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________________ इस दिव्य घटा निस्संदेह आचार्य वल्लभ की तो उद्यान उजड़ जाएगा।" __शुद्धाचरण द्वारा अपने 'आत्म-वल्लभ' बन गये। पूज्य वास्तव में गुरुदेव समाजोद्यान के मन को मंदिर के समान पवित्र आत्मारामजी के प्रिय शिष्य तो वे बने कुशल बागवान थे। बनाओ। पवित्र मन मंदिर में ही ही, साथ-साथ आत्मसुख के इच्छुक गुरुदेव की अभिलाषा थी, जैन परम कृपाल परमात्मा विराजमान भी। उनका 'आत्म वल्लभ' नाम विश्व विद्यालय की स्थापना करने की। होंगे। मन को पवित्र बनाने के सार्थक हो गया। पूज्य गुरुदेव ने किन्तु वह पूरी न हो सकी और आज लिए शुद्ध आहार, शुद्ध विचार समाजोत्थान पर विशेष महत्त्व दिया। तक उनका यह स्वप्न साकार नहीं हो और और शुद्ध विहार (आचरण) उन्होंने देखा कि समाज की दशा सका है। गुरुदेव विश्वविद्यालय की आवश्यकता है।" बम्बई में श्री अत्यन्त ही दयनीय है। शिक्षा के स्थापित करके क्या चाहते थे ?इस एस.के. पाटिल की अध्यक्षता में मनाई अभाव में समाज के बालक पतनोन्मुख भावना की पृष्ठभूमि में एक ही बात गई पावन जन्म जयन्ती के प्रसंग पर हैं। बिना शिक्षा के व्यक्ति के विचारों में महत्त्वपूर्ण है और वह है उच्च शिक्षा आपने कहा था : परिवर्तन लाना असंभव है। शिक्षा के के द्वारा व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाकर "मैं न जैन हूँ, न बौद्ध न द्वारा व्यक्ति को बदलना होगा, गुरुदेव उसे समाज का उपयोगी अंग बनाना। ने सोचा। इसीलिए उन्होंने समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला है, स्थान-स्थान पर विद्यालय खुलवाये। देशभक्ति की कमी है, अनुशासनहीनता परमात्मा को खोजने के मार्ग पर उन्होंने विद्यालय एवं पुस्तकालय है, ये सब देश के शरीर को क्षय के चलने वाल खुलवाकर जनता के जीवन को कीटाणुओं के समान खा रहे हैं। इस गुरुदेव सही रूप में विश्व मानव प्रकाशित करने का आजीवन प्रयत्न क्षयरोग का निवारण सुनियोजित उच्च थे, विश्व संत थे, विश्व वल्लभ थे। किया उनके यश के स्मारक रूप में शिक्षा के द्वारा ही हो सकता है। ऐसा इस दिव्य संत का जीवन दीप आज भी खड़े हैं महावीर विद्यालय, आदर्श विश्व विद्यालय स्थापित हो आश्विन वदि 10, मंगलवार सं. बम्बई; श्री पार्श्वनाथ उम्मेद जैन जिसमें जैन दर्शन एवं अन्य दर्शनों का ___2011 को रात्रि के दो बजकर बत्तीस महाविद्यालय फालना, श्री आत्मानन्द अध्ययन हो तथा मनुष्य अपने जीवन मिनट पर बम्बई में बुझ गया। ऐसा जैन कॉलेज अम्बाला, श्री पार्श्वनाथ को प्रभु-मन्दिर (Temple of God) लगा जैसे जगत् का सूर्य अस्त हो गया हाई स्कूल वरकाणा; और अनेक बना सके। साथ ही साथ वह हो। जिस सूर्य ने जन मानव को विद्यालय और पुस्तकालय। गुरुदेव ने सुसंस्कारी बन कर देश और समाज आलोकित किया, जिसने समाजोत्थान इन्हें ज्ञान का प्याऊ कहा है। 'शिक्षा के की निःस्पृह सेवा भी कर सके। यह के पुष्प-पौधों को प्रकाश-किरणों से द्वारा समाज का अभ्युदय' उनका नारा विश्वविद्यालय आदर्श कल्पना' प्रस्फुटित किया, जो अज्ञानतिमिर को था। गुरुदेव ने अपने एक व्याख्यान में (Utopia) नहीं है बल्कि यथार्थविचार दूर करने के लिए शिक्षा की समोज्ज्वल समाज के प्रति मार्गदर्शकों के का धरातल है। गुरुभक्तों को उनकी किरणें फैलाता रहा, जिसने व्यक्ति उत्तरदायित्व के संबंध में ये उद्गार इस अभिलाषा की पूर्ति हेतु और समाज को अंधकार से प्रकाश में प्रकट किये थे: गम्भीरतापूर्वक योजना बनानी चाहिए। लाने का जीवनपर्यन्त प्रयास किया, "समाज उद्यान है। गुरुदेव के शाब्दिक गुणगान करने से वह उस दिन पार्थिव रूप में अस्त हो नर-नारी पुष्प-पौधे हैं। इस कोई गुरुभक्ति सिद्ध नहीं होती। सच्ची गया। परन्तु वह सूर्य तो अभी भी समाजोद्यान के बागवान हैं। गुरुभक्ति तो वही है, जिससे उनके जन-मन में चमक रहा है, उसके दिव्य साधु-संत तथा समाज के बताये हुए राजपथ पर हम निर्भीक हो उपदेश विविध किरणों के रूप में नेतागण। यदि इन पुष्पों को कर चल सकें। पूज्य गुरुदेव के उपदेश मानस-कलियों पर शोभित हैं। उन सुजल से नहीं सींचा और सभी लोगों के लिए उपयोगी होते थे। किरणों को मानस-कोष में सदा-सर्वदा आवश्यकता के अनुसार उनकी बम्बई की एक विशाल जनमेदनी में हम सुरक्षित रखें, यही प्रयास होना काँट-छाँट और देख-भाल नहीं उन्होंने कहा थाः चाहिए। जय वल्लभ! 4507 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 209 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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