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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ त्रिकाल पूजन का समय: प्रातःकालीन पूजा:- प्रातःकालीन पूजा के लिए यह आवश्यक है कि श्रावक सूर्योदय से डेढ़ घंटे पूर्व शैया त्याग दे। फिर एक सामायिक और रायी प्रतिक्रमण पूर्ण कर हाथ, पैर, मुख आदि साफ कर शुद्ध वस्त्र धारण कर जिस समय श्रावक मंदिर जाने के लिए अपने पैर उठाता है, उस समय सूर्योदय हो जाता है। मार्ग में सूर्य प्रकाश से अंधकार नष्ट हो जाता है और प्रकाश हो जाता है। श्रावक मार्ग में चलते समय जीवों की रक्षा करते हुए मंदिर में प्रवेश करे। मंदिर प्रवेश कर पूजन सामग्री से पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ प्रभु का पूजन करे। फिर यथाशक्ति पच्चक्खाण ग्रहण करें। मध्यान्ह की पूजा : मध्यान्ह के समय भोजन के पूर्व श्रावक को अहिंसा पूर्वक स्नान करके पूजन के वस्त्र धारण कर अष्ट प्रकार की पूजन के द्रव्य लेकर मंदिर जाकर सविधि पूजन करना चाहिए। सांध्य कालीन पूजा : सूर्यास्त के पौन घंटे पूर्व भोजन पानी से निवृत्त होकर श्रावक को मंदिर में जाकर प्रदक्षिणा स्तुति करना चाहिए। धूप दीप जलाना चाहिए। उसके पश्चात चैत्यवंदन पच्चक्खाण करके उपाश्रय में जाकर देवसि प्रतिक्रमण करना चाहिए। वर्तमान काल : वर्तमान काल जीवन के लिए संर्घष काल है। आज मनुष्य को अपना तथा अपने परिवार के भरण पोषण के लिए कठिन संर्घष करना पड़ रहा है। आज मनुष्य सूर्योदय से पूर्व ही अपने घर से काम के लिए निकल पड़ता है और सूर्यास्त के बाद घर जाता है। ऐसी विषम परिस्तिथि में वह किस प्रकार तीनों समय की पूजा कर सकता है। यहां यह स्पष्ट किया जाता है कि मन में प्रभु भक्ति की भावना बनी रहनी चाहिए और यथाशक्ति अवसर निकाल कर पूजन आदि करने का प्रयास करना चाहिए। स्नानविधि : जब हम आपके सन्मुख स्नान विधि की चर्चा कर रहें हैं, तो आप विचार कर रहें होंगे कि उसमें बताने जैसा क्या हो सकता है? स्नान करना तो सामान्य क्रिया है। इसमें समझाने की आवश्यकता ही क्या है? आपका ऐसा विचार करना अपने स्थान पर सही हो सकता है, फिर भी इसमें समझाने के लिए बहुत कुछ है। ___सबसे पहले तो सही स्पष्ट किया जाता है कि जब आप शुद्ध जल से स्नान करते हैं, तो उसे द्रव्य स्नान कहते हैं। जो जीव हिंसा रहित नहीं होता। तथापि पूजा भक्ति आदि में सद्भाव जागृत करने का हेतु और निमित्त अवश्य बन जाता है। जिससे संपर्क दर्शन की प्राप्ति और प्राप्त संर्पक दर्शन की निर्मलता में भी स्नान निमित्त बनता है। शुद्ध ध्यान द्वारा किया गया स्नान भाव स्नान कहलाता है। स्नान का जल: जैसा पानी मिला, वैसे ही पानी से स्नान नहीं किया जा सकता। स्नान का पानी मोटे कपडे से छाना हुआ होना चाहिए। कुऐं, बावडी, नदी, तालाब आदि में उतरकर स्नान करना उचित नहीं माना जाता है। छाने हुए पानी से स्नान करना चाहिए अर्थात पानी को किसी बड़े पात्र-बालटी आदि में लेकर, छान कर स्नान कीजिए। यदि गरम करना हो तो इस प्रकार गरम करें कि उसमें ठंडा पानी मिलाने की आवश्यकता ही न पड़ें। गरम पानी में ठंडा पानी नहीं मिलाना चाहिए। ऐसा करने से बहुत जीवों की विराधना होती है। हेमेन्द ज्योति हेमेन्द ज्योति5 हेमेन्द ज्योति हेमेन्द्र ज्योति । Erisandra
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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