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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ इस प्रकार सभी आस्तिकवादी दर्शनों ने मोक्ष अपने अपने दृष्टिकोण के अनुसार स्वीकार किया है। चार्वाक दर्शन भौतिकवादी दर्शन है इसलिये उसके अनुसार आत्मा का अस्तित्व नहीं तो फिर परलोक मोक्ष आदि की चर्चा का अवकाश ही नहीं है। मोक्ष संसार का अभाव रूप है और संसार जन्म मरण की अनादि श्रृंखला रूप है। अतः यहाँ संसार और मोक्ष के कारणों का संक्षेप में संकेत करते है सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति और पुरुष का भेद ज्ञान न होना संसार 1 का और भेद ज्ञान होना, विवेक होना मोक्ष का कारण है। न्याय वैशेषिक ने अविद्या अथवा माया को संसार का कारण कहा है। बौद्ध दर्शन के अनुसार वासना के कारण जन्म मरण का चक्र चलता रहता है। जैन दर्शन के अनुसार मिथ्यात्व, अविरति प्रमाद, कषाय और योग संसार के कारण है। उपर्युक्त समग्र कथन का सारांश यह है कि संसार जन्म मरण का मुख्य कारण अज्ञान है अज्ञान के विपरीत तत्वज्ञान मोक्ष का कारण है तत्वज्ञान हो जाने पर संसार का अन्त हो जाता है। दर्शन का संबंध बुद्धि के साथ हृदय और क्रिया से भी हैं। इसीलिये भारतीय दर्शनों ने श्रद्धान, ज्ञान और आचरण पर बल दिया है। वैदिक दर्शनों में ज्ञान योग, कर्मयोग और भक्ति योग नाम है। जैन दर्शन में सम्यग् दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र तथा बौद्ध दर्शन में प्रज्ञाशील समाधि कहा है। यह भारतीय दर्शनों के मन्तव्यों की संक्षिप्त रूपरेखा है और पृष्ठ मर्यादा को देखते हुए पर्याप्त है। प्रसंगोपात यह भी ज्ञातव्य है कि भारतीय दर्शनों के ग्रन्थ प्रायः खंडन मंडन या पूर्वापेक्ष उत्तर पक्ष के रूप में लिखे गये है। लेखक अपने अनुभव से विपक्ष के प्रश्नों की कल्पना कर पूर्व पक्ष के रूप में प्रस्तुत कर उत्तर पक्ष में अपना अभिमत सिद्ध करने के साथ पूर्वपक्ष का खंडन करता है। कहीं कहीं विपक्षी की शंकाओं का इतने संक्षेप में संकेत किया गया मिलता है कि वे ही समस्त पूर्वपक्ष को स्पष्ट रूप से जान सकते हैं जो विरोधियों के मत से पूर्णतया अवगत हैं। भाषा की दृष्टि से परिष्कृत और कठिन विद्वद योग्य संस्कृत का प्रयोग होने से सर्व साधारण के लिये भारतीय दर्शन ग्रन्थ श्रद्धा के आस्पद तो है लेकिन इनके पठन पाठन के प्रति किसी की रुचि नहीं दिखती है। इस कारण भारतीय दर्शनों के महत्व से स्वयं भारतीय अपरिचित हैं। विशेषु किमधिकम् । | कर्मों की गति बड़ी विचित्र है इसकी लीला का कोई भी पार नहीं पा सकता शास्त्रकार कहते हैं कि जीव कर्मों के प्रभाव से कभी देव और मनुष्य, कभी नारक और कभी पशु, कभी क्षत्रिय और कभी शूद्र हो जाता है। इस प्रकार नाना योनियों और विविध जातियों में उत्पन्न हो भिन्न-भिन्न वेश धारण करता है और सुकृत तथा दुष्कृत कर्मोदय से संसार में उत्तम, मध्यम, जघन्य, अधम अथवा अधमाधम अवस्थाओं का अनुभव करता रहता है। इस लिये कर्मों के वेग को हटाने के लिये प्रयेक व्यक्ति को क्षमासूर बन कर यथार्थ सत्यधर्म का अवलम्बन और उसके अनुसार आचरणों का परिपालन करना चाहिये, जिससे आत्मा की आशातीत प्रगति हो सके। हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 12 श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति orgs
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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