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________________ 202 Jain Education International युगपुरुष तुम्हें शतकोटि नमन ! जब जब भू पर बढ़ी तमिस्त्रा, जब जब हाहाकार मचा। तब तब संत हृदय का समरस, शुचिता में हुँकार उठा। संतपुरुष के दिव्यघोष से स्वर्ग बना भू का आंगन ! ऐसे संत विजय वल्लभ का कोटि-कोटि उर-अभिनंदन !! कोई लड़ता करबालों से, संगीनों से मचल-मचल, सत्य-अहिंसा से लड़ने को, विरले का होता सुपहल। महावीर के उपदेशों पर चलकर जो बनते कुंदन ! वही विजय वल्लभ बनता है, कोटि-कोटि उनको वंदन !! जिसने दलितों को अपनाया, दुखियों को जो दुलराया, जिसने प्रेमसुधा लहराकरजन-जन मन को हुलसाया ! प्रेम पुरुष ! हे दिव्य प्राण ! समता के शुचि अभिव्यंजन ! तेरे पुण्यपंथ पर चलकर, गुरुवर ! तेरा अभिनंदन !! द्रोह - द्वेष का भेद मिटाया, कटता - कल्मष विसराया; माया, मोह, आसक्ति पाश से जिसने दूरतम बगराया ! बन्धुभाव, समता सरसाकर, बने स्वयं भवभयभंजन ! वसुन्धरा के दिव्यपुरुष हे ! तुमको कोटि-कोटि वंदन !! चलें आज हम सब हिलमिलकर, धरणी के आरती थाल में, अंबर के शत दीप सजाकर, भक्ति - ज्योति के मनः ज्वाल में अंतर का तम-तोम मिटाकर, भक्ति-सुधा कर निर्मल तन मन ! 'मानव मानव सम' व्रत लेकर, सफल करें गुरु का अभिनंदन !! श्री गुरुचरणों के शुचितल में कोटि-कोटि जन का अभिनंदन !! विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका For Private & Personal Use Only कला कुमार www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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