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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन गया इसका तात्पर्य यह है कि फलों के भार से लदे हुए वृक्ष नमते हैं, विद्वान मनुष्य नमते हैं । लेकिन सूखा काष्ठ और मूर्ख मनुष्य कभी नहीं नमते, पर टूट जाते हैं । विनय असम्भव कार्य को भी सम्भव बना देता है। विनयी व्यक्ति सब जगह आदर का एवं प्रशंसा का पात्र बनता है । आप सबको विनयी बनने का प्रयास करना चाहिये । क्योंकि लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर । अतः अपने जीवन में विनय गुण अपनाना चाहिये । 27. परोपकार परोपकार दो शब्दों से मिल कर बना है । पर + उपकार = परोपकार । जिसका अर्थ होता है दूसरों पर उपकार करना । दूसरे कौन? वे जो दीन-हीन असहाय-अभावग्रस्त हैं । उनके अभावों को दूर करना, उनकी सहायता करना परोपकार है | महाकवि तुलसीदास ने कहा है । परहित सरिस धरम नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहि अघभाई । परहित से बढ़कर कोई धर्म नहीं है और पर पीड़ा से बढ़कर कोई अधर्म या पाप नहीं है । उसी बात को महर्षि व्यास ने इस प्रकार कहा है - परोपकारः पुण्याय, पापाय परपडिनम् । अर्थात् दूसरों का उपकार करना पुण्य है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाना पाप है। यदि हम प्रकृति की ओर देखें तो हमें प्रतीत होता है कि वहां चारों ओर परोपकार की फसल लहलहा रही है । देखिये नदियां स्वयं अपना पानी नहीं पीती, वृक्ष अपने फल नहीं खाते, खेत उगे हुए अन्न को नहीं खाते, मेघ सिंचाई करता है पर अन्न ग्रहण नहीं करता । ये सब परोपकार ही करते हैं । कवि भर्तृहरि ने परोपकार को करुणाशील पुरुषों के शरीर की शोभा परोपकार बताया है । सन्तों, सत्पुरुषों एवं महान विभूतियों का जीवन परोपकार के लिये होता है । इस बात को ध्यान में रखते हुए कहा गया है - परोपकाराय संता विभूतयः ।। यदि हम गहराई से देखें तो परोपकार एक प्रकार से अपना स्वयं का उपकार है । जो व्यक्ति परोपकार करता है वह अपने हृदय में चुभे हुए दुःख के कांटे को निकालता है । जो व्यक्ति अपना विकास करना चाहता है, उसे अन्य लोगों की भलाई का मार्ग अपनाना पड़ता है । परोपकार किसी पर अहसान नहीं है वरन् अपनी आत्मा के विकास के लिये है । परोपकार के अभाव में उदारता, विशालता आदि सद्गुणों का विकास नहीं होता है । सही पछा जाय तो मानव जीवन की सार्थकता ही परोपकार में है । जो व्यक्ति सज्जन होते हैं । वे परोपकार के लिये ही देह धारण करते हैं - सरवर, तरूवर, संतजन, चौथा बरसै मेह | परोपकार के कारणे, चारों धारी देह || जब आप किसी पर उपकार करें तो एक बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिये कि परोपकार करके कभी प्रतिफल की कामना / इच्छा नहीं करनी चाहिये । सबसे अच्छा तो यह है कि जो भी उपकार किया है, उसे भूल जाओ। परोपकार केवल धन से ही सम्भव नहीं है । आप सेवा द्वारा, बुद्धि द्वारा, वाणी द्वारा अथवा अन्य साधनों के द्वारा भी परोपकार कर सकते हैं । अतः परोपकार कीजिये और अपने मानव जीवन को सार्थक बनाइये । 28. वाणी विवेक आपने अपने जीवन में अनुभव किया होगा कि कुछ व्यक्ति कुछ इस प्रकार बोलते हैं, मानो उन्होंने आपके सिर पर पत्थर मार दिया है । ऐसे व्यक्ति से आप बात करना भी पसंद नहीं करेंगे । कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अपनी बात बहुत ही मधुर वचनों में कहते हैं आप चाहते हैं कि ऐसे व्यक्ति का सत्संग सदैव बना रहे । कुछ व्यक्ति कड़वी बात भी कुछ इस प्रकार कहते हैं कि वह बुरी अथवा अपमानजनक नहीं लगती । उसके विपरीत कुछ व्यक्ति हितकारी वचन भी कुछ इस प्रकार कहते हैं कि उससे सामने वाला अपना अपमान समझने लगता है । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 12 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति ForpirawaarDEO nary.
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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