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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ 4. धर्म सबका है । हमारे देश में दो परम्पराएं चली आ रही है । एक मुनि परम्परा और दूसरी ऋषि परम्परा । ये दोनों परम्पराएं गंगा और सिंधु के समान है। ये दोनों परम्पराएं मोक्ष रूपी समुद्र में मिल जाती है। जिस प्रकार लाठी मनुष्य को गिरने से बचाती है, उसी प्रकार समाज को बचाने के लिये साधु परम्परा है। आत्म धर्म और लोक धर्म ये धर्म रूपी गाड़ी के दो पहियें हैं । यदि इनमें से किसी भी एक को अलग कर दिया जाय तो वह धर्म रह नहीं सकता है। जब तक आप मुक्त नहीं होते तब तक आत्म धर्म और लोक धर्म चलते रहेंगे । धर्म किसी जाति, वर्ग अथवा सम्प्रदाय विशेष का नहीं होता है । सच्चा धर्म तो वही है जो प्रत्येक आत्मा का कल्याण करें । धर्म को किसी परिधि में कैद करके नहीं रखा जा सकता, धर्म पर सबका समान रूप से अधिकार है, धर्म सबका है और सब धर्म के है । आप यह भी जानते हैं कि देशकाल के अनुसार मनुष्य का खान-पान, रहन-सहन, कानून कायदे आदि परिवर्तित होते रहते हैं किंतु वस्तु का स्वभाव नहीं बदलता है और धर्म भी नहीं बदलता है । 5. क्लेश का कारण 77 जीव की जब तक विषयों में आसक्ति है, तब तक उस जीव का धर्म में प्रवेश सम्भव नहीं है। जिस प्रकार काले रंग के कपड़े पर दूसरा कोई रंग नहीं चढ़ता उसी प्रकार रागादि भावों के रहते मुक्ति का मार्ग मिलना सम्भव नहीं है । हमारे शासन में (जैन धर्म में) अल्पज्ञानी अथवा बहुज्ञानी का महत्व नहीं है । महत्व तो उस बात का है। कि जीव ने संसार के प्रति आसक्ति भाव का कितना त्याग किया? यदि अल्प ज्ञानी व्यक्ति निर्मोही है तो वह मोक्षमार्गी हो सकता है । वैदिक धर्म ग्रन्थों में भी बताया गया है कि जब तक जीव को घर-जमीन-जायदाद, परिवार आदि के प्रति मोह है, राग है तब तक वह जीव मोक्ष नहीं पा सकता। पदार्थ के प्रति राग की भावना ही क्लेश का कारण है । जिस दिन राग-भावना समाप्त हो जायेगी, क्लेश स्वतः समाप्त हो जायेगा । रावण की मृत्यु का कारण सीता के प्रति आसक्ति का होना है, सीता का अपहरण स्वर्णमृग के प्रति उसकी आसक्ति का होना है । इसलिये रागी नहीं वीतरागी बनें, अथवा बनने का प्रयास करें। प्रयास या अभ्यास करेंगे तभी तो आसक्ति समाप्त होगी । आसक्ति समाप्त होगी तो दुःखों से छुटकारा मिलेगा । अतः वीतराग वाणी का अनुसरण करें और इस संसार रूपी कैद से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त करें । 6. श्रद्धा का पात्र बनने का उपाय आपको बड़ा अजीब लगेगा जब यह कहा जाय कि स्वाध्याय करना, ग्रंथ पढ़ना भी बंध का कारण है, मुक्ति का नहीं । ग्रंथ पढ़ने के आदी मत बनो । कारण मनुष्य जिस बात का, पदार्थ का आदी होता है उसके विकल्प उसे सताते रहते हैं। 77 77 17 शास्त्र भी एक प्रकार के शस्त्र के समान है । जब व्यक्ति अधिक प्रकार के शास्त्रों का अध्ययन कर लेता है तो फिर वह विवाद करता है और विवाद प्रपंच में फंसाने वाला है, इस हेतु से शास्त्र भी प्रपंच में फंसाने वाले हुए । यही कारण है कि जैन साधुओं को निग्रन्थी कहा है । वे ग्रन्थों के परे हैं । ग्रन्थों का त्याग किये बिना निर्विकल्प दशा नहीं आ सकती। आप यदि भगवान् अरिहंत के उपासक हैं तो वैभव को छोड़कर निर्लेप बने रहें । मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कुर्सी का मोह त्याग दिया क्योंकि वे वीतरागी थे । उस कारण वे सब की श्रद्धा के पात्र बन गये । यदि आप सब की श्रद्धा के पात्र बनना चाहते हैं तो वीतरागी बनें । वीतरागी बने बिना आप किसी की श्रद्धा के पात्र नहीं बन सकते । 7. सच्चा ध्यान मन, वचन और काया की एकाग्रता के अभाव में ध्यान सम्भव नहीं है। आंखें बन्द कर बैठ गए और मन में तरह तरह के विचार उत्पन्न हो रहे हों, विकल्प उठ रहे हों तो उसे ध्यान नहीं कहा जा सकता । सुई में धागा पिरोने के लिये एकाग्र होना पड़ता है शरीर को स्थिर करना पड़ता है, तभी धागा पिरोया जाता है। यदि बातचीत हमे ज्योति ज्योति 2 होमेन्द्र ज्योति के हेमेजर ज्योति ry.org
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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