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________________ प्रस्तुत कर कहा था चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो। माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ।।" अर्थात्-इस संसार में जीवों को चार वस्तुएं प्राप्त होनी अति दुर्लभ हैं। वे चार ये हैं-मनुष्यत्व, धर्मश्रवण, सच्ची श्रद्धा और संयम मार्ग में पुरुषार्थ ।” ये चारों वस्तुएं भगवान ने अत्यंत दुर्लभ बताई हैं। ये वस्तुएं खरीद भी नहीं सकते। क्योंकि मानव जन्म दुर्लभ है-अनंत पुण्योदय से प्राप्त, अनेक जन्मों तक नरक-तिर्यंच व देवगति में भटकते-भटकते असंख्य योनियों में घूम-घाम कर एकेंद्रिय से पंचेंद्रिय में विकास करते-करते जीवन मानव भव प्राप्त करता है। जिसके लिए देवता भी तरस जाते हैं। क्यूं ? यही वह भव है जहां से जीव अपनी आत्मा को सर्व धर्म संस्कारों से परिपूर्ण कर आत्मा से महात्मा तथा महात्मा से परमात्मा रूप प्राप्त करता है। इसलिए हमें इस जीवन की दुर्लभता का अहसास रखते हुए भी बाल-युवा आदि वर्गों में धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण कर आत्मा को विकास पथ पर डालना होगा। 6. सुसंगति की महिमा : गुरुदेव के प्रवचन में-एक विचारक ने कहा था कि "कौन मनुष्य कैसा है। यह पूछना चाहते हो तो पहले मुझे बताओ कि उसकी संगति कैसी है।" वास्तव में संगति का असर आज के बाल-युवा वर्ग को पथभ्रष्ट करने में एक बड़ा पार्ट अदा करता है। मानव दुनिया का सर्वोत्कृष्ट प्राणी होने के नाते उस पर अच्छी या बुरी संगत का प्रभाव पड़ता है-अच्छे मनुष्यों की संगत में रह कर एक व्यक्ति अच्छी आदतें, अच्छे विचार, अच्छे आचरण, अच्छे वचन, अच्छे कार्य और उसे क्यों छोड़ना आवश्यक है ? जब सीखता है जब कि बुरी संगत में सब कुछ बुरा बाल व युवा वर्ग इसे समझ लेगा-तो उसे सीखता है। यही नहीं मानव के अलावा अन्य अपने अन्तःकरण में स्वयं ही घृणा होकर प्राणियों में भी संगति का असर चढ़ता है। त्यागने की इच्छा जागृत होगी। अधिक दौलत की संगत से अच्छे-बुरे दोनों व्यसन : जो मानव को सर्वसुखों से या प्रभाव देखने को मिलते हैं। स्वर्ग-सुख से दूर कर दे-वह व्यसन कहलाता सत्संगति से लाभ : यदि घर में बीमार के लिए है। इससे शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व डाक्टर की संगति, मुकद्दमें आदि के लिए आध्यात्मिक सभी सुखों से वंचित होकर अच्छे योग्य वकील की संगति इत्यादि से हम भटकने लगता है तथा धीरे-धीरे रोगों से लाभ लेते हैं। अपना जीवन सुखी बनाने के घिरकर मृत्यु की तरफ (आत्महत्या तक) लिए अच्छे साधु, गुरु आदि की संगति का बढ़ना शुरू हो जाता है। धन का नाश तो होता लाभ लेते हैं। हम कभी अयोग्य व्यक्ति की ही है-परिवार वाले भी दुःखी व परेशान होकर संगति नहीं लेना चाहते-तो फिर अपने जीवन जगह -जगह भटकते हैं। के विकास के लिए आप कुसंगति ना लेते हुए व्यसन मुक्ति के लिए सर्वप्रथम योग्य सुसंगति का लाभ लेने की कोशिश करते सपरिवार का दायित्व बनता है। फिर रहिए। क्योंकि सुसंगति बुद्धि की जड़ता दूर गुरु-आचार्य-शिक्षाविद् एवं सरकार द्वारा करती है। वाणी में सत्य का संचार, सम्मान व कानून का सख्त पालन इसके बचाव में विशेष उन्नतिदायक जीवन की प्राप्ति होती है। सहायक हो सकते हैं। व्यसनों पर प्रतिबन्ध इसलिए बाल-यूवा वर्ग में सुसंगति का अच्छे तथा गुरु-आचार्यों की संगति से विशेष गुरुओं की संगत से धार्मिक संस्कारों पर शुभ परिवर्तन आ सकता है। बाल-युवा वर्ग को इन असर पड़े, इस बात का ध्यान आवश्यक है। व्यसनों की बुरी आदत के प्रति सचेत होकर 7. व्यसनों से बचाव : आज के बाल-युवा शिक्षित होना भी इनसे बचाव में मुख्य भूमिका वर्ग में कुछ व्यसन तो ऐसे हैं, जो वे चाहकर निभाएंगे। भी नहीं छोड़ पा रहे हैं-चोरी, जुआ, नशा, 8. शिक्षा का उद्देश्य : मानव जीवन में मांस-अंडा का सेवन, शराब आदि का सेवन, किसी वस्तु की अधिक आवश्यकता है, तो वह परस्त्री गमन (जिसमें बलात्कार भी शामिल है शिक्षा । यह बात स्पष्ट रूप से गुरुदेव अपने है), वेश्यागमन, शिकार-ताश आदि। बड़ी व्याख्यानों में कहा करते थे। शिक्षा से ही मुश्किल से दूर होने वाले ये 10 व्यसन सुसंस्कार आएंगे। जाति-धर्म, समाज, राष्ट्र कामेच्छा से, 8 व्यसन क्रोधाग्नि से तथा कुछ की सर्वांग उन्नति उसके सुसंस्कारों पर निर्भर व्यसन संगति एवं शौक से होने वाले होते हैं। होती है तथा सुसंस्कारों को सुदृढ़ करने में इन सब का समावेश उपरोक्त 8 व्यसनों में ही सबसे अधिक पार्ट लेती है-शिक्षा। यदि शिक्षा होता है। रूपी नींव, मजबूत नहीं होगी तो व्यक्ति में सब व्यसन का वास्तविक अर्थ क्या है। प्रकार के संस्कार आ नहीं पाएंगे तथा 199 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private Per Jain Education International Aww.cainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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