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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ की तरह ही सदा उन्हें देखने का, दर्शन का सौभाग्य मुझे मिला । यह सूरत ही प्रेरणा की मूरत है इनमें रहे अनेकानेक गुणों का प्रगटीकरण यह सूरत ही कर रही है । इसमें संयम की सुवास है, तो त्याग का आदर्श भी दृष्टिगोचर हो रहा है । सफल जीवन का संदेश इससे मिल रहा है, तो प्रेरणा का प्रकाश इसी से प्रगट हो रहा है । इनके चेहरे ने कितने ही के चेहरे बदल दिये हैं, कितने ही पतितों को पावन बना दिया हैं । अनेक लोगों के जीवन वन को उपवन बना दिया। इतना ही नहीं उन्होंने जैन शासन को बहुत कुछ अर्पण किया हैं । अनेक जीवन में तप-त्याग ज्ञान-ध्यान व्रत पचक्खाणादि के मोहरे मारें हैं । इनके रोम रोम में जैन शासन बसा है । इनके लहु की हर बूंद वैराग्य के पक्के रंग से रंगी हुई है । इनके हृदय की हर धड़कन में परमात्मा की पुकार है और शुद्ध-विशुद्ध संयम का पालन व अनुपालन इनका श्वास प्राण है । तप त्याग से उनको राग है तो ज्ञान ध्यान का का अनुराग भी कम नहीं है | ऐसे गुरुदेवश्री की छत्रछाया में रहने का शुभ अवसर मुझे भी अनेकबार मिला और मिल रहा है, जिसे मैं अपना सौभाग्य मानती हूं निश्चित ही पूर्वजन्म में कोई पुण्यकार्य किये होंगे जिस पुण्य के प्रभाव से आपश्री के शासन में जन्म मिला आपकी निश्रा मिली। जब-जब भी आपका सान्निध्य पाया अंतर आश्वस्त हुआ एक निखार पाया । एक प्रेरणा स्रोत का जन्म हुआ । दर असल में करोड़ो जनम करने पड़ते है ऐसे महामहिम विभूतियों को पाने के लिये और बड़े धन्यभागी होते हैं वे जो ऐसे पुण्यशाली पुरुषों की प्राप्ति कर लेते हैं । ऐसे महात्माओं के समागम में जो सौभाग्यशाली आत्माएं आती हैं । तो “संत संगति जन पावे जबहि आवागमन मिटावे तबहि" सच तब जनम-जनम के फेरे मिटने लगते हैं कारण कि पाप का विनाश और पुण्य का प्रकर्ष तब होने लगता है । सुख का सर्जन और दुःख का विसर्जन सब शुरू होता है । ऐसे ही संतपुरुष हर एक को जीवन जीने की कला सिखाते हैं । जैन शासन की भव्य प्रभावना में इनका योगदान यादगार रहा हैं और सदा रहेगा । आपश्री के इन्हीं वंदनीय अभिनंदनीय गुणों से मेरा हृदय सरोवर श्रद्धा से सराबोर है । सागर के अंतःस्थल में प्रविष्ठ हो उसकी गहराई को माप लेना कठिन है वैसे ही महान आत्माओं के जीवन को परखना कठिन है, फिर भी सद्गुणों का अभिनन्दन करते हुए कहूंगी - आप दीर्घायु-चिरायु व यशस्वी बनकर जिनशासन की प्रभावना करते रहें । युगों-युगों तक हमारा श्रीसंघ आपश्री की देखरेख में वृद्धि करता रहे तथा हम सभी पर आपकी छत्रछाया बनी रहे । आपकी यशोगाथा दिगदिगंत में प्रसारित हो । आपका जीवन गुलाब की तरह महकता रहे और उसकी सौरभ से जन-गण मन आनंदित होते रहें । सूर्य की तरह आपका व्यक्तित्व हमेशा प्रकाशमान रहे चांद की तरह अमृत किरणें बरसाते रहो । यही मेरे हृदय की शुभ कामना एवम् मंगल मनीषा है | जो अनेक गुणों से अलंकृत है ऐसे विशाल व्यक्तित्व के धनी पूज्य गुरुदेवश्री के चरणों में श्रद्धापूर्वक अपने भाव समर्पित कर अपने आप को धन्यभागी मानती हूं। “आपकी प्रतिभा तेज और वर्चस्व बढ़ता रहे | जीवन का हर पहलू नया इतिहास गढ़ता रहे || उस सुनहरे अवसर पर हम यह कामना करते हैं | युग-युग तक सभी आपकी यशगाथा पढ़ते रहे || और अभिनन्दन उन्हीं का है, जिनने सद्गुणों को विकसाया है | अभिनन्दन उन्हीं का है, जिनने त्याग तप का दीप जलाया है ।। चन्द्र सी शीतलता पाकर, साधना समन खिलाया है | मेरी श्रद्धा के वंदन मैंने, यो अभिनन्दन भाव सजाया है || हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 63हेमेन्द ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति MARATO wwanganelibract
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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