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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ तक चार वर्षों में विभिन्न प्रकार की तप की चर्याएं करें तीसरे चरण में अर्थात् नौ से बारह वर्ष तक के चार वर्षों में से प्रथम दो वर्षों में एकान्तर तपस्या करें और एकान्तर तप की पारणा उसे आयम्बिल से करनी चाहिए । साधक अन्त के के दो वर्षों में प्रथम छः मास में कोई विकट तपस्या न करे पुनः छः मास में घोर तपस्या करें किन्तु जब भी पारणा करे, वह आयम्बिल तप के रूप में ही करे। बारहवें वर्ष में वर्ष भर कोटि" भर तप करें। तदनन्तर एक पक्ष या एकमास पर्यन्त आहार का त्याग रूप अनशन व्रत धारण करें । इस प्रकार सल्लेखना तप से भिन्न नहीं है । 6. सल्लेखना के भेद द्विविध प्रकार स्थानाङ्गसूत्र में समाधिमरण के दो भेद कहे गए हैं - 1. प्रायोपगमन मरण और 2 भक्त प्रत्याख्यान मरण" त्रिविध सल्लेखना उत्तराध्ययनसूत्र में सल्लेखना के तीन भेदों का संकेत मिलता है। इनमें से किसी एक को स्वीकार कर सा कव्रती सकाम मरण को प्राप्त कर सकता है। 1. भक्त प्रत्याख्यान मरण : 23 जो सेवन किया जाए, वह भक्त है और उसका त्याग भक्त प्रत्याख्यान है • भज्यते सेव्यते इति भक्तं, तस्य पइण्णा त्यागो भत्तपइण्णा || अपने साधनाकाल में आहार और कषायों को कम करता हुआ साधक जब अपनी आयु का अन्त निकट जाने, तब वह आहार का पूर्णतया त्यागकर पंडित मरण स्वीकार करता है, यही भक्तप्रत्याख्यान है । 2. इंगिनी मरण अपने अभिप्राय के अनुसार रह कर होने वाला मरण इंगिनी मरण है । यहां इंगिनी शब्द से आत्मा का इंगित अर्थात् संकेत अर्थ ग्रहण किया गया है"। नियत स्थान पर उपर्युक्त विधि से मरण को पाना इंगिनी मरण है। इसमें कारण पड़ने पर साधक अपनी सेवा स्वयं करता है, मन-वचन-काय से कृत-कारित-अनुमोदित रूप से दूसरों की सेवा लेने का त्याग करता है । 3. पादोपणमनमरण पाद का अर्थ है वृक्ष । चारों प्रकार के आहार और शरीर का त्याग करके वृक्ष से कटी शाखा की तरह हलन चलन आदि क्रियाओं का त्याग करके समाधिपूर्वक मरण पादोपगमन मरण कहलाता है। दिगम्बर ग्रंथों में पादोपगमन को प्रायोपगमन कहा गया है। 7. सल्लेखना की अवधि सल्लेखना की अधिकतम सीमा बारह वर्ष, मध्यम सीमा एक वर्ष और जघन्य सीमा छः मास स्वीकार की गई है। 8. सल्लेखना के अतिचार : जिस प्रकार प्रत्येक व्रत के पांच अतिचार कहे गए हैं, उसी प्रकार सल्लेखना के भी पांच अतिचार बतलाए गए है। उपासकदशाङगसूत्र में इहलोकाशंसा प्रयोग, परलोकशंसा प्रयोग, जीविताशंसा प्रयोग, मरणाशंसा प्रयोग तथा हेमेल ज्योति हमे ज्योति 17 हेमेजर ज्योति ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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