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________________ - आमुख जैन श्रीसंघनी विभूतिसमा ज्ञान-तपोमूर्ति जैनशासनप्रभावक सरिप्रवर आचार्यभगवान श्रीविजयवल्लभसूरि महाराजश्रीना स्मारक ग्रंथर्नु आमुख लखवू ए महासद्भाग्यनी वात छे. विजयवल्लभसूरि एटले-जेमणे अनेकानेक-महागुणभंडार अनुपमेय परमगुरुदेव श्रीविजयानंदसूरि गुरुनां परमपावन चरणोनी अनन्यभावे सेवा करी हती, जेमणे ए गुरुवरना अतल जीवनसागरने अवगाहवा प्रयत्न को हतो, जेमणे ए गुरुदेवनी गंभीर जीवनगंगामांथी उदात्त भावनाओ अने विचारोनां निर्मळ नीर खोबले खोबले पीधां अने पचाव्यां हतां, जेमणे हंस बनीने ए आराध्य गुरुना मानससरोवरमांथी अवसरे अवसरे ऊछळीने किनारे आवेलां अतुल धीरज, समता, कार्यदक्षता, दीर्घदार्शता, खंत अने आहोपुरुषिका रूप मोतीओनो चारो चर्यो हतो-एवी एक विभूतिस्वरूप जैनसंघनी विरल व्यक्ति अथवा परमाराध्य गुरुदेव श्रीविजयानंदसूरि महाराजनी छायामूर्ति. आवी विरल व्यक्ति जैनशासन अने जैन श्रीसंघने सांपडे, ए जैनशासन अने जैन श्रीसंघना महान अभ्युदय अने सौभाग्यनीज वात गणाय. आजे ए तेजोमूर्ति महाविभूति आपणी नजर सामेथी दर होवा छतां एनी झळहळती जीवनज्योतिना पुंज स्वरूपे आपणाथी दूर नहीं, पण आपणी सामेज दिव्य हास वेरती बेठी के ऊभी होय एम ज आपणने भासे छे. पूज्यचरण आचार्यभगवान् श्रीविजयवल्लभसूरि महाराजश्रीना जीवननुं शांत अने गंभीरपणे चिंतन के स्वरूप अवलोकन करिए तो जणाशे के एमां जीवनसाधना, धर्मसाधना, शासनसेवासाधनाने लगतां अनेक पुरुषार्थपूर्ण योग्यतानां बीजो पड्यां हता; पछी ए बीजो भले जीवननी परिस्थिति अने प्रवाहने अनुसार विकस्यां, अर्धविकस्यां के अणविकस्यां रह्यां होय; आम छतां ए वातमां तो लेश पण शंकाने स्थान नथी के ए जीवन एक महातेजोराशि हतुं. ए तेजोराशिए जैनप्रजाने घणा घणा अज्ञात मार्गानुं ज्ञान अने भान कराव्यां छे. पूज्यपाद ज्ञानतपोमूर्ति आचार्यभगवान श्रीविजयवल्लभसूरि महाराजश्रीन जीवन जेवू व्यापक अने समृद्ध हतुं तेवो ज तेमनी जीवनस्मृति-यादगीरीने ताजी करतो आ स्मारक ग्रंथ पण व्यापक अने समृद्ध बन्यो छे. आ आखा ग्रंथमा मात्र शरूआतनां अमुक पानां ज पूज्य आचार्य महाराजश्रीना साहजिक-अनलंकारिक जीवनचरित्रे रोक्यां छे, ते सिवायनो आखो ग्रंथ विद्वद्भोग्य अने प्रजाना चैतन्यने पोषता विविध लेखो अने विपुल चित्रादि सामग्रीथी समृद्ध छे. प्रस्तुत स्मारक ग्रंथ गुजराती, हिंदी अने अंग्रेजी एम त्रण विभागमां वहेंचाओलो छे. एत्रणे विभागना विद्वान संपादको खरेखर प्रेरणा पामेल समर्थ लेखको अने संशोधको छे. ए दरेक विद्वानोना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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