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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन करुणा के देवता -चम्पालाल के वर्धन, मुम्बई परम आराध्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमदविजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के जब भी दर्शन किये, मैंने उन्हें सदैव शांत एवं प्रसन्नचित पाया । उनके कोमल हृदय में करुणा दया का निर्झर सदैव बहता रहता है। वे कभी भी किसी भी व्यक्ति को दुःखी नहीं देख सकते । दुःखी व्यक्ति के दुःख को दूर करने के लिये सदैव तत्पर रहते हैं और जब तक दुःखी व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार को सहायता नहीं पहुंचा देते तब तक स्वयं चैन से नहीं बैठते । इस दृष्टि से हम श्रद्धेय आचार्य भगवन को करुणा का देवता कह सकते हैं । स्वभाव से पूज्य आचार्यश्री बहुत ही सरल है । उनसे मिलना, दर्शन करना, वंदन करना और चर्चा करना भी सहज है । वहां कोई आडम्बर नहीं है, कोई दिखावा नहीं है । मैंने उन्हें सदैव साधनारत पाया । वे अपने भक्तों को भी धर्माराधना के लिये सदैव प्रेरित करते रहते हैं। शासनदेव से विनती है कि वे हमारे आराध्य आचार्यश्री को स्वस्थ एवं दीर्घायु बनाये रखे । श्रद्धेय आचार्यश्री के सम्मान में प्रकाशित होने वाले अभिनन्दन ग्रन्थ के आयोजन सफलता की हृदय के कामना करते हुए आचार्यश्री के चरणों में कोटि कोटि वंदन । मील का पत्थर बने -कन्हैयालाल सकलेचा, जावरा (म.प्र.) गुणीजनों का सम्मान करने की परम्परा अपने देश में प्राचीनकाल से चली आ रही है । इधर कुछ वर्षों से ऐसे महापुरुषों के सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर उनके कर कमलों में अर्पित करने का चलन भी बढ़ा है । अभिनन्दन ग्रन्थों की भी एक परम्परा है। उनमें जिस व्यक्ति का अभिनन्दन किया जाता है उसके समग्र जीवन के साथ उसके विविध गुणों का बखान भी किया जाता है और विभिन्न विषयों के आलेखों का भी प्रकाशन होता है । इसी परम्परा में पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमदविजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर उनके भक्तों द्वारा एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है। पू. आचार्यश्री सरलता, सहजता, दया करुणा, क्षमा, समता, विनम्रता निष्कपटता, निरभिमानता, पर दुःखकातरता आदि जैसे गुणों के स्वामी है। उनका अभिनन्दन उनके गुणों का अभिनन्दन है। विश्वास किया जा सकता है कि यह अभिनन्दन ग्रन्थ नये कीर्तिमान स्थापित करेगा और अभिनन्दन ग्रन्थों की परम्परा में मील का पत्थर प्रमाणित होगा । पू. आचार्यश्री दीर्घकाल तक स्वस्थ एवं प्रसन्न रहते हुए संघ एवं समाज का मार्गदर्शन करते रहे यही हार्दिक मंगल मनीषा है । पू. आचार्यश्री के चरणों में काटि कोटि वंदन । हेमेन्दर ज्योति र ज्योति 48 हे ज्योति *ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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