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________________ श्री राष्टसंत शिरोमणि अभिनंटन था प्रमाण के कितने भेद होते हैं ? इस विषय में अनेक परम्पराएँ प्रचलित रहीं है। आगमों में जो विवरण मिलता है वह तीन और चार भेदों का निर्देश करता है। सांख्य प्रमाण के तीन भेद मानते आए है। नैयायिकों के चार भेद माने है। ये दोनों परम्पराएं स्थानांगसूत्र में मिलती है। अनुयोगद्वार में प्रमाण के भेदों का वर्णन संक्षेप में निम्न प्रकार है। प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद है इन्द्रिय प्रत्यक्ष और नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष। इन्द्रियप्रत्यक्ष के पाँच भेद हैं - श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष, चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष, घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष, जिव्हेन्द्रियप्रत्यक्ष और स्पर्शेन्द्रियप्रत्यक्ष। नोइन्द्रियप्रत्यक्ष के तीन प्रकार हैं - अवधिप्रत्यक्ष, मनःपर्ययप्रत्यक्ष और केवलप्रत्यक्ष । मानसप्रत्यक्ष को अलग नहीं गिनाया गया है सम्भवतः उसका पाँचों इन्द्रियों ने समावेश कर लिया गया है। आगे के दार्शनिकों ने उसे स्वतन्त्र स्थान दिया है। अनुमान : अनुमान प्रमाण के तीन भेद किए गए है - पूर्ववत्, शेषवत् और दृष्टसाधर्म्यवत । न्याय, बौद्ध और सांख्यदर्शन में भी अनुमान के ये ही तीन भेद बताये गये है। उनके यहां अंतिम भेद का नाम दृष्टसाधर्म्यवत न होकर सामान्य तो दृष्ट है। पूर्वपरिचित लिंग (हेतु) द्वारा पूर्व परिचित पदार्थ का ज्ञान कराना पूर्ववत् अनुमान है। शेषवत् अनुमान पाँच प्रकार का है - कार्य से कारण का अनुमान, कारण से कार्य का अनुमान, गुण से गुणी का अनुमान, अवयव से अवयवी का अनुमान और आश्रित से आश्रय का अनुमान। दृष्टसाधर्म्यवत् के दो भेद है - सामान्य दृष्ट और विशेष दृष्ट। किसी एक वस्तु के दर्शन से सजातीय सभी वस्तुओं का ज्ञान करना अथवा जाति के ज्ञान से किसी विशेष पदार्थ का ज्ञान करना, सामान्यदृष्ट अनुमान है। अनेक वस्तुओं में से किसी एक वस्तु को पृथक करके उसका ज्ञान करना विशेषदृष्ट अनुमान है। सामान्य दृष्ट उपमान के समान लगता है और विशेषदृष्ट प्रत्यभिज्ञान से भिन्न प्रतीत नहीं होता। काल की दृष्टि से भी अनुमान तीन प्रकार का होता है। अनुयोगद्वार में इन तीनों प्रकारों का वर्णन है - अतीतकालग्रहण - तृणयुक्तवन, निष्पत्रशस्यवाली पृथ्वी, जल से भरे हुए कुण्ड, सर नदी तालाब आदि देखकर यह अनुमान करना कि अच्छी वर्षा हुई है, अतीतकालग्रहण है। प्रत्युप्तपत्रकाल ग्रहण - भिक्षाचर्या के समय प्रचुर मात्रा में भिक्षा प्राप्त होती देखकर यह अनुमान करना कि सुभिक्ष है प्रत्युप्तपत्रकालग्रहण अनागतकालग्रहण - मेघों की निर्मलता, काले-काले पहाड़, विद्युतयुक्त बादल, मेघगर्जन, वातोभ्रम, रक्त और स्निग्ध संध्या आदि देखकर यह सिद्ध करना कि खूब वर्षा होगी अनागतकालग्रहण है। इन तीनों लक्ष्णों की विपरीत प्रतीति से विपरीत अनुमान किया जा सकता है। सूखें वनों को देखकर कुवृष्टि का, भिक्षा की प्राप्ति न होने पर दुर्भिक्ष का और खाली बादल देखकर वर्षा के अभाव का अनुमान करना विपरीत प्रतीति के उदाहरण है। अनुमान के अवयव : मूल आगमों में अवयव की चर्चा नहीं है। अवयव का अर्थ होता है दूसरों को समझाने के लिए जो अनुमान हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 115 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Educatio n al
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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