SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हे गुरु ! मुझ सार लेनी, मैनूं छड सुखराशि वसीया हे हो स्वामी।।। सनखतरा से विहार किया सूरि, आनन्द अंग न माय।। गुरु जी।। मैनूं. गुजरांवाल तरफ सूरि चलते, गाम वडाला में आय।। जेठ वदि चौदस की राते, सांस रोग हो जाए।। मन बल से दुःख लव नहीं गिनीया, गुजरांवाल में आय।। रोग संबंधी न कीनी चिकित्सा, सेवक दिये भुलाय।। उज्जवल पक्ष मंगल की राते, सब से लिया खमाय।। अर्हन् अर्हन् मुख से उचरते, सूरि स्वर्ग सिधाय।। द्रव्य भाव से होया अंधेरा, मुख से कहा न जाय।।। नगर नगर के श्रावक आये, पेश कछु नहीं जाय।।। निरानन्द देह संस्कार कीनो, चंदन चिखा में ठाय।। हाहाकार भयो जिनशासन, भरते तरणि छिपाय।। स्मरण करन को सब श्रावक मिल, सुंदर थूभ बनाय।। यह जग सारा धुद पसारा, निज आतम समझाय।। - तीर्थंकर गणधर चक्रवर्ती, वासुदेव कहाय।। वल्लभ काव्य सुधा पृ. सं. 343 FLIXXL111121221111 गुरुवर विजयानंद सूरि जी महाराज का समाधि स्थल - गुजरांवाला गुरु चरणों में कोटिशः कोटिशः वन्दन SHRI SHANTI NATH JAIN TEMPLE TRUST SOLAPUR, PUNE Samdhane Computers Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy