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________________ मेरी दृष्टि में विजय वल्लभ ००० गुरु वल्लभ जी का शैशव काल : बड़ौदा नगरी में गायकवाड़ी राज्य था । वल्लभ गुरु जी का जन्म विक्रम सम्वत् 1927 कार्तिक सुदि दूज श्रीमाली कुल पिता श्री दीप चन्द भाई, माता श्रीमती इच्छा देवी अच्छे जैन धर्म के सुसंस्कारी थे। ऐसे कुटुम्ब परिवार के अन्दर छगन सहित चार भाई थे हीरा चन्द, खीम चन्द, छगन लाल तथा मगन लाल और तीन बहनें थी -महालक्ष्मी, जमुना और रुक्मणि में जन्म हुआ था। परिवार के अन्दर तीन पुत्र थे, चार बहिनें थीं। धर्म के सुसंस्कारों से सन्तानों को परिपूर्ण किया था। हमारे चरित्रनायक छगन लाल के नाम से प्रसिद्ध थे। जब पिता जी का अवसान हुआ, तब माता का सन्तानों प्रति आधार रहा। आखिर माता भी बीमारी वश बिछाने पड़ी थी, परिवार आकर मिल रहे थे, डाक्टर आदि सलाह दे रहे थे अब धर्म आराधना ही करना । उस समय हमारे चरित्रनायक छगन लाल सूझबूझ थी। समझदारी थी, वह भी माता के समीप पहुँचे और माता की यह स्थिति देखकर भवितव्यता के योग से होनहार की स्थिति ही देख ली, माता से Jain Education International कहा गया, “आप इस दुनिया को छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे हो। मुझे किसके सहारे छोड़कर जा रहे हो ?" तब छगन लाल का भावी उज्जवल था, माता के मुख से भी यही शब्द निकला, “वत्स ! तुझे अरिहन्त शरण में छोड़कर जा रही हूँ ।" बस माता जी का आशीर्वाद मिल गया। भव और भवान्तर में की हुई आराधना जागृत होने में एक जादुई चमत्कार ही समझो । माता परलोकवासी होने के बाद छगन लाल जी के विचारों में माता का आशीर्वाद सतत् गुजांयमान हो रहा है। जैसे कि समुद्र के अन्दर सिप्प होती है, उसमें वह ताकत होती है। आकाश मण्डल से एक भी बूंद गिर जावे तो मोती बन विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका जाए। "हमारे चरित्रनायक सिप्प की तरह उर्ध्वमुखी बनकर मेघ की राह देख रहे थे। इतने में पंजाब देशोद्धारक श्रीमद् विजयानन्द सूरि जी म. का बड़ौदा नगर में आगमन हुआ । उपाश्रय में जिनवाणी श्रवण | करने हेतु मानव मेदिनी उमड़ पड़ी थी । मेघ की तरह गर्जन करते गुरुदेव जी का प्रवचन चल रहा था। उसमें छगन लाल भी शामिल हो गये थे। सिप्प की स्थिति में | हृदय कमल विकसित हो गया था। गुरुदेव जी की जिनवाणी रूपी मेघ के एक-एक बूंद हृदय कमल में संगृहित कर रहे थे।" For Private Personal Use Only गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म. हमारे चरित्रनायक सिप्प की तरह उर्ध्वमुखी बनकर मेघ की राह देख रहे थे। इतने में पंजाब देशोद्धारक श्रीमद् विजयानन्द सूरि जी म. का बड़ौदा नगर में आगमन हुआ। उपाश्रय में जिनवाणी श्रवण करने हेतु मानव मेदिनी उमड़ पड़ी थी। मेघ की तरह गर्जन करते गुरुदेव जी का प्रवचन चल रहा था। उसमें छगन लाल भी शामिल हो गये थे। सिप्प की स्थिति में हृदय कमल विकसित हो गया था। गुरुदेव जी की जिनवाणी रूपी मेघ के एक-एक बूंद हृदय कमल में संगृहित कर रहे थे और माता का आशीर्वाद स्मृति पथ पर था। “चारित्र बिन मुक्ति नहीं' जिनवाणी के प्रभाव से अन्तरात्मा बोल रहा था। गुरुदेव जी का प्रवचन पूर्ण होते ही हृदय में से भाव निकलकर करबद्ध हो गया और गुरुदेव जी से विनंती की धर्म ध्यान स्वरूपे संयम की याचना की। आत्म गुरु जी ने याचक को सामने देखा, भाल प्रदेश देखते ही मांगनी योग्य है, “वत्स ! समय तेरी भावना साकार बनेगी । पुरुषार्थ करता रह।" पुरुषार्थ करने में हमारे 29 www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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