SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लब्धि सम्पन्नगुरु वल्लभ बलदेव राज जैन पूर्व महामंत्री महासभा अज्ञान तिमिर तरणि, कलिकाल कल्पतरु श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जोकि तत्वज्ञान वक्ता, लेखक, 2200 रचनाओं के रचयिता महान् कवि, नाभा राजदरबार में स्थानकवासी संतों के साथ शास्त्रार्थ करने वाले वादी थे। अपने समुदाय पर नियन्त्रण करने वाले महान् प्रशासक (Administer) थे। चारित्र-चूड़ामणि, युगवीर, समाजसुधारक, शिक्षा प्रचारक, नीतिवान, युगद्रष्टा, पंजाब केसरी, लब्धिसम्पन्न और 36 गुणों के धारक नमो आयरियाणं थे। _ मैं उन भाग्यशाली श्रावकों में एक हूं, जिसने 20 वर्ष की आयु में दर्शन किये और व्याख्यान सुने, उनके साथ प्रतिक्रमण किया। और प्रतिक्रमण में स्तवन, स्तुति, पाठ आदि सुनाकर उनके नज़दीक होने से बहुत कुछ प्राप्त किया। उनकी निश्रा में ज्येष्ठ सुदि अष्टमी के उत्सव में बाल मुनि जनक विजय और मुझे पहली बार मंच पर आने का सौभाग्य मिला। उस समय डाईस नहीं होता था। बोलते समय दोनों की कांपती टांगें सब देख। रहे थे। उस जमाने में बहनें मर्यादित पहरावा पहनती थीं और कम से कम छः इंच लम्बा बूंघट निकालती थीं। फिर भी कथा में भाई और बहनों के बीच में एक परदा होता था। बिरादरी के फैसले अनुसार कथा समाप्त होने पर ही दुकानें खुलती थीं। वासक्षेप आम नहीं की गई। तीन से चार बजे तक आचार्य मिलता था। तीर्थ यात्रा करने वाले ग्रुप यात्री भगवन् का उपाश्रय में खुला दरबार लगता। और तपस्या करने वालों को एक बार वासक्षेप जिसमें जैन-अजैन सभी प्रश्न कर सकते थे। मिलता था या फिर संक्रान्ति के दिन बाल्टी में एक अजैन गौरी शंकर नाम का व्यक्ति कुछ रुपये या रेज़गारी डालकर वासक्षेप लेना प्रतिदिन आकर गुरु महाराज से प्रश्न होता था। यह फंड महासभा को साधनहीन करता? प्रतिदिन की चर्चा देखकर श्रीसंघ के विद्यार्थियों और विधवाओं को बांटने के लिये प्रमुख भाईयों ने कहा-“महाराज ये व्यक्ति दिया जाता था। यह प्रथा आज तक चल रही प्रतिदिन सिरदर्दी करता है। आप आज्ञा दें हम इसको आने के लिये मना कर दें।" आचार्य प्रवेश :- मार्च सन् 1940 को 16 वर्ष के भगवन् ने कहा, “इसको मना नहीं करना। पश्चात् आचार्य भगवन् गुजरांवाला पधारे। यह व्यक्ति नास्तिक है। इसको मुझे आस्तिक बिरादरी ने अपना कर्त्तव्य और शासन बनाना है। नास्तिक किसे कहते हैं ? जो प्रभावना निमित्त बड़े हर्ष उल्लास से भव्य व्यक्ति आत्मा, परमात्मा, पुण्य, पाप को नहीं प्रवेश का आयोजन किया। गर्मियों का मौसम मानता, उसको नास्तिक कहते हैं।" होने से बाजारों में चांदनियां (शामियाना) लब्धि सम्पन्न आचार्य भगवन् :- भैया दूज लगाई गईं। गेट और झण्डियों से बाजारों को के दिन आचार्य भगवन् का जन्म उत्सव सुसज्जित किया गया। पंजाब के प्रसिद्ध श्रीमद् विजयानन्द सूरि जी म. की समाधि के 'सोहनी का बैण्ड' और 'रंगमहलों का बैण्ड' बाहर खुले पण्डाल में मनाया गया। पंजाब लाहौर से मंगवाया गया, जो जुलूस में अद्भुत व्यापार मण्डल के प्रधान लाला बिहारी लाल नज़ारा पेश कर रहे थे। उनकी धुनें सुनने के चानना उस जलसे के प्रधान थे और देश की लिये 'जोक-दर-जोक' हजूम की भीड़ हो गई। आजादी के लिए कई बार जेल यात्रा करने ढोलक के साथ बांसुरी वादन अपना अलग ही वाले लाला तिलक चन्द जी त्रिपंखिया मंच जलवा दिखा रहा था। बाज़ार में मीठे पानी संचालन कर रहे थे। विशेष अतिथि सरदार और दूध की छबीलों के अतिरिक्त बेरी वाला बहादुर सुन्दर सिंह, प्रधान-म्युनिसपल कमेटी चौंक में बादाम, इलाचयी आदि की ठण्डाई थे। जिन्होंने म्युनिसपल कमेटी की ओर से (शरदाई) की छबील किसी धार्मिक जलूस में उर्दू भाषा में अभिनन्दन पत्र पढ़कर आचार्य मैंने पहली और अन्तिम बार देखी। पहली ____ भगवन् के कर-कमलों में भेंट किया। गौरी बार हवाई जहाज द्वारा जुलूस पर पुष्प वर्षा शंकर ने भी समय मांगा, मिल गया उसने 176 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy