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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ तीर्थंकर पार्श्वनाथ के प्रचलित जैन सिद्धांतों में ब्रह्मचर्य को अलग स्थान देकर महावीर ने इसे 'पंचव्रत' का रूप दिया। उन्होंने ब्रह्मचर्य से तात्पर्य सभी प्रकार की कामनाओं के परित्याग से लिया। मानसिक, बाहा, लौकिक, पारलौकिक एवं स्वार्थ जैसी अभिलाषाओं का पूर्ण परित्याग ब्रह्मचर्य के लिए आवश्यक माना गया। कई कारणों से अपने काल में महावीर ने इस व्रत के पालन पर विशेष ध्यान दिया। आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले का समाज जातिवाद, व्यभिचार, भ्रष्टाचार और शोषण से बुरी तरह प्रभावित था, जिसमें तत्कालीन धार्मिक ठेकेदारों ने धर्मस्थलों को भी अपने पापों से भ्रष्ट कर दिया। तत्कालीन समाज में स्त्रियां मात्र भोग-विलास की वस्तु मानी जाती थी। पर महावीर के धार्मिक व समाजिक आन्दोलन के कारण स्त्रियों ने अपनी खोई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त करने की चेष्टा की जिससे उन्हें समाज में बराबरी का स्थान प्राप्त हुआ। आगे चलकर कई ऐसी स्त्रियों का जिक्र आता है जिन्होंने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर अपने विचार प्रगट किये और स्त्री समाज में गौरव की प्रतीक बनीं। तीर्थंकर महावीर ने जैनधर्म के अनुयायियों के लिए जीवन की कुछ शर्तों का भी उल्लेख किया। उन्होंने तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने का भरपूर प्रयास किया और यह बतलाया कि व्यक्ति वर्ण से नहीं, बल्कि कर्म और गुण से ऊँचा या नीचा होता है। उन्होंने समाज में अभी तक चली आ रही जाति प्रथा की कड़ी आलोचना की और इस व्यवस्था में परिवर्तन लाने का प्रयत्न किया। उन्होंने जैन धर्म का द्वार जाति, वंश या पद से हटाकर सभी के लिए समान रूप से खोल दिया। जैन दर्शन स्याद्वाद, अनेकानत, जीव-अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष पर विशेष बल देता है और ये सभी किसी न किसी रूप से नैतिकता, संयम, संतोष, समानता, शुद्धता, भ्रातृत्व और सामाजिक एकता से जुड़े हैं। वर्तमान युग में हम स्वयं अपने और अपने वातावरण के इर्द गिर्द के लोगों को पहचान पा सकने में समर्थ नहीं हो पा रहें हैं, जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि व्यक्ति के पारस्परिक संशय दूर नहीं किये जा सकते। इस हालत में न तो युद्ध की विभिषिका को टाला जा सकता है और न सह-अस्तित्व का सही वातावरण तैयार किया जा सकता है। हमें नयवाद और स्याद्वाद के सिद्धांतों के अनुरूप अपने ज्ञान की सीमाओं को समझना चाहिए तथा दूसरे के दृष्टिकोण का आदर करना सीखना चाहिए। जैन सिद्धांतों और नैतिक नियमों पर ध्यान देने से यह स्पष्ट होता है कि इनका संबंध मात्र जैन धर्म विशेष से न होकर सामाजिक, राष्ट्रीय और मानवीय भावनाओं एवं आवश्यकताओं से है। इनके पीछे जहां आध्यात्मिक और नैतिक विचार हैं, वहीं इनसे विश्व में शक्ति, एकता और भाई चारा लाने में सहायता मिल सकती है। आज संसार में हिंसा, व्यभिचार और कटुता बढ़ती जा रही है और हम एक एक से समाज की खोज में हैं, जिसमें शोषण, भेदभाव एवं द्वेष न रहे। अगर हम इन सत्यों को प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें तीर्थंकर महावीर और जैनधर्म के सिद्धांतों एवं दर्शन के आलोक में ही इनका समाधान ढूंढ़ना पड़ेगा और वही हमारी अन्तिम विजय होगी। विभागाध्यक्ष : इतिहास विभाग, पू. आ. कालेज, रोसड़ा - 848 210 (समस्तीपुर) बिहार हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 983हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्य ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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