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________________ 190 5. आचार्य श्री के आज्ञानुवर्ती साहित्याचार्य मुनि श्री चतुर विजय जी महाराज का कार्तिक वदी 14 (17.10.44) को स्वर्गवास हो गया। 6. आचार्य श्री के 65वें वर्ष की पूर्ति पर हीरक महोत्सव कार्तिक वदि 13 से कार्तिक सुदी 2 तक बड़ी धूमधाम से मनाया गया। 7. संवत् 1908 से चले आ रहे 13 व 14 गवाड़ (मोहल्ला) के झगड़ों के कारण, भगवान् की रथयात्रा, सारे शहर में फिर नहीं सकती थी। आचार्य श्री के सद्प्रयत्नों से कार्तिक सुदी 2 के दिन श्री वीतराग प्रभु की रथयात्रा बड़े उत्साह एवं धूमधाम से निकली। शहर के वेदों के चौक में स्थित भगवान् श्री महावीर स्वामी जी के मंदिर से प्रभु की सवारी निकाली गई, जो सिपाणी, बाँठिया, रामपुरिया, राखेचा और गोलछों के चौक से होकर कोटगेट के मार्ग से श्री पार्श्वचन्द्र गच्छ की दादाबाड़ी पहुँची। वापिसी में गोगागेट से प्रवेश करती हुई बागड़ी, डागा, कोचर सेठिया, ओसवाल कोठारियों के मोहल्लों से होती हुई रांगड़ी चौंक से खरतरगच्छ के श्री पूज्य जी के उपाश्रय के आगे से होती हुई, श्री चिन्तामणि जी के मंदिर के मार्ग से सर्राफा बाजार होती हुई समस्त नगर में, पूरे राजकीय ठाठ बाठ से बड़े समारोह पूर्वक भगवान् श्री महावीर स्वामी जी के मंदिर में पधारी। इस रथयात्रा में आचार्य श्री, शिष्य समुदाय के साथ शामिल थे। बीकानेर में यह रथ यात्रा, इसलिये भी स्मरण रहेगी क्योंकि भगवान की सवारी में से भी ली जानी वाली भेंट (टेक्स) हमेशा के लिये बंद हो गई। 8. मार्गशीर्ष वदि को आचार्य श्री के शिष्य एवं तपस्वी मुनि श्री विक्रम विजय जी म.सा. का देवलोक गमन हुआ । तृतीय चातुर्मास (विक्रम संवत् 2005 चैत सुदि 6 शनिवार) मार्गशीर्ष वदी 3 शुक्रवार 1. आचार्य श्री के सउपदेश के फलस्वरूप, पालीताणा में “श्री आत्मानन्द जैन भवन पंजाब" नाम की धर्मशाला का निर्माण करने का निर्णय हुआ। पंजाबी भाईयों ने पूर्ण भी किया। आचार्य श्री के सउपदेश से प्रेरणा लेकर एक उदारमन सज्जन ने मन ही प्रतिज्ञा की कि 'गुरुदेव ने बीकानेर निवासियों को पालीताणा में एक धर्मशाला बनवाने का उपदेश दिया है, उसको मैं पूरा करूँगा और काम करके ही यह बात प्रकट करूँगा। Jain Education International 2. आज तीर्थाधिराज की शीतल छाया में श्री पार्श्व वल्लभ विहार (जिन मंदिर, गुरु मंदिर) और धर्मशाला बीकानेर के सुप्रसिद्ध सेठ श्रीमान् प्रसन्न चन्द्र जी कोचर की मूक भक्ति की यश पताका फहरा रही है। 3. आचार्य श्री के 71वें वर्ष के प्रवेश पर उत्सव बड़ी धूमधाम एवं गुरुभक्ति से सराबोर हो कर मनाया। आचार्य श्री की प्रेरणा से महिलाओं के स्वावलम्बी बनाने हेतु महिला उद्योगशाला स्थापित करने का निर्णय लिया होगा। 4. उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि आचार्य श्री ने बीकानेर के तीन चातुर्मासों में जैन धर्म को उद्योत किया एवं समाज के विभिन्न वर्गों के कल्याण हेतु प्रेरणा देकर ऐसे रचनात्मक कार्य करवाये, जो नगरवासियों के लिये अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद रहेंगे। " समन्वय दृष्टि में समभाव बसता है । समभाव में सबके प्रति स्नेह और प्रेम झलकता है। स्नेह भावना पत्थर को भी मोम बना देती है । " विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका For Private & Personal Use Only बल्लभ विजय www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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