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________________ दररोजची पा वरराम सापाधिकरिक तहका शाखा सम परिमाता उदरन्तरता तर तो प्राकसिद राति पनि कर सोन्नत्रिमितेकर रितिक्षे विविध तनुं वरमल की वापर नत्र देसी भजन कर करत सुमा एक निबर गजनवीर दिई देवानामरथरी सी॥ विद्युनमाजी सुरति भावना दमादम केवल इकाई पद देवमाली कामद राजी 897559 के जाम होते मुनिवर ईनिज कम मद-नारी स्वामी कवि हारी ॐ दो कजिनदास या अन्याय वरिल युगमा देशक ईतर तेलाला मी कोटि ते बाहिर ताला तई हामी दूर नकार दारीपत्र सारोनिक कविता किरपाल रामतिद्युत हरवईका اد निर्वाली बारबरम मुनगावी साली किनार श्रीराम इनके अविरज मकाजविजी कतिনजीराजे की गु द के करक की काही हे विश मे श्रीजी के तर हितका जी श्री विजय देवसरीकरण र विक्रम ४० श्री कलमका हीरश्री शिरही राजी हा श्रीश्री उपरिंग कीराजीत श्रीवमचिमक जाया ज तक ई-तिकी महिनाकी दिना सीजी निल-सादिरनि परत १५ जी Jain Education International न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजना हस्ताक्षर (जंबुस्वामीरास) Handwriting of Mahopadhyaya śri Yashovijayaji Mahārāja in Jambusvāmirās मुनिश्री पुण्यविजयजीना संग्रहमांथी ] काक्रिज विजय For Private & Personal Use Only २० www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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