने लगी । इस पर डॉ. के. पी. मोदी से जाँच कराई । उन्होंने बताया बीमारी इतनी बढ़ चुकी है कि इलाज तो दूर तक बायोप्सी जाँच के लिए अंदर का टुकडा काट कर भी नहीं ले सकते । और कहा कि यह तो अब सिर्फ एक द दिन का मेहमान है ऐसा मेरे फेमिली डॉक्टर को बताया । मैं शान्ति से मर सकू इस हेतु बेहोशी के इन्जेक्शन देने की बात भी कही । मैंने फैमिली डॉक्टर से कहा मुझे अभी प्यास लगी है किसी भी तरह मुझे पानी अवश्य पिलाने की कोई भी तरकीब करें । उन्होंने मुझे कहा कि आप किसी भी तरह आज की रात निकाल दीजिये कल सबेरे मैं इसकी व्यवस्था करूँगा और नली की मदद से पानी दूँगा । मैं समझ गया कि मेरी अंतिम घड़ी आ गई है। मुझे गुरुदेव से सुने ये वचन याद आ गए । भले ही पूरे जीवन में धर्म का पालन न किया है, किन्तु अंतिम समय में सब जीवों से क्षमा मांग कर सारा वैर विरोध भूलकर, समस्त जीवों के प्रति मैत्रीभाव रख महामंत्र णमोकार कर स्मरण करने वाली आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है । बस इस अमृतमयी प्रेरक वचन ने मेरे जीवन में अमृत भर दिया। इसी अमृत वचन से प्रेरणा लेकर अत्यन्त श्रद्धापूर्वक नवकार महामंत्र का स्मरण शुरू कर दिया । शाम का समय था । मेरी शैया के आसपास करुण दृश्य दिखाई दे रहा था । परिवार के लोग फूट-फूट कर रो रहे थे और वे भी मुझे नवकार मंत्र सुना रहे थे । तभी मैंने सबको बुलाकर, सबसे क्षमा याचना की और परमेष्ठी को वंदन करते हुए बोला - "खामेमि सवे जीवा, सव्वे जीवा खमंतुमे | मित्ती मे सव्वे भूवेसु वेरं मज्झं न केणई ।" इसके साथ ही मन में भावना व्यक्त की 'संसार के सब जीव सुखी हो, सुखी हो, संसार के सब जीव निरोग हो, सब जीवो का कल्याण हो । कोई भी पाप का आचरण न करे । किसी को दुख न हो । संसार के सब जीव कर्म से मुक्त हो, मुक्त हो । इस भवना को भाते हुए अत्यन्त जागृत भाव से नवकार मंत्र के ध्यान में लीन हो गया, इस भय से कि कहीं मेरी दुर्गति न हो जाय | 20-25 बार नवकार मंत्र का जाप करने के बाद पुनः पुनः मैं सर्व हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 58 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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