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________________ रथयात्रा प्रयाण के अवसर पर गच्छाधिपति जी का मंगल सन्देश "जन-जन के हितकारी, प्रखर शिक्षा प्रचारक, कलिकाल कल्पतरु, अज्ञान तिमिर तरणी, पंजाब केसरी, जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में लुधियाना से ई.सन् 2004 माघसुदि 15, शुक्रवार दिनांक 6 फरवरी विजय वल्लभ रथ प्रस्थान करेगा। विभिन्न नगरों में भ्रमण करेंगे। जम्मू से कन्याकुमारी तक का सफर रहेगा। आखिरी महामोक्ष नगरी में भायखला समाधि स्थल पर पूर्णाहुति होगी। वल्लभ गुरुवर को काल धर्म पाये पचास वर्ष होने जा रहे हैं। समाज के परहितकारी शासन्नोति करने में भगीरथ प्रयास किया। दादा गुरु विजयानन्द सूरि जी महाराज (आत्माराम जी महाराज) के आदेशानुसार जैन समाज को स्थिरता हेतु धर्म में आस्था बढ़ाने निमित्त जैन बन्धु अशिक्षित न रहें, स्वावलम्बन जीवन जीयें, इसी हेतु को लक्ष्य में लेकर शिक्षा के माध्यम से प्रचार-प्रसार मार्गदर्शन देकर जगह जगह पर गुरुकुल कालेज महावीर जैन विद्यालय जैसी सैकड़ों संस्थाएं स्थापित करवा कर पूरे भारत वर्ष में जैन पताका लहराई। वही संस्था में पढ़े भक्तजन आज पूरे भारत में और विदेशों में भी बसे हुए हैं उन भक्तों को अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में जानकारी हेतु प्रचार-प्रसार का कार्य, ऐसे जन-जन के आधारभूत विश्व वत्सल गुरु रथ का दर्शन करें। पचास वर्ष पूर्व पूज्य गुरुदेव के उपकारों को याद करते हुए हमें भी इसी आशय से 2003 से 2004 तक पूरे वर्ष भर गुणगान गाते रहने का विभिन्न कार्यक्रमों से आए अवसर को सदुपयोग करना है। यह रथ आपको यही सन्देश देगा, आप वल्लभ गुरुवर के परम भक्त हो, कृपापात्र हो। अवसर पाया है, मत चूकिये। गुरु वल्लभ की एक-एक संस्था में तन, मन और धन न्यौछावर कर दो। पचास वर्ष बाद अवसर आया है। यही आपको याद देने हेतु रथ प्रयाण किया है। आप सोते मत रहना, आबाल, वृद्ध सजग बन जाना। रथ को अच्छी तरह से देखो, रथ में रखी गुरु मूर्ति का अच्छी तरह से दर्शन वन्दन कर लो, इस अवतारी महापुरुष को युगों-युगों तक स्मरण में रख लो, सुह गुरु जोगो को बना लो, ऐसे जनहितकारी गुरुवर मिलते रहें। आइये ! इस तरीके से अपने परम उपकारी गुरुवर की अर्द्धशताब्दी मनाएं। गुरु गुण गाकर अपना जीवन सफल बनायें। विशेष अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में अपने संतानों को जैनेत्व का संस्कार देने का संकल्प कर लें। अपने घर में या गुरुकुल में रख कर धार्मिक ज्ञान अवश्य दो ताकि मिला हुआ मनुष्य जीवन सफल हो सके। देवगुरु धर्म का परिचय करके धर्ममयी जीवन बनाएं। औरों के भी रहबर बनें। इन्हीं शुभ संकल्पों के साथ आगे बढ़ो।" 72 Jain Education International ली. आचार्य विजयरत्नाकरसूरी M विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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