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________________ राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ इस दल का मुखिया गोविन्द था, जो वह कहता सदस्य वही करते । प्रारंभ में इस दल ने आसपास के गाँवों में चोरियाँ करना शुरु किया । लोगों ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई पर परिणाम कुछ नहीं निकला । जिन लोगों ने उसके विरूद्ध शिकायत दर्ज कराई थी, उन्हें खाने-पीने से मोहताज कर दिया गया । एक दिन इस दल ने सलाह मशविरा कर पास के नगर के सबसे घनाढय सेठ, जो हीरे जवाहारात का व्यापार करता था, उसके यहाँ चोरी करने की सोची । भेद लेने के लिये दल के दो व्यक्ति ग्राहक बनकर उसकी दुकान पर गये । सेठ उस दिन किसी काम से बाहर गया हुआ था । उसकी जगह उसका लड़का बैठा था, साथ में मुनीम भी था । उसके निर्देशन पर ही वह ग्राहकों को हीरे व जवाहरात विक्रय करता था । दल के दोनों सदस्यों ने मुनीम से कहकर कीमती हीरे निकलवाए, उनका मूल्य पूछकर वे हीरे ले लिये और उनका मूल्य भुगतान कर दिया । थोड़ी देर मुनीम से इधर-उधर की बातें कर भवन के विषय में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करली । दस दिन के अन्तराल के बाद कृष्ण पक्ष की आधी रात को भवन के पीछे बने द्वार को खोलकर भीतर प्रवेश कर गये। उस समय भवन में मां-बेटे के अतिरिक्त कोई नहीं था । नौकर छुट्टी पर गया हुआ था । चुपचाप कमरे में जाकर सेठ पुत्र को जगाकर पकड़ कर उससे खजाने की चाबियां मांगी । दो चोर सेठ पत्नी के कमरे में जाकर उसके हाथ पाँव बाँध दिये और मुँह में कपड़ा ठूस दिया जिससे वह चिल्ला न सके । सेठ पुत्र ने आनाकानी की तो उसे बुरी तरह मारा पीटा । विवश होकर उसने चाबियां दे दी और साथ में जाकर वह कमरा भी बता दिया जिसमें जीवनभर की कमाई रखी हुई थी। उसके भी हाथ पैर बाँधकर मुँह में कपड़ा लूंस दिया । सेठ की कमाई पर हाथ साफ करके चोर चम्पत हो गये । सुबह हुई मुनीम ने आकर घर की दशा देखी तो दंग रह गया । तत्पश्चात् मां-बेटे के बन्धन खोलकर मुक्त किया लड़के ने मुनीम के साथ जाकर अज्ञात व्यक्तियों के विरूद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने चोरों को पकड़ने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ी, खोजी कुत्ता भी छोड़ा गया पर कोई परिणाम नहीं ने केस फाइल कर दिया । फिर भी इतनी बड़ी चोरी होने पर उसकी नींद हराम हो गई थी। उसने मुखविर लगा रखे थे । एक दिन अचानक मुखविर ने सूचना दी कि चोरों का सरदार गोविन्द घर आया हुआ है? फिर क्या था पुलिस ने जाकर उसके घर को घेरकर गोविन्द को ललकारा । गोविन्द ने भी अपने आपको बचाने के लिये या भागने के लिये बहुत कोशिश की पर कोई परिणाम नहीं निकला । अन्त में वह गिरफ्तार कर लिया गया । उसके सभी साथी भी उसकी निशान - देही पर गिरफ्तार कर लिये । सभी घरों की तलाशी ली गई । पर चोरी का माल बरामद नहीं हुआ । चोरी का माल न मिलने एवं साक्ष्य के अभाव में न्यायाधीश ने उसे व उसके साथियों को ससम्मान बरी कर दिया । माता-पिता ने उसका विवाह कर दिया जिससे वह खेती-बाड़ी करके वृद्ध माता-पिता की सेवा एवं परिवार का पालन-पोषण करने लगा । उसे चोरी जैसे पाप कर्म से घृणा हो गई । एक बार उसके गाँव में एक सिद्ध सन्त आए और आकर मन्दिर में ठहर गये । दूसरे दिन अपने व्याख्यान में कहा कि अनीति द्वारा कमाये या चोरी किये धन को गरीबों में बाँट देना चाहिये, अथवा जिसके यहाँ चोरी की उससे हाथ जोड़ क्षमा मांग कर उसकी सम्पति वापस कर देना चोहिये । गाविन्द ने चोरी किये धन को वापस तो नहीं किया, पर वह दीन-दुखी की सेवा सहायता, अभाव ग्रस्त लोगों के अभाव को दूर करके शांति व सुख से जीवन व्यतीत करने लग गया । चारों ओर गाविन्द की प्रशंसा होने लगी । वह गरीबों का मसीहा कहलाने लगा । हेमेन्ट ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Ja 32 हेमेन्द्र ज्योति* हेगेन्द्र ज्योति u nlods Maineliara
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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