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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ जब हम परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के जीवन दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि उन्होंने अपना जीवन धर्म और सेवा के लिये समर्पित कर दिया है। वे अपने जीवन की परवाह किये बिना जन-जन को मार्गदर्शन प्रदान करते रहते हैं। धार्मिक कार्य सम्पन्न करवाते रहते हैं। सेवा भावना का उच्च आदर्श प्रस्तुत करते हैं। तब हमारा मस्तक स्वतः उनके चरणों में झुक जाता है। यह प्रसन्नता का विषय है कि ऐसे गुरुदेव के जीवन पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन कर उनके श्री चरणों में समर्पित किये जाने का कार्य चल रहा है। मैं आपकी इस योजना की सफलता की कामना करते हुए पूज्यश्री के पावन चरणों में वन्दन करता हूँ। जप साधना का अनुपम उदाहरण -ओटरमल जेरूपजी, काकीनाड़ा उपाश्रय में जहाँ परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य भगवान श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. अपने धर्म परिवार के साथ बिराजमान रहते हैं, वहाँ दर्शनार्थियों का सतत् आवागमन बना रहता है। वहाँ विराजित अन्य मुनिराज भगवतों से तात्वकि चर्चायें भी करते रहते हैं। मैंने देखा है कि ऐसे भीड़ भरे वातावरण में परम पूज्य आचार्य अपनी जप साधना तल्लीन बने रहते हैं। दर्शनार्थी उनके निकट आते हैं, वन्दन करते हैं। आपश्री उन्हें अपना आशीर्वाद देकर पुनः अपनी जप साधना में लीन हो जाते हैं। उपाश्रय में दर्शनार्थियों की भीड़ और उनकी चर्चाओं से उत्पन्न आवाज और कभी-कभी बालकों की उपस्थिति के शोर पर उनकी जप साधना अप्रभावित रहती है। पूज्यश्री अपनी जप साधना में इतने तल्लीन रहते हैं कि दर्शनार्थी वन्दन कर उनके सम्मुख खड़ा रहता है तो भी आपकी साधना आवाध गति से चलती रहती है। जब कोई दर्शनार्थी पूज्यश्री को पुकारता है तो फिर कहीं उनका ध्यान भंग होता है। जप साधना का ऐसा अनुपम उदाहरण मैंने कहीं भी नहीं देखा है। ऐसे महापुरुष की दीक्षा हीरक जयंती और जन्म अमृत महोत्सव के अवसर पर प्रकाशन अभिनन्दन ग्रन्थ की सफलता के लिये मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए शासन देव से पूज्यश्री के सुदीर्घ स्वस्थ जीवन की कामना करता हूँ। पूज्यश्री के चरणों में कोटि-काटि वंदन। कसौटी पर खरे -विजयकुमार गादिया, उज्जैन जिस प्रकार सोने की शुद्धता प्रमाणिक करने के लिये घिसाई, कटाई, तपाई तथा पिटाई की जाती है, उसी प्रकार व्यक्ति को परखने के लिये उसके ज्ञान, शील, कर्म तपादि गुण देखे जाते हैं। कहा भी गया है यथाचतुर्भिः कनक परिक्षेत निघर्षण, छेदन, तापन ताड़णा। तथा चतुर्भिः पुरुषं परीक्षेत ज्ञानेन शीलेन, गुणेन, कर्म ।। इस परिप्रेक्ष्य में यदि हम परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के जीवन पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि वे ज्ञान के आगार है, शीलव्रत के पालनहार हैं, तपस्वीरत्न हैं और उनके कर्म जन-जन के लिये अनुकरणीय हैं। इस दृष्टि से पूज्य आचार्य भगवंत इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। उनके सदगुणों के प्रति हमारा मस्तक स्वतः ही उनके चरणों में झुक जाता है। परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत के सुदीर्घ संयमी जीवन को देखते हुए उनके श्री चरणों में अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करना एक स्तुत्य प्रयास है। मैं हृदय की गहराई से आपके इस प्रयास की सफलता के लिये अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए पूज्यश्री के चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हूँ हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्रज्योति 68 हेमेन्द्रज्योति* हेमेन्द्र ज्योति USOM Jainelibrary
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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