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________________ गुरु वल्लभ के तीन उपदेश साध्वी अमित गुणा श्री वन्दना -रमेश पंवार भिन्न-भिन्न युगों में जिन शासन में अनेक धुरंधर जैनाचार्य शिक्षा की महत्ता बताई। गुरुदेव के इस पुनीत स्मारक उद्घाटन हुए। जिससे आज तक जिनशासन जयवंत है। आचार्यों की उस अवसर पर हमें इस ओर ध्यान देना नितांत आवश्यक है। महान परम्परा में पंजाबकेशरी युगदिवाकर आचार्य श्री विजय गरुदेव ने एक बार ज्ञान मन्दिर का उद्घाटन करते हुए कहा विश्व की बगिया में। वल्लभ सूरिश्वर भी हए। जिन्होंने समाज उत्थान में अपना था"डिब्बे में बन्द ज्ञान द्रव्यश्रुत है, जब यह आत्मा में प्रादुर्भूत हो मुस्कराते फूल हों।। महान योगदान दिया। समाज व शासन को उनकी अनेकों महान तभी भावश्रत बनता है। बिजली का कार्य रोशनी का है। प्रकाश न किसी से बैर हो। देन है। उन्होंने शासन सेवा में अपनातन - मन सर्वस्व समर्पित का है। शिक्षा भी जीवन में रोशनी और चमक लाती है। शिक्षा सत्य-शील व्यवहार हो।। कर दिया। जीवन की अन्तिम सांस तक वे इस कार्य में जुटे रहे। और ज्ञान से जीवन में विकास सम्भव है।" मानवता के वास से। आर्चाश्री के जीवन के प्रमुख तीन आदर्श थे। जीवन के ये तीन अंग थे। तृतीय आदर्श था मध्यम वर्ग का उत्कर्ष। इस बात की ओर फूलों का उद्धार हो।। भी पूज्य गुरुदेव ने समाज का ध्यानाकर्षित किया। वे कहा करते प्रथम आदर्श था। आत्मसंन्यास, आत्मसाधना, इस लक्ष्य के सुमनों की गंगा में थे- दस हजार रुपये खर्च करके एक दिन का जीमन देने की बिना आत्मोन्नति संभव नहीं और स्वयं का उत्थान नहीं कर अपेक्षा उन्हीं दस हजार रुपयों से अनेकों परिवारों को सुखी मानवता संचार हो।। सकता, वह दूसरों का क्या कल्याण कर सकता है। कहा भी गया है। बनाना उत्तम कार्य है। सच्ची स्वामी भक्ति यही है कि हम उन्हें सद्गुरु की प्रेरणा से। कि "तिन्नाणं तारयाणं, जो स्वयं तैर सकता है, वहीं दूसरों को अपने पांव पर खड़ा करें। दूर अंधकार हो।। तिरा सकता है। उन्होंने स्व पर कार्याणि साधनोति इति साधः की । धर्म के आचरण से। उक्ति को पूर्णरूप से चरितार्थ किया। सात क्षेत्रों के श्रावक और श्राविका ही मुख्य आधार स्तम्भ शान्ति का प्रचार हो। दूसरा आदर्श था। ज्ञान प्रचार-शिक्षा प्रचार। उनका कथन है। इनकी अपेक्षा मानो सभी की उपेक्षा है। इन क्षेत्रों की पुष्टि है, था कि शिक्षा के अभाव में जीवन शून्यमय है। शिक्षा के बिना यदि इनको पोषण न मिला तो यह हरे-भरे कैसे रह पायेंगे। अतः सुख, शान्ति, आनन्दमयी। जीवन ज्ञानालोक की उपलब्धि नहीं कर सकता। अज्ञान अंधकार आज की महती आवश्यकता यही है कि हम इनको अधिकाधिक जन-मानस के कर्म हों।। है, जबकि ज्ञान प्रकाश है। ज्ञान स्वतः प्रकाशमान है. उसे अन्य प्रयत्न कर पुष्ट करें, इसकी पुष्टि से अन्य क्षेत्रों को सहज ही बल तेरे ही सब हों। प्रकाश की आवश्यकता नहीं है। अतः ज्ञान का प्रकाश सर्य के मिलेगा, वे सहजता से बलवान व फलवान बनेंगे। सब के तुम हो।। प्रकाश से भी श्रेष्ठ है। वल्लभ स्मारक उनकी महानता का जीवंत प्रतीक है। महान | सभी कष्ट दूर हों। पक्षी दोनों पंखों से ही गति कर सकता है। रथ दो पहियों से गुरु देव के अनुरूप ही भारत भर में एकमात्र अनूठा एवं महान है। । हे दयाल परमात्मन्।। एवं मानव दो पैरों से ही चल सकता है। इनमें एक का भी अभाव यह स्मारक उनके आदशों को अनागत में और भी गति देगा। इसी ज्ञान की ज्योति से। हो तो पक्षी उड़ान नहीं भर सकता रथ और आदमी चल नहीं उनके ये आदर्श हम सभी के लिए पथ प्रदर्शक बनें। जिससे सभी प्रकाशित धरा-धाम हो।। Ho सकता। अतः गुरुदेव ने व्यावहारिक शिक्षा के साथ आध्यात्मिक का कल्याण एवं मंगल हो। 00000
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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