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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ पुत्र- मुझे एक छोटा-सा मकान चाहिये, जिसमें मैं स्वतन्त्र व आराम से रह सकू । बीस-पच्चीस हजार रूपसे दे दो, जिससे मैं जीवन निर्वाह कर सकू । अथवा कोई आजीविका का साधन कर सकू । किसी कुलीन वंश की कन्या से मेरा विवाह कर दीजिये ताकि मैं अकेलेपन से मुक्ति पाकर निश्चितता से गृहस्थ जीवन व्यतीत कर सकू।" सेठ पुत्र की बात सुनकर सब कुछ समझ गया कि जो यह कहा रहा है, इसके मस्तिष्क की उपज नहीं है। इसके पीछे अवश्य किसी का हाथ होना चाहिये । क्योंकि अभी तक तो इसने कभी ऐसी बातें नहीं की आज ही क्यों कर रहा है?" मैं तो इसे पूरी सम्पत्ति देना चाहता था पर यह तो बीस-पच्चीस हाजर ही चाहता है । इसे मुझ पर विश्वास नहीं है । अब यह मेरे काम का नहीं । इसने अपना क्षेत्र छोटा-सा बना लिया है । फिर एक न एक दिन अवश्य घर आएगा, अभी यह नादान है, बच्चा है । सेठ ने उससे कहा – “जो कुछ तुमने मांगा, वह मुझे स्वीकार है ।" सेठ ने उसकी इच्छानुसार अपने भवन के पास मकान बनवा कर उसका विवाह भी कर दिया । बड़ा और समझदार होने पर उसने कर्मचारियों के आचरण पर गंभीरता पूर्वक चिन्तन किया, तो उसे ज्ञात हुआ कि कर्मचारी किसी को सुखी देखना नहीं चाहते । और स्वयं सम्पत्ति का उपभोग करना चाहते । अतः लडके ने एक दिन पिता के पास आकर क्षमा मांगी तथा सब बातों से अवगत कराया । अन्त में पिता से कह कर उन नौकरों को नौकरी से अलग कर दिया । पुत्र माता-पिता के पास आकर रहने तथा सुख से जीवन व्यतीत करने लगा । संत की सीख किसी नगर पर प्रशान्तकुमार नामक ब्राह्मण जागीरदार राज करता था । वह बड़ा ही प्रजापालक दयालु और न्यायप्रिय था । उसके राज्य क्षेत्र में सर्वत्र शान्ति का साम्राज्य था । प्रजा निर्भय होकर जीवन व्यतीत करती थी। वह भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था । एक बार वह गंभीर रूप से रूग्ण हुआ । उसने अपने व्यक्तिगत सलाहकार सिद्धार्थ को अपने पास बुलवाया और कहा - "सिद्धार्थजी! मेरे जीवन का अन्त होने वाला है । पता नहीं कब प्राण मखेरू उड़ जाए । राजकुमार भूपेन्द्र की अभी आयु बहुत छोटी है । मेरे पश्चात् तुम ही उसके संरक्षक होंगे । राजकुमार के बड़े होने तक तुम ही राज-काज चलाना और राज्य की व्यवस्थाएं देखना । प्रजाहित का विशेष ध्यान रखना । राजकुमारको अस्त्र-शस्त्र चलाना, घुड़सवारी करना तथा राजनीति शिक्षा देना और जब वह सब तरह से योग्य हो जाये तो उसे सिंहासनारूढ करके राज्य सौंप देना । कुछ दिन बाद ही जागीरदार प्रशान्त कुमार का निधन हो गया । राजकुमार भूपेन्द्र की आयु उस समय मात्र दस वर्ष की थी । सिद्धार्थ ने प्रशान्तकुमार की इच्छानुसार राज्य की व्यवस्थाएं संभाल ली और राजकुमार की सभी तरह की शिक्षा दिलाने के लिये योग्य शिक्षक की नियुक्ति कर दी । धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया । सिद्धार्थ अपने कर्तव्य पर अडिग रहा । पर यह स्थिति अधिक दिन न चल सकी। सत्ता और पद का लोभ सिद्धार्थ की निष्ठा कर्तव्य और राजभक्ति पर प्रभाव जमाने लगा । मन में पाप उपजा तो सिद्धार्थ में अनेक बुराइयां पैदा हो गई । सिद्धार्थ ने राजकुमार भूपेन्द्र पर तरह-तरह के आरोप लगाना प्रारंभ कर दिया । राजकुमार अभी छोटा था। क्या जवाब देता? अंततः एक दिन उसे राज्य छोड अन्यत्र जाने के लिये आदेश दे दिया गया । जब उसे यह आदेश प्राप्त हुआ तो उसकी आंखों से आंसू बहने लगे । उसे अपने पिता की याद आने लगी, पर अब क्या हो सकता था? सिद्धार्थ की निरंकुशता के आगे राज्य की जनता की भी एक न चली । अन्त में राजकुमार भूपेन्द्र को राज्य छोड़कर सीमा से बाहर जाना पड़ा । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 71 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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