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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ आज वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है । इसके दुष्प्रभाव भी हमारे सामने आ रहे है । जैसा हम करेंगे, वैसा हमें भुगतना भी पड़ेगा । जहां पहले हरियाली लहराया करती थी, अब वहां हमें रेगिस्तान जैसा दृश्य दिखाई देने लगा है । अवर्षा के आसार अधिक दिखाई देने लगे है । हम वृक्ष लगाने के स्थान पर उनका विनाश करने पर तुले हुए हैं । स्मरण रहे वृक्ष हमारे मित्र है । इनसे ही हमें प्राणवायु ऑक्सीजन मिलती है । हमें इनकी रक्षा करना चाहिये । जल और वृक्ष है तो हमारा जीवन है । हम अपने परिवेश के प्रति भी सावधान नहीं है । अपना परिवेश हम स्वच्छ नहीं रखते । घर का आंगन तो साफ कर लिया किंतु उसके सामने गंदगी के साम्राज्य के प्रति हम अपना कर्तव्य निर्वाह करना नहीं जानते । उस गंदगी को दूर करने का भी हमें प्रयास करना चाहिये । आज पोलिथीन की थैलियों का चलन बहुत बढ़ गया है। हम इन पोलिथीन की थैलियों को कचरा फेंकने के काम में भी लेने लगे हैं । नालियों में फेंकने से नालियों का पानी रुक जाता है । इनमें रही हुई वस्तुएं सड़ जाती है और समूचे वातावरण को दूषित कर देती है । इतना ही नहीं यदि इन थैलियों में रखी खाद्य वस्तु खाने के लालच में यदि कोई पशु उन्हें खाले तो उसकी मृत्यु हो जाती है । अतः इन थैलियों के उपयोग से बचना चाहिये या उनका उपयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिये । पर्यावरण के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा जा सकता है । फिर भी इतना कहना आवश्यक समझते हैं कि हमें पर्यावरण संरक्षण का कार्य करना चाहिये । पर्यावरण को दूषित, विषैला बनाने से बचना चाहिये । वैज्ञानिकों को चाहिये कि विषैली गैस एवं धूएं से संरक्षण के उपायों पर भी शोध करें । आप सब जानते हैंकि आज से 50-60 वर्ष पूर्व जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर बम वर्षा हुई थी, जिसके परिणाम वहां के निवासी आज तक भुगत रहे हैं । कहीं ऐसे अवसर पुनः न उपस्थित हो । इसलिये हमें सचेत रहना चाहिये और पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखना चाहिये । 34. व्यसन से बचें व्यसन रहित जीवन ही अच्छा, श्रेष्ठ जीवन होता है । जो व्यक्ति व्यसन में लिप्त रहते हैं । वे जीवन में अनेक बार मृत्यु को प्राप्त होते हैं । कारण कि व्यसनी व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवन में कष्ट ही पाता रहता है । व्यसनी व्यक्ति मृत्यु के उपरांत नरक में जाकर कष्ट भोगता है । जिन प्रवृत्तियों के करने से मनुष्य को कष्ट होता है, उसे व्यसन कहते हैं | जब हम व्यसनों के बारे में विचार करते हैं तो हमारे सामने अनेक प्रकार के व्यसन आते हैं। कुछ व्यसनों का सम्बन्ध हमारे काम से होता है और कुछ व्यसनों का सम्बन्ध क्रोध से होता है । कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ व्यसन ऐसे होते हैं, जो हमारे काम से उत्पन्न होते हैं अथवा सम्बंधित होते हैं और कुछ व्यसनों का संबन्ध क्रोध से होता है । यदि हम जैन साहित्य का अनुशीलन करें तो पाते हैं कि वहां सात प्रकार के व्यसन बताये गये हैं - जो इस प्रकार है- 1. जुआ, 2. मांसाहार, 3. मद्यपान, 4. वेश्यागमन, 5. शिकार, 6. चोरी और 7. परस्त्री गमन । हमारा मानना है कि आपको इन सप्त व्यसनों के सम्बन्ध में अच्छी जानकारी है । इसलिये यहां उनके विषय में अधिक बताने की जरूरत नहीं है । हम यह भी मानते/जानते हैं कि आपमें से कई इनमें से किसी न किसी व्यसन में लिप्त हो सकते हैं । आप कहेंगे कि नहीं । पर भाई क्या आप गुटखा आदि का सेवन नहीं करते? जी हां, धूम्रपान, तम्बाखू गुटखा आदि भी व्यसन ही है । उपर्युक्त व्यसनों में न केवल शारीरिक हानि है, वरन् आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक और पारिवारिक क्षति भी है । उन व्यसनों में आपका रुपया पैसा तो बरबाद होता ही है आपको ये व्यसन धर्मच्युत भी करते हैं । समाज में आपकी प्रतिष्ठा को भी नष्ट करते हैं और परिवार की सुख-शांति भी समाप्त करते हैं । अतः यदि आप समाज में आदर और सम्मान से रहना चाहते हैं । परिवार की सुख शांति चाहते हैं, अपनी संतान का भविष्य उज्ज्वल बनाना चाहते हैं तो व्यसनों से बचकर रहें । किसी भी स्थिति में व्यसन सेवन नहीं करें । उनका दुष्प्रभाव आपकी संतानों पर भी पड़ता है । अतः व्यसनों से सदैव दूर ही रहें, इसी में आपका आपके परिवार का हित है। 35. रात्रि भोजन का त्याग करें प्रायः यह देखा जाता है कि आज का मानव देर रात को भोजन करना अच्छा समझता है और उसके अनुसार वह भोजन करता भी है किंतु ऐसा करते समय मनुष्य यह भूल जाता है कि देर रात में भोजन करना उसके लिये अस्वास्थ्य कारक है । इस सम्बन्ध में संक्षेप में बताने का प्रयास करते हैं । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 17 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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