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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ श्रुतकेवली आचार्यों में प्रभवस्वामी, सय्यंभवसूरि, यशोभद्रसूरि, संभूतिविजय व भद्रबाहुस्वामी हुए जो परम्परा में क्रमशः तीसरे, चौथें, पांचवें व छठे क्रम के आचार्य थे । छठवें क्रम पर संभूतिविजय व भद्रबाहुस्वामी के नाम एक साथ लिए जाते है । इसका कारण संभवतः यह होगा कि ये दोनों पूर्ववर्ती आचार्य यशोभद्रसूरि के शिष्य व परस्पर गुरु भाई थे । कुल पट्टावलियों में दोनों को छठवें व सातवें क्रम पर वर्णित किया गया हैं। आचार्य प्रभव, जिनको दिगम्बर परम्परा में विद्युचर' कहा गया है, ने वीर संवत 64 से 75 तक जैन संघ को नेतृत्व प्रदान किया । इसी मध्य पार्श्व परम्परा के आचार्य रत्नप्रभसूरि विद्यमान थे जिन्होंने वीर संवत 70 में औसियां के राजा व प्रजा को प्रतिबोधित कर ओसवाल जाति की स्थापना की । प्रभव अपने जीवन की सांध्य बेला में आचार्य बने थे । अतः संघ के अगले योग्य नायक को शीघ्र चयन करना उनकी प्राथमिकता रही होगी । उन्होंने प्रयत्नपूर्वक वेद-वेदांग में पारंगत पं. संय्यभंव को जैनधर्म की ओर प्रेरित किया । प्रभव के शिष्य व चतुर्थ संघ नायक आचार्यसंय्यभंवसूरि ने विशाल संघ को समुचित मार्गदर्शन प्रदान किया साथ ही 'दर्शवैकालिकसूत्र' जैसी महान कृति भी दी जो आज भी साधु जीवन की आचरण, आहार, विनय-संयम की मार्गदर्शिका मानी जाती है व जैन समाज के सभी संप्रदायों में समान रूप में मान्य हैं । वीर संवत 98 में आपके स्वर्गवास के पश्चात आचार्य यशोभद्र मात्र 36 वर्ष की वय में संघ नायक बने । इस समय मगध की राजधानी पाटलिपुत्र थी व नन्दवंश का शासन था । जैन व बौद्ध धर्म का काफी प्रसार हो चुका था । आपने तत्कालीन मगध, अंग तथा विदेह राज्यों में जैनधर्म की प्रभावना की । आपके पश्चात् आपके दो शिष्य संभूतिविजय व भद्रबाहु क्रमशः आचार्य बने । यह समय राजनीतिक सामाजिक दृष्टि से काफी उथल पुथल भरा था । आठ दशक पुराना नंदवंश समाप्त हुआ व मौर्यवंश की स्थापना हुई । सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया । इसके साथ ही देश को लंबे व भयावह अकाल का सामना करना पड़ा, फलस्वरूप देश की राजनीतिक व धार्मिक व्यवस्था व संगठन अस्तव्यस्त हो गये । योग्य आहार-पानी के अभाव में अनेक मुनि काल कवलित हो गये व शेष यत्र-तत्र विहार कर गये । पठन-पाठन के बंद हो जाने से ज्ञान विलुप्त होने लगा । सौभाग्य से इस विषम युग में संघ का नेतृत्व योग्य हाथों में था जिन्होंने संघ का यथासंभव योग क्षेम किया और विलुप्त हो चले ज्ञान को पुनःसंकलित कर आगामी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा । आचार्य संभूतिविजय के विशाल शिष्य समुदाय में श्रमणी संघ भी शामिल था। आचार्य भद्रबाहु का नाम आचार्य परम्परा में अत्यधिक सम्मान से लिया जाता है । आपने 14 वर्षों तक श्रमण संघ का कुशल नेतृत्व किया । इनके चार मुख्य शिष्य थे । एक के नाम से गौदास गण की स्थापना हुई थी। भद्रबाहु द्वारा रचित अनेक नियुक्तियां, सूत्र व संहिता जैन साहित्य में विद्यमान व लोकप्रिय है मगर यह विवादास्पद है कि इनके रचयिता उपरोक्त आचार्य है या भद्रबाहु द्वितीय जो एक पश्चातवर्ती आचार्य हैं । आचार्य प्रभव से भद्रबाहु तक सभी आचार्य 14 पूर्व के ज्ञाता थे । भद्रबाहु के साथ ही दृष्टिवाद के ज्ञान का विलोप हो गया। दिगम्बर परम्परा में पांच श्रुतकेवली क्रमशः विष्णु, नंदीमित्र, अपराजित, गोवर्धन व भद्रबाहु माने गये हैं जिनकी अवधि सौ वर्ष थी । आचार्य संभूतिविजय द्वारा दीक्षित तथा भद्रबाह द्वारा शिक्षित आचार्य स्थूलीभद्र ने ईसा पूर्व 356 से 311 तक 45 वर्ष जैन संघ का नेतृत्व किया । उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनकी अध्यक्षता में हुई पाटलिपुत्र की आगम वाचना है जिसमें दुष्काल के कारण छिन्न-भिन्न हुई श्रुतधारा को संकलित किया गया था । दृष्टिवाद की वाचना लेने के लिए वे लम्बे समय तक आचार्य भद्रबाहु के साथ नेपाल में रहे थे । स्थूलीभद्र के साथ अंतिम चार पूर्वो का ज्ञान विलोप हो गया । ईसापूर्व 312 से 235 तक आर्य महागिर व आर्य सुहस्ति का नेतृत्व प्राप्त हुआ । इस समय तक भगवान महावीर के शासन को स्थापित हुए दो शताब्दी बीत चुकी थी। चन्द्रगुप्त मौर्य व अशोक के प्रभाव से मौर्य साम्राज्य ने उस उत्कर्ष को प्राप्त कर लिया था जिसके पश्चात् पराभव आरम्भ होता है । चन्द्रगुप्त जैन जबकि अशोक बौद्ध मतावलंबी था । विशाल मौर्य साम्राज्य की विभिन्न राजधानियों में उज्जैन प्रमुख थी जिसका शासक अशोक का पौत्र संप्रति था । संप्रति ने सुहस्ति से प्रभावित होकर जैन धर्म स्वीकारा । जैनधर्म के विस्तार में संप्रति हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 8 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Education Interna einelt
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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