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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ जो लोग ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् वाली चार्वाकी नीति अपनाते है वे भयंकर भूल करते है ये सामाजिक दण्ड के | भागी तो बनते ही है, अपना और अपने परिवार का अगला जीवन भी अन्धकारमय बना लेते हैं, क्योंकि पुनर्जन्म एक सुनिश्चित सिद्धान्त है, वह कर्म और कर्मफल के अस्तित्व को सिद्ध करने वाला मूल आधार है, इसे अधिकांश विचारशील मानव स्वीकार करते है शुभकर्मों का फल शुभ और अशुभ कर्मों का फल अशुभ मिलना भी सुनिश्चित है किन्हीं कारणों से यदि इस जीवन में किन्हीं कर्मों का फल नहीं मिलता, तो अगले जन्म (जीवन) या जन्मों में मिलना निश्चित है। फल ही नहीं, कर्मों के संस्कार भी सूक्ष्म रूप से कार्मण (सूक्ष्मता) शरीर के माध्यम से अगले जन्म या जन्मों में साथ साथ जाते हैं और आगामी (नये) जीवन (जन्म) की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। बालकों में ये विशिष्ट प्रतिभाएँ पूर्वजन्म को माने बिना कहीं से आती १ इसी कारण कई बालकों में जन्मजात विषिष्ट प्रतिभा, योग्यता, असाधारण गुण, विलक्षण स्वभाव आदि किसी पैतृक या आनुवांशिक गुण, पारिपार्श्विक वातावरण, शिक्षण आदि के बिना भी दिखाई देते हैं। इन्हें पूर्वजन्म-कृत कर्म, या ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय-क्षयोपशम आदि को माने बिना कोई चारा नहीं है। विख्यात फ्रांसीसी बालक 'जान लुइ कार्दियेक जब तीन महीने का था, तभी अंग्रेजी वर्णमाला का उच्चारण करने लगा था। तीन वर्ष का होते होते वह लेटिन बोलने और पढ़ने लगा था। पांच वर्ष की आयु में पहुँचने तक उसने फ्रेंच, हिब्रू और ग्रीक भाषाऐं भी अच्छी तरह सीख ली। छह वर्ष की आयु में उसने गणित, भूगोल और इतिहास पर भी आश्चर्यजनक अधिकार प्राप्त कर लिया। सातवें वर्ष में वह इस दुनिया को छोड़कर चला गया। जर्मनी में बाल प्रतिभा कीर्तिमान स्थापित करने वाले "जान फिलिप वेरटियम ने दो वर्ष की आयु में पढ़ना-लिखना सीख लिया था। छह वर्ष की आयु में वह फ्रेंच और लेटिन में धाराप्रवाह बोल लेता था। सात वर्ष की आयु में उसने अपने इतिहास, भूगोल और गणित संबंधी ज्ञान से तत्कालीन अध्यापकों को अवाक् कर दिया। साथ ही इसी उम्र में उसने बाइबिल का ग्रीक भाषा में अनुवाद भी किया। सातवें वर्ष में ही वह बर्लिन की रॉयल एकेडेमी का सदस्य चुना गया और "डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी" की उपाधि से विभूषित किया गया। किशोरावस्था में प्रवेष करते करते वह इस संसार से विदा हो गया। अत्यन्त अल्प आयु में विलक्षण प्रतिभा का परिचय देकर समस्त विश्व को आश्चर्य में डालने वाला 'लुवेक' (जर्मनी) में उत्पन्न बालक 'फ्रेडरिक हीनकेन सन् 1731 में जन्मा था पैदा होने के कुछ ही घण्टे बाद वह बातचीत करने लगा। दो वर्ष की आयु में वह बाइबिल के संबंध में पूछी गई उत्तर देता था और बता देता था कि यह प्रकरण किस अध्याय का है भी बेजोड़ था। डेन्मार्क के राजा ने उसे राजमहल में बुलाकर सम्मानित किया था तीन वर्ष की आयु में उसने भविष्यवाणी की थी कि अब मुझे एक वर्ष और जीना है। उसका कथन अक्षरशः सत्य निकला, 4 वर्ष की आयु में वह परलोकगामी हो गया। "विलियम जेम्स सिदिस" ने अपनी विलक्षणता से सारे अमेरिका में तहलका मचा दिया। दो वर्ष की आयु में वह धड़ल्ले से अंग्रेजी बोलता, पढ़ता और लिखता था। आठ वर्ष की आयु में उसने ग्रीक, रूसी आदि छः भाषाओं का ज्ञान अर्जित कर लिया। ग्यारह वर्ष की आयु में उसने देश के मूर्धन्य विद्वानों की सभा में उस समय तक प्रचलित "तीसरे आयाम' की बात से हटकर 'चौथे आयाम' की सम्भावना पर विलक्षण व्याख्यान दिया। "लार्ड मैकाले" भी दो वर्ष की आयु में पढ़ने लगे थे। 7 वर्ष की आयु में "विश्व इतिहास" लिखना प्रारंभ किया और कितने ही अन्य शोधपूर्ण ग्रन्थ लिखे। उन्हें उस युग में बिना किसी सहायक ग्रन्थ के स्वयं की स्मरणशक्ति के आधार पर "विश्व इतिहास' लिखने के कारण 'चलती फिरती विद्या कहा जाता था। किसी भी बात का युक्तिसंगत विस्तृत उसका इतिहास और भूगोल का ज्ञान बहुत छोटी उम्र में असाधारण प्रतिमाओं का उदय होना, पुनर्जन्म का प्रामाणिक आधार है। मनुष्य का स्वाभाविक विकास एक आयु क्रम के साथ जुड़ा हुआ है। कितना ही तीव्र मस्तिष्क क्यों न हो, उसे सामान्यता क्रमबद्ध प्रशिक्षण की आवश्यकता रहती है। यदि बिना किसी प्रशिक्षण या उपयुक्त वातावरण के छोटे बालकों में Jain Education International हेमेन्द्र ज्योति ज्योति 24 हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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